राम और राष्ट्र के नाम पर कोई समझौता नहीं : आचार्य प्रमोद
घरौंडा, 21 अक्तूबर (निस)
वेद विद्या गुरूकुलम कुटिया नलवी खुर्द के वार्षिक उत्सव समारोह में देशभर से पहुंचे साधु-संतों ने एकमत से आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को भारत रत्न देने का प्रस्ताव पास किया और इसे ही महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती का सबसे बड़ा सम्मान बताया। इस अवसर पर गुरूकुल के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि के रूप मेें शामिल कल्किपीठाधीश आचार्य प्रमोद कृष्णम, विशिष्ट अतिथि के रूप में कोल्हापुर से काड़सिद्वेश्वर जी महाराज ने व कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी सम्पूर्णानन्द सरस्वती ने की। इस अवसर पर युवा सनातन संसद में देश भर से पहुंचे साधु जमकर गरजे। संतों ने कहा कि हिन्दू न किसी को परेशान करता है व न ही किसी को करने की कोशिश करता है, लेकिन यदि कोई उसे परेशान करेगा तो वह उसका जवाब अवश्य देगा। इस दौरान युवा भारत साधु समाज के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी रामानन्द, युवा भारत साधु समाज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष महंत जगजीत सिंह, युवा भारत साधु समाज के अध्यक्ष शिवम महंत, महंत दिनेश दास, हिमाचल प्रदेश से स्वामी रविन्द्र कंवर, सर्व जैन समाज के अध्यक्ष डा.मणिन्द्र जैन उत्तर प्रदेश से स्वामी शिवानन्द, गुरूग्राम से स्वामी विजयवेश ने गुरूकुल में आयोजित कार्यक्रम में सनातन की हुंकार भरी। इस अवसर पर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि मर्यादा पुरूषोतम राम नाम की महिमा आदिकाल से है। ये सनातन का समय है, तभी तो भगवान राम के भव्य मंदिर का अयोध्या का निर्माण हुआ। उन्होंने कहा कि राम और राष्ट्र के नाम पर कोई समझौता नहीं हो सकता। सनातन धर्म परमात्मा द्वारा बनाया गया है, अन्य सभी पंथ है। उन्होंने कहा कि हमारा देश गुलाम इसलिए नहीं रहा कि सामने वाला शत्रु मजबूत था, बल्कि इसलिए गुलाम रहा कि इस देश में कुछ जयचंद मौजूद थे। इस अवसर पर स्वामी कार्डसिद्वेश्वर जी ने कहा कि अब धर्मांतरण सहन न होगा। गुरूकुल के ब्रह्मचारियों ने विशेष व्यायाम प्रदर्शन का आयोजन किया। स्वामी सम्पूर्णानन्द सरस्वती व गुरूकुल के आचार्य संदीप ने संतों को सम्मानित किया। इस अवसर पर सरपंच रत्न सिंह, आचार्य अग्नि देव, वेदप्रकाश आर्य, बलजीत आर्य, स्वतंत्र आर्य, नरेश आर्य, आर्य दिलबाग लाठर, देशराज आर्य, जोगिन्द्र सहित भारी संख्या में लोग मौजूद थे।