पहचान को मोहताज विश्व प्रसिद्ध युद्ध का मैदान
बिजेंद्र सिंह/हप्र
पानीपत, 13 जनवरी
पानीपत का तीसरा युद्ध मकर सक्रांति के दिन 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया था। सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में मराठों ने वीरता का वो नमूना पेश किया था, जिससे एक बार तो अब्दाली भी दहल गया था। जंग जीतकर भी उसकी हालत पराजित जैसी ही थी। इस युद्ध में करीब 60 हजार मराठे वीरगति को प्राप्त हुए और अब्दाली के हिस्से सिर्फ जीत रही, बाकि उसका सबकुछ बर्बाद हो चुका था।
यह युद्ध जिस गांव सुवा खेड़ी की जमीन पर लड़ा गया था, उस गांव को मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने युद्ध से पहले जान-माल की हिफाजत के लिये खाली करवाया था और 1761 के बाद से ही गांव सुवा खेड़ी बेचिराग है। युद्ध के बाद से इस गांव में कभी चिराग नहीं जला लेकिन समय के साथ इसका नाम बदलकर सुवा खेडी से अब सिवाह खेड़ी हो गया। पानीपत तहसील के राजस्व रिकार्ड में सिवाह खेडी एक बेचिराग गांव है और इसका 326 हैक्टेयर का रकबा है। इसके साथ लगते गांव उग्राखेडी का सता इस बेचिराग गांव सिवाह खेडी का नंबरदार है और इसका अलग से पटवारी भी है। पानीपत का युद्ध स्मारक काला अम्ब भी इसी बेचिराग गांव सिवाह खेडी की जमीन में बना हुआ है। पानीपत का तीसरा युद्ध जिस स्थान पर लड़ा गया, वह क्षेत्र काला अम्ब के नाम से देश व विदेश में मशहूर हो गया लेकिन जिस गांव सुवा खेडी की जमीन पर तीसरा युद्ध हुआ था, उसको अब भी बहुत कम लोग जानते है। बेचिराग गांव सिवाह खेडी आज अपनी ही पहचान का मोहताज हो चुका है। इसी गांव की जमीन 264 वर्ष पहले 14 जनवरी 1761 को हजारों मराठाओं के रक्त से लाल हो गई थी।
जान माल की सुरक्षा के लिये भाऊ ने करवाया था खाली
पानीपत के इतिहासकार एवं साहित्यकार रमेश पुहाल के अनुसार मराठा सेनापति सदाशिव भाऊ मराठा सैनिकों के साथ सबसे पहले पानीपत के देवी मंदिर में पहुंचे थे। वहा पर उनको देवी मंदिर के पुजारी पंडित भाले राम मिले और उस समय के पानीपत नगर प्रमुख इफ्तिखार हुसैन भी देवी मंदिर में आ गये। उसके बाद सदाशिव भाऊ ने अपने तोपची इब्राहिम गार्दी, नगर प्रमुख इफ्तिखार हुसैन को साथ लेकर युद्ध के लिये सही जगह तलाश करने के लिये यमुना तक का दौरा किया। छोटी यमुना उस समय अब मौजूदा गांव बबैल व नंगला के बीच बहती थी। सदाशिव भाऊ को सुवा खेडी का क्षेत्र युद्ध के लिये उपयुक्त लगा। सुवा खेडी का क्षेत्र युद्ध के लिये उपयुक्त पाये जाने पर मराठाओं ने वहां अपनी सेना के मोर्चे बनाने शुरू कर दिये। सदाशिव भाऊ ने जान माल की कोई हानि न हो, इसलिये गांव सुवा खेडी के लोगों को आसपास के दूसरे गांव में भेज दिया था। देश का 1947 में विभाजन हुआ तो पाकिस्तान से आये उतमचंद चानना के पिता के नाम इस बेचिराग गांव को सरकार द्वारा अलॉट किया गया था।
संग्रहालय में है काला अम्ब पेड़ को काटकर बनवाया दरवाजा
इतिहासकारों के अनुसार, गांव उग्राखेडी के लाला शुगन चंद ने काला अम्ब पेड़ के सूखने के बाद उसके दो दरवाजे बनवाये थे। एक दरवाजा 1906 में महारानी विक्टोरिया करनाल आई तो उनको भेंट किया था। उसके बाद से एक दरवाजा करनाल के विक्टोरिया हाल में रखा हुआ था लेकिन वर्ष 2000 में पानीपत में बिंझौल नहर पर संग्राहलय बना तो उसके बाद से यह दरवाजा पानीपत संग्राहलय में रखा हुआ है।
महाराष्ट्र के सीएम, मंत्री करेंगे शिरकत
काला अम्ब स्थल पर 14 जनवरी को होने वाले कार्यक्रमों में पिछले करीब डेढ़ दशक में राष्ट्रपति, गवर्नर, कई मुख्यमंत्री, कई केंद्रीय मंत्री और हरियाणा व महाराष्ट्र के अनेकों मंत्री शिरकत कर चुके है। काला अम्ब को ऐतिहासिक धरोहर एवं पयर्टन स्थल के तौर पर विकसित करने को लेकर करोडों की घोषणाएं भी हो चुकी है लेकिन अभी तक भी काला अम्ब को सुविधाओं की दरकार है।