हरियाणा में लचर सहकारिता को उबारने की जरूरत
रामकुमार तुसीर
सफीदों, 20 नवंबर
दक्षिणी राज्यों विशेषकर कर्नाटक में सफल सहकारिता के मुकाबले हरियाणा का सहकारिता सिस्टम काफी लचर है। प्रदेश के किसानों के इंटीग्रेशन टूर दक्षिण में ले जाकर उन्हें सफल सहकारिता की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है। यहां प्रदेश में ज्यादातर पैक्स (प्राथमिक कृषि सहकारी समिति) घाटे में हैं। पैक्स संस्थाओं को बहुउद्देसीय बनाने की प्रक्रिया चींटी की चाल में है। पैक्स के सदस्य परेशान हैं। हर 3 वर्ष के लिए निर्धारित की जाने वाली सदस्यों की अधिकतम ऋण सीमा (एमसीएल) वर्ष 2011 के
बाद से अब तक रिवाइज नहीं की गई है।
वर्ष 2011 में निर्धारित प्रति एकड़ प्रति फसल 9600 रुपये नकद व केवल 3400 रुपये खाद, बीज व दवा के लिए आज भी दिया जा रहा है, जबकि कृषि लागत पिछले 13 साल में काफी बढ़ चुकी है। केंद्रीय सहकारी बैंक शाखाओं पर लेनदेन को पैक्स निर्भर हैं। बैंक प्रशासन द्वारा पैक्स प्रबंधन के साथ ब्याज के मामलों में मनमानी करने के आरोप पैक्स कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों ने लगाए हैं। प्रदेश के भूमि विकास बैंक के करीब 88 प्रतिशत ऋण खाते एनपीए बताए गए हैं। वसूली लगभग ठप है। ऐसे खातों पर 50 प्रतिशत ब्याज छूट के बावजूद ऋण वसूली कमजोर है। देनदार ऋण माफी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। बैंक कर्मचारी संगठन के एक प्रतिनिधि ने आज कहा कि सरकार ने कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिश अनुसार भुगतान कर दिया है। पदोन्नति भी दे दी है। अब किसानों को सहारा देने की जरूरत है। उनका कहना था कि यदि डिफाल्टर सदस्यों का शतप्रतिशत ब्याज माफ कर दिया जाए तो मूलधन की वसूली मिलने से बैंकों में फिर चहल पहल लौट सकती है। हरियाणा प्रदेश के साथ ही एक नवंबर 1966 को अस्तित्व में आई हरियाणा सरकार की सहकारी संस्था हैफेड के अनेक कर्मचारियों व अधिकारियों पर गबन के आरोप लगते रहे हैं। सुधार आज भी ज्यादा नहीं है। प्रदेश में गैरसरकारी समितियों की स्थिति दयनीय है।
दक्षिणी राज्यों में सफल सहकारिता
दक्षिणी राज्यों में सफल सहकारिता का उदाहरण कर्नाटक के बेलगांव की श्री वीरेश्वर कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी का है। आज इसके अध्यक्ष जयानंद जाधव से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि वर्ष 1991 में तालुका स्तर पर 600 की सदस्यता के साथ पंजीकृत उनकी समिति के आज 3.10 लाख सदस्य हैं और लेन देन 4000 करोड़ रुपये का है। जाधव बताते हैं कि आज उनकी सहकारी समिति तीन प्रदेशों कर्नाटक, महाराष्ट्र व गोवा में काम कर रही है, जिसकी 220 शाखाओं में 1600 कर्मचारी काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2023-24 में उनकी समिति ने 40 करोड़ की आय अर्जित की है। वह कहते हैं कि उनकी समिति अपने सदस्यों से जमा पूंजी लेती है, जिस पर सदस्यों को 9 से साढ़े नौ प्रतिशत ब्याज का भुगतान किया जाता है। जरूरतमंद सदस्यों को 14 प्रतिशत वार्षिक के हिसाब से ऋण जारी करती है। सब कुछ पूरी पारदर्शिता से होता है। जाधव ने बताया कि आम सदस्यों की बैठक वर्ष में एक बार होती है, तब उन्हें 12 प्रतिशत डिविडेंड दिया जाता है। निदेशक मंडल की बैठक हर माह बुलाई जाती है। उन्होंने बताया कि लाभ का दो से तीन प्रतिशत भाग सदस्यों के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च के लिए निर्धारित रहता है। अध्यक्ष ने बताया कि सभी सदस्य निष्ठा से जुड़े हैं और मुश्किल से दो से तीन प्रतिशत सदस्य ही ऋण भुगतान समय पर नहीं कर पाते। उसका भी कोई विशेष कारण रहता है।