पुनरुत्थान को प्रतिष्ठा देने वाला व्रत
चेतनादित्य आलोक
मत्स्य जयन्ती चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, जो इस बार 11 अप्रैल गुरुवार को पड़ रही है। संपूर्ण हिंदू समाज के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होता है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु, जिनका एक नाम ‘नारायण’ भी है, ने मध्याह्नोत्तर बेला में पुष्पभद्रा नदी के तट पर मत्स्य रूप धारण कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा और प्राणियों का कल्याण किया था। यही कारण है कि इस दिन मत्स्य अवतार में भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। मत्स्य अवतार भगवान श्रीविष्णु का पहला अवतार है। इसे उनके सभी अवतारों में एक महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है। मत्स्य जयंती व्रत चैत्र की नवरात्रि का तीसरा दिन होता है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन यानी चैत्र प्रतिपदा के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान श्रीहरि विष्णु ने अपना प्रथम अवतार ‘मत्स्य अवतार’ ग्रहण किया था।
बहरहाल, जीवन में पुनरुत्थान को महत्व एवं प्रतिष्ठा प्रदान करने वाला यह व्रत सनातन धर्मावलंबियों द्वारा देश भर में बड़े ही उत्साह और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न मंदिरों में धूमधाम से भगवान श्रीविष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और भागवत कथाओं का आयोजन किया जाता है। इस दिन धार्मिक स्थानों की यात्राएं करना एवं पवित्र नदियों आदि में स्नान और दान करने का बड़ा महत्व होता है। शास्त्रोक्त मान्यताओं के अनुसार इस पावन तिथि पर जो भी व्यक्ति मत्स्य रूप अवतारी भगवान श्रीहरि विष्णु के व्रत के हेतु संकल्पादि कृत्यों को पूर्ण करता हुआ पुरुषसूक्त या संबंधित वेदोक्त मंत्रों द्वारा मत्स्य रूप में लीलाधारी भगवान श्रीहरि का षोडशोपचार पूजन कर उनके प्राकट्य की लीला कथाओं का पाठ अथवा श्रवण तथा मंत्रों का जाप करता है, निश्चय ही उस भगवद्भक्त का मन, जीवन और आत्मा प्रकाशित हो संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान से संयुक्त हो जाता है।
‘ॐ मत्स्यरूपाय नमः’ मंत्र का जाप करना बेहद लाभकारी माना गया है। नदियों एवं अन्य जलकुंडों और जलस्रोतों में मछलियों को गेहूं के आटे की छोटी-छोटी गोलियां खिलाने तथा ब्राह्मणों, निर्धनों एवं अन्य जरूरतमंद लोगों को सात प्रकार के अनाजों का दान करने से भगवान श्रीहरि विष्णु प्रसन्न होते हैं।