बड़े धोखे हैं इस राह में
अंततः तालिबान ने भारत को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज ही दी, जैसी कि संभावना थी। भारत की तरफ से दबी जुबान में यह जरूर कहा जा रहा है कि मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे, मुझे गम देने वाले तू खुशी को तरसे। माना कि चीन और पाकिस्तान बिछे चले जा रहे हैं लेकिन तालिबान है कि भारत से नैन मटक्का करना चाह रहा है। उन्होंने सोचा था कि मछली को जाल में वे फंसा रहे हैं। यही सोचकर उन्होंने डोरे डाले थे लेकिन उसके मगरमच्छ होने की अभी तक वे कल्पना भी नहीं कर पाए हैं।
इधर मेरे एक मित्र के पास भी फ्रेंड रिक्वेस्ट आई है। जिस तरह से भारत को तालिबान पर भरोसा नहीं है, ठीक उसी तरह मेरे मित्र को उस दोस्ती के स्नेह निमंत्रण पर भरोसा नहीं है। उनको भी लग रहा है कि दोस्ती के जाल में वे ही क्यों! और फिर उसकी कीमत कितनी चुकानी पड़ेगी! क्या पता तालिबान की तरह बाद में खूंखार रूप दिखा दे।
मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तालिबान की तरह ही आखिर उस स्नेहीजन ने यह कैसे सोच लिया कि भारत की तरह वे लोनलीनेस फील कर रहे हैं! अरे भाई, भरा-पूरा परिवार है, हंसती-खेलती दुनिया है। फिर उन पर ही यह नजरें इनायत क्यूं। उधर भारत पसोपेश में है कि इस फ्रेंड रिक्वेस्ट पर क्या प्रतिक्रिया दे और इधर मेरे मित्र भी सोच में पड़ गये हैं कि करें तो क्या करें!
अब दोस्ती का स्नेह निमंत्रण है और सामने वाली कह रही है कि वह आपका अकेलापन दूर कर देगी। आपकी निजता का पूरा-पूरा ध्यान रखेगी। तब ऐसे में भरे-पूरे परिवार वाला भी अकेलापन महसूसते हुए ऐसी दोस्ती को हंसत-हंसते क़ुबूल फरमाना चाहेगा। लेकिन क्या पता तालिबान की तरह बाद में दुश्मन देश चीन-पाकिस्तान जैसों की बाहों में झूल जाए!
उधर तालिबान जैसे की दोस्ती का प्रस्ताव, जिसने अमेरिका जैसे को धूल चटा दी, भेजे तो गर्व से सीना चौड़ा करने का जी चाहता है। लेकिन जैसा कि कहा गया है कि ‘गुरु कीजै जान के और पानी पीजै छान के’ की तर्ज पर ही ‘दोस्ती कीजै जान के’ का गुरु ज्ञान बचपन में बड़े बुजुर्गों से मिलता रहा है लेकिन जिस तरह से क्रिकेट में बाहर की ओर निकलती बाल धाकड़ बैट्समैन को भी ललचा देती है और वह स्लिप में खड़े फील्डर को आसान-सा कैच थमा बैठता है, ठीक उसी तरह फिसलने और गलती कर जाने के अवसर जाने-अनजाने बन ही जाते हैं। बाद में आउट हो जाने के साथ पछताने के अलावा कुछ नहीं रहता। तब फिर इन दोनों को क्या करना चाहिए। क्या दोस्ती के आफर को ठुकरा देना चाहिए या कि आजमा लेना चाहिए।
कितने तो इस्लामी देश हैं और फिर पड़ोसी चीन और पाकिस्तान तो सरपरस्त हैं ही तब फिर भारत को ही फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने के पीछे क्या भेद है और इधर मित्र को स्नेह का खुला व्यक्तिगत निमंत्रण! बस इतना ही कह सकते हैं- ‘बाबूजी धीरे चलना, दोस्ती में जरा सम्भलना, बड़े धोखे हैं, इस राह में, जरा संभलना।’