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इक धुएं का दरिया है, डूब के जाना है

05:42 AM Nov 29, 2024 IST

डॉ. हेमंत कुमार पारीक

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पहले कभी दिल्ली जाता रहता था। वजह थी दिल्ली का आकर्षण। कुतुब मीनार, लालकिला, तिहाड़ जेल और स्टेशन से लगी दीवारें। और उन दीवारों पर लिखे विज्ञापन। उन विज्ञापनों में कुछ खास बीमारियों की रामबाण दवाओं का जिक्र होता था। सबसे बड़ा विषय था शादी के विज्ञापन। शादी के लिए उकसाने वाले विज्ञापन। शादियां ही शादियां। एक बार मिल तो लें। मन में हूक उठने लगती। दीवार पर नजर स्थिर हो जाती। वैसे तो हर मर्ज के डॉक्टर होते हैं पर शादी कराने वाले? उन्हें तो पण्डित लिखना चाहिए। पता नहीं डॉक्टर कब इस प्रोफेशन में पड़ गए? मगर देश की राजधानी है इसलिए कोई टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं लगता। मन में आता है कि कहीं शादी भी मर्ज की श्रेणी में तो नहीं आ गई।
खैर, लौटकर आस-पड़ोस में यही चर्चा करता। कोई शादी की उम्र पार कर गया हो अथवा डिवाइडर पर खड़ा हो अथवा उससे नीचे अथवा जिसमें शादी की उतावली हो। उसे एक बार दिल्ली घूम आने की सलाह जरूर देता। अब चूंकि मेरे पास कोई चांस बाकी न था। शादी का लड्डू पच गया था। उसके हानि-लाभ का अनुभवी व्यक्ति था। उनके चेहरों पर शादी के प्रति उत्साह देख प्रफुल्लित हो जाता। आंखें भर आतीं। कह भी देता, ‘पहले दिल्ली जाओ। लौटते वक्त आगरे में हनीमून के लिए रुक जाना।’ अब आगरे में तो दो ही जगहें हैं देखने लायक। एक तो ताजमहल और दूसरा पागलखाना।
खैर, पता नहीं कितने फालोअर्स हुए। आज वाला इंटरनेट का जमाना तो था नहीं। वरना उनकी लिस्ट एक्स पर डाल देता। उन डॉक्टरों में से कटारनुमा मूंछ वाला एक जवां मर्द डॉक्टर तो अभी भी कभी-कभी सपने में आ जाता है। उस वक्त हड़बड़ा कर उठ बैठता हूं। पत्नी पूछती है, बुरा सपना देखा क्या? ...कौन थी वो?’
गुजरे जमाने की बातें हैं। काफी वक्त बाद अभी फिर एक शादी में जाने का मौका मिला। दिन के उजाले में आंखें फाड़े उन दीवारों को देख रहा था। दीवारें तो थीं पर नजर नहीं आ रही थीं। धुंधला रही थीं। तो फिर उन पर लिखा कैसे नजर आता? कुलियों की आवाजें थीं। रिक्शा, ऑटो और टेक्सीवालों की आवाजें थीं। दिल्ली धुएं का दरिया है, जरा संभल के आना जी। जिगर मुरादाबादी का शे’र जैसी लाइन थी। ये इश्क नहीं आसां इतना समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है। जीनियस टेक्सीवालों ने उसे अपने हिसाब से तोड़ लिया है। धुएं के कारण आदमी पहचान नहीं आ रहे थे। चारों तरफ भूत ही भूत थे। जैसे कि अक्सर फिल्मों में दिखाए जाते हैं।

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