तेरे वादे में फूल कम और कांटे ज्यादा
विनय कुमार पाठक
आज गारंटी की चर्चा हर जुबान पर है। जनता के सेवक भांति-भांति की गारंटी जनता को उपलब्ध करवा रहे हैं। एक जमाना था जब कंपनियां अपने ग्राहकों को गारंटी दिया करती थीं। गारंटी यानी कि निश्चित अवधि में खराब होने पर उत्पाद को बिलकुल नए उत्पाद से बदल दिया जाएगा। वैसे उनकी भरपूर कोशिश यह होती थी कि उत्पाद निश्चित अवधि में खराब न हो ताकि उत्पाद बदलना न पड़े। इसके दो उपाय थे पहला कि अवधि कम रखो। इतनी कम कि उसमें कोई समान खराब ही न हो। दूसरा उपाय यह था कि उत्पाद को इतना बेहतर बनाओ कि वह निश्चित अवधि में खराब न हो। दूसरा उपाय थोड़ा मुश्किल था। साथ ही इस उपाय के चक्कर में उत्पाद सालों साल चलता था और नया माल बेचने का अवसर कम हो जाने का खतरा था। अतः पहले उपाय को ही अपनाया जाने लगा था।
जनता इतनी भोली-भाली है कि किसी उत्पाद के खराब होने पर किस्मत, ग्रह, नक्षत्र आदि का फेर मान कर खराब उत्पाद के साथ गुजारा कर लेती थी। पर एक वर्ग ऐसा भी था जो गारंटी कार्ड लेकर विक्रेता के सीने पर सवार हो जाता था। अतः गारंटी ने रूप बदल लिया और बन गया वारंटी। वारंटी के अंतर्गत सामान को बदलने के स्थान पर सामान की मरम्मत कर दी जाती है। अब गारंटी का जमाना गया वारंटी का आया।
पर इधर नेताओं ने भांति-भांति की गारंटी जनता को देनी शुरू कर दी हैं। एक दल दूसरे दल की गारंटी को फुसफुसिया बम बताता है तो अपनी गारंटी को एटम बम। और जनता के लिए सभी के सभी गारंटी वारंटी से भी गए बीते हैं। वे गारंटी देते हैं रोजगार का पर रोजगार के अंतर्गत ‘पकौड़ा-तलन’ को ही मुख्य रोजगार मानते हैं। आरक्षण की उनकी गारंटी तो है पर जहां आरक्षण है वहां रिक्त होते हुए भी कोई पद उपलब्ध नहीं है। हर वर्ष जिन बीस हजार युवकों को रोजगार दे रहे हैं उनमें पंद्रह हजार तो बस विभाग बदलते हैं।
बीमा की गारंटी तो दी गई है पर बीमा कंपनी के पास बहुतायत में दावा को अस्वीकृत करने के बहाने हैं जिनका प्रयोग कर दावा के वादा को तोड़ दिया जाता है। अच्छी सड़कों की गारंटी तो दी जाती है पर सड़कें अच्छी फाइलों में ही होती हैं। धरातल पर सड़कें और गड्ढे ‘हम बने तुम बने इक दूजे के लिए’ गाते हुए आलिंगनबद्ध हैं। ‘तेरे मेरे बीच जो आएगा जगह नहीं पाएगा’ के तर्ज पर। शहर को प्रदूषण मुक्त करने की गारंटी है पर इसके नाम करोड़ों के संयंत्र को अलसाने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर कथित रूप से वायु स्वच्छ करने वाली मशीनों के विक्रेताओं द्वारा क्रेताओं के धनचूषण कार्य ही गारंटीड है।
जनता इन गारंटियों की हकीकत से वाकिफ है और वह तो बस युग-युग से गीत गा रही है कि ‘झूठा है तेरा वादा वादा तेरा वादा। वादे में तेरे फूल हैं कम और कांटे हैं ज्यादा।’