बांग्लादेश से बिगड़ते रिश्तों के यक्ष प्रश्न
आपको चिटगांव जाना हो, तो सबसे शॉर्टकट रास्ता त्रिपुरा होकर है। गत 9 मार्च, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी, और उनकी तत्कालीन समकक्ष शेख़ हसीना ने मैत्री सेतु का उद्घाटन किया था। दक्षिणी त्रिपुरा के सबरूम कस्बे से मैत्री सेतु के बरास्ते सीमा पार कीजिये, और रामपुर पहुंच जाइये, जो चिटगांव का उपजिला है। मैत्री सेतु अब भी चालू है, लेकिन सीमा आर-पार से ‘मैत्री’ ग़ायब है। बुधवार को त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में, सनातनी हिंदू सेना ने बांग्लादेश के सहायक उच्चायुक्त के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ़्तारी को ‘अस्वीकार्य’ बताया, और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया, कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार हिंदू अल्पसंख्यकों और इस्कॉन पर बार-बार होने वाले हमलों के लिए ज़िम्मेदार है। प्रदर्शनकारियों ने कहा, ‘यह बर्बरता है। इस्कॉन ने बांग्लादेश में आपदा राहत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, फिर भी उस पर हमला हो रहा है।’
बांग्लादेश में जो कुछ इस समय हो रहा है, चिटगांव उसका अधिकेंद्र है। इसे एपीसेंटर बनाने में चिन्मय कृष्ण का बड़ा हाथ है। अपने धुआंधार धार्मिक भाषणों के लिए जाने जाने वाले चिन्मय कृष्ण, चिटगांव के सतकानिया उपजिला से हैं। उनके तीन नाम हैं, ‘चंदन कुमार धर प्रकाश’, ‘चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी’, और तीसरा नाम है, ‘शिशु बोक्ता’। उन्होंने कम उम्र से ही धार्मिक उपदेशक के रूप में अपनी लोकप्रियता के कारण ‘शिशु बोक्ता’ उपनाम अर्जित किया था। 2016 से 2022 तक, उन्होंने इस्कॉन के चिटगांव मंडल सचिव के रूप में कार्य किया। फिर, 2007 में चिन्मय कृष्ण, चिटगांव के हथजारी में पुंडरीक धाम के प्रधान बनाये गये।
आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस्कॉन बांग्लादेश ने स्पष्ट किया, कि चिन्मय कृष्ण दास (जिनकी गिरफ्तारी के कारण हाल ही में अशांति फैली), लीलराज गौर दास, और स्वतंत्र गौरांग दास सहित कुछ व्यक्तियों को पहले ही नियमों का उल्लंघन करने के कारण संगठन से हटा दिया गया था। इस्कॉन के महासचिव चारुचंद्र दास ने स्पष्ट किया कि उनकी कार्यशैली व्यक्तिगत थीं, और उनका इस्कॉन से कोई संबंध नहीं था। उन्होंने कहा, ‘इस्कॉन बांग्लादेश कभी भी सांप्रदायिक या संघर्ष-प्रेरित गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है। इस्कॉन, एकता और सद्भाव को बढ़ावा देना जारी रखेगा।’
देशव्यापी अशांति के बीच अगस्त, 2024 में ‘सनातन जागरण मंच’ का उदय हुआ। चिन्मय दास को इसका प्रवक्ता नियुक्त किया गया था। इस्कॉन का प्रतिनिधित्व करने की बजाय, चिन्मय कृष्ण बांग्लादेश के व्यापक हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने लगे। प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर चली गईं, तो बड़े पैमाने पर विद्रोह के दौरान कई हिंदू घरों और मंदिरों में तोड़फोड़ की गई। इसके जवाब में, यह मंच शुरू किया गया। हाल ही में सनातन जागरण मंच ने चिटगांव और रंगपुर में बड़ी रैलियां आयोजित कीं, जहां चिन्मय ने हिंदू समुदाय के अधिकारों की वकालत करते हुए जोशीले भाषण दिये थे। लेकिन क्या, ‘सनातन जागरण मंच’ के गठन, और उसे मिलने वाले फंड के पीछे रॉ की कोई भूमिका है? ढाका के पावर कॉरिडोर से इस बात का इशारा बराबर हो रहा है, मगर ‘ऑन द रिकार्ड’ अबतक किसी अधिकारी ने बयान नहीं दिया है।
25 अक्तूबर, 2024 को चिटगांव के न्यू मार्केट चौराहे पर बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा झंडा फहराने के आरोप में चिन्मय और 18 अन्य के खिलाफ देशद्रोह का मामला, 30 अक्तूबर को दर्ज किया गया था। इसी केस के सिलसिले में चिन्मय कृष्ण को ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस की डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) ने 25 नवम्बर, सोमवार को शाम 4:30 बजे हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया। मंगलवार को उन्हें चिटगांव की एक अदालत में पेश किया गया। अदालत ने चिन्मय कृष्ण को जेल भेजने का आदेश जैसे दिया, उनके अनुयायियों ने हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिये। कोर्ट परिसर में ही बेकाबू भीड़ ने एक युवा वकील सैफुल इस्लाम आलिफ को पीट-पीट कर मार डाला था। हिंसक भीड़ को काबू करने के वास्ते पुलिस फायरिंग भी हुई थी।
प्रदर्शनकारियों ने कोर्ट परिसर में वकीलों के चेंबर, और एक मस्जिद में भी तोड़फोड़ की थी। उत्पात में कुल 26 लोग घायल हो गए। उधर, शेख हसीना की पार्टी के छह लोग गिरफ्तार किये गए हैं। वकील अपने साथी की मौत के सवाल पर सड़क पर हैं। अंतरिम सरकार इसमें बुरी फंसी है। यह दिलचस्प है, कि चिन्मय कृष्ण के विरुद्ध देशद्रोह का मामला दर्ज करवाने वाले मोहम्मद फिरोज खान को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है। कोर्ट में हुई हिंसक घटना के बाद, मोहम्मद फिरोज खान को ‘सुरक्षा के लिए पुलिस हिरासत’ में रखा गया है। सीधी सी बात है, खालिदा जिया की पार्टी, ‘बीएनपी’ का एक प्यादा इस काण्ड में फंस चुका था। इसलिए, उसे दूध की मक्खी समझकर सस्पेंड किया गया।
सबसे मुश्किल स्थिति भारत-बांग्लादेश के बीच आई तल्खी को लेकर है, जो शेख हसीना के निर्वासन के बाद से रुक नहीं पा रही। अभी हाल में विदेश मंत्रालय के कुछ डिप्लोमेट मिले। उन्होंने स्वीकार किया कि बांग्लादेश की कूटनीति को हैंडिल करना, आज की तारीख में सबसे चुनौती भरा काम है। भारतीय मीडिया की भूमिका भी इस समय संबंधों के लिहाज़ से सकारात्मक नहीं है। मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के प्रेस विंग ने सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की वजह से भारतीय मीडिया को आड़े हाथों लिया है। अब निशाने पर हैं उद्योगपति अडानी। बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के कार्यालय ने कहा कि समिति वर्तमान में सात प्रमुख ऊर्जा और बिजली परियोजनाओं की समीक्षा कर रही है, जिसमें अडानी पावर का कोयला आधारित संयंत्र भी शामिल है।
ढाका ट्रिब्यून ने आज के सम्पादकीय में लिखा, ‘एक ऐसा देश जिसने बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उसकी हालिया आक्रामकता और अपनी सुविधा की सूचना देने की प्रवृत्ति हैरान करने वाली है। इससे भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह है, कि भारत ने बांग्लादेश के अंदरूनी मामले को ऐसे समय में उजागर किया है, जब उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा हुई है। हालांकि, यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि बांग्लादेश के आंतरिक मामलों से जुड़े प्रश्न बांग्लादेशियों को पूछने चाहिए। लेकिन, पूछ रहा है भारत।’
अंतरिम सरकार के सलाहकार आसिफ महमूद साजिब भुइयां ने पहले स्पष्ट किया था कि चिन्मय की गिरफ्तारी, देशद्रोह के आरोपों पर आधारित थी, न कि उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर। वास्तविकता यह है कि दोनों देशों के बीच शीर्ष स्तर पर भरोसे का भूस्खलन हुआ है। इसका डैमेज कंट्रोल कैसे होगा? बड़ा सवाल है!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।