सोनीपत सीट पर आधी आबादी से सांसद पाने का इंतजार बढ़ा
हरेंद्र रापड़िया/हप्र
सोनीपत, 29 अप्रैल
अगर प्रमुख दलों की बात करें तो अब तक कांग्रेस ने 1977 और इंडियन नेशनल लोकदल ने 2004 में महिला को सोनीपत सीट पर अपना प्रत्याशी बनाया था। दुर्भाग्य से दोनों चुनाव हार गईं। ऐसे में सोनीपत सीट से आज तक कोई भी महिला संसद की दहलीज पर कदम नहीं रख पाईं। इसके लिए सोनीपत के मतदाताओं को अभी और इंतजार करना होगा। 1977 में जनसंघ ने मुख्यतार सिंह मलिक को अपना प्रत्याशी बनाया।
उनके मुकाबले कांग्रेस ने बहन सुभाषिनी को टिकट देकर मैदान में उतार दिया। सुभाषिनी खानपुर कलां में रहते हुए महिला गुरुकुल चला रही थीं, जो उनके पिता विख्यात समाजसेवी भगत फूल सिंह ने शुरू किया था। बाद में भगत फूल सिंह के नाम से गुरुकुल के स्थान पर ही भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय बनाया गया। चुनाव में सुभाषिनी को ख्याति के अनुरूप जनसमर्थन नहीं मिला और वह भारी अंतर से चुनाव हार गईं।
1980 में भी किसी भी पार्टी ने महिला को प्रत्याशी नहीं बनाया। इस चुनाव में चौ़ देवीलाल सांसद चुने गये। बाद में उनके इस्तीफा दिए जाने पर 1983 में इस सीट पर उपचुनाव कराया गया मगर महिलाओं को टिकट देने के मामले में कमोबेश स्थिति रही। इस चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री रिजक राम ने चौ़ देवीलाल को धूल चटाकर हरियाणा की राजनीति में हलचल मचा दी थी। 1984 में भी किसी भी राजनीतिक दल ने महिला को प्रत्याशी बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी लहर में कांग्रेस के धर्मपाल मलिक ने मामूली अंतर से चौ़ देवीलाल को शिकस्त दी। इस सीट पर देवीलाल की लगातार यह दूसरी हार थी। 1989 में भी महिलाओं के लिए हालात नहीं बदले और किसी भी प्रमुख दल ने सोनीपत सीट से उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। चुनाव में जनता दल के कपिल देव शास्त्री ने कांग्रेस के धर्मपाल मलिक को 71 हजार 4 मतों से शिकस्त दी। 1991 के चुनाव में कांग्रेस के धर्मपाल मलिक ने लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कपिल देव शास्त्री को 44802 मतों से हराकर हिसाब चुकता किया।
1996 के चुनाव में भी महिलाओं के लिए परिस्थितियां में कोई बदलाव नहीं हुआ। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे डॉ़ अरविंद शर्मा को इस चुनाव में 2 लाख 31 हजार 552 तथा समता पार्टी के प्रत्याशी पूर्व सांसद चौ़ रिजक राम को एक लाख 82 हजार 12 मत हासिल हुए। हविपा के अभय राम तीसरे व कांग्रेस के धर्मपाल मलिक चौथे स्थान पर रहे। इस तरह से पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी ने बाजी मारकर संसद में प्रवेश किया। 1998 में इनेलो से पूर्व मंत्री किशन सिंह सांगवान ने हविपा के अभय राम दहिया को हराया। 1999 में भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे किशन सिंह सांगवान ने करनाल सीट पर 4 बार सांसद रहे पंडित चिरंजीलाल को भारी मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की।
सत्तारूढ़ पार्टी भी नहीं कर पाई कमाल
2004 में भाजपा ने किशन सिंह सांगवान को एक बार फिर अपना प्रत्याशी बनाया। उनके मुकाबले सत्तारूढ़ पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक महेंद्र सिंह मलिक की पत्नी कृष्णा मलिक को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा। सत्तारूढ़ दल की प्रत्याशी होने के नाते इस बार उम्मीद थी कि सोनीपत को पहली महिला प्रत्याशी मिल सकती हैं, लेकिन यहां कड़ा मुकाबला हुआ। इसमें लगातार तीसरी बार किशन सिंह सांगवान जीत हासिल करने में कामयाब रहे। सांगवान को 2 लाख 33 हजार 477 मत, कांग्रेस के धर्मपाल मलिक को 2 लाख 25 हजार 908 और इनेलो की कृष्णा मलिक को एक लाख 98 हजार 866 मत प्राप्त हुए।
2009 में भी नहीं बदले हालात
2009 में एक बार फिर किसी भी प्रमुख दल ने महिला प्रत्याशी में भरोसा नहीं जताया। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जितेंद्र मलिक ने भाजपा के किशन सिंह सांगवान को 1,61,284 मतों से हराकर उनके जीत के सिलसिले पर ब्रेक लगा दिया। 2014 में भाजपा के रमेश कौशिक कांग्रेस के जगबीर मलिक को 77,414 मतों से शिकस्त दी। 2019 में भी सोनीपत लोकसभा सीट पर महिलाओं को लेकर कमोबेश हालात रहे। किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने महिला को टिकट नहीं दी। इस चुनाव में रमेश कौशिक ने मोदी लहर का भरपूर फायदा उठाते हुए दिग्गज नेता कांग्रेस प्रत्याशी को भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हराया। 2024 में भी किसी भी मुख्य राजनीतिक दल ने सोनीपत सीट पर महिला को प्रत्याशी बनाने में रुचि नहीं दिखाई। यानी सोनीपत की जनता को महिला सांसद के लिए अभी और इंतजार करना होगा।