वक्त की चाल में ढलने लगी है रंगोली
प्रभा पारीक
भारत देश कला के क्षेत्र में विविधता से भरपूर है। अनेक प्रकार की कलाओं के खजानों से भरा हमारा देश है। हमारे देश में हर त्योहार और हर उत्सव की अपनी एक विशेषता होती है। इनमें आंगन में रंगोली बनाने का भी अपना एक अलग महत्व है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, बंगाल, राजस्थान में आंगन में की जाने वाली चित्रकारी का भव्य रूप भले अलग-अलग हो, पर घर के आंगन, भगवान का मंदिर, तुलसी का चौरा, व रसोई घर के मुख्य दरवाजे, दहलीज को साफ-सुथरा कर रंगोली मांड कर पूजा के लिए तैयार किया जाता है। कुछ राज्यों में यह दिनचर्या के रूप में किया जाता है। महाराष्ट्र में प्रतिदिन देव स्थान पर रंगोली की जाती है। बंगाल में कुछ जगहों पर हर त्योहार, उत्सवों के अवसर, विवाह आदि पर रंगोलियां बनाई जाती हैं।
गुजरात में दीपावली के पंद्रह दिन, अर्थात कार्तिक सुद ग्यारस से लेकर देवउठनी ग्यारस तक, रोज नई रंगोली बनाने की प्रथा है। दिवाली के उन पांच दिनों में रंगोली कुछ अलग होती है, जैसे धनतेरस को लक्ष्मी गणेश के संग शुभ लाभ की रंगोली, काली मैया की आकृति की काली चौदस को कुबेर या काली मां के साथ कलश, कमल, शंख आदि, और दीपावली के दिन लक्ष्मी पाद, शंख, चौका दीपकों की छटा के साथ।
दीपावली का अगला दिन गुजरात में नव वर्ष के आगमन का दिन माना जाता है। नववर्ष शुभ कामनाओं का और अगले दिन भाई-बहन के पवित्र प्यार भरे संबंध का। इस तरह हर दिन गुजरात की महिलाएं, पुरुष, बच्चे मिलकर अपने घर के आंगन, चौक, बरामदों अथवा मोहल्ले के आंगनों व मंदिरों, घर की दहलीज में तरह-तरह की रंगोली बनाकर दीपावली मनाते हैं।
महिलाएं सुबह जल्दी उठकर आंगन में पिछले दिन का कचरा साफ करके पुरानी रंगोली को साफ करती हैं, उस पर गेरू का पोता करके पुनः नई रंगोली बनाती हैं। सामान्यतः परंपरागत रंगोली लाल मिट्टी, गेरू, हिरमच, चूने, हल्दी, चावल के आटे से बनाई जाती है। लेकिन गुजरात में इसके लिए अनेक तरह के चूने से बने रंगों से बाजार सज जाता है। यह रंग दीपावली के पहले से ही बाजारों में मिलने लगते हैं। इसमें सफेद चूने का पाउडर प्रमुख होता है, जिससे रंगोली की बाह्य रेखा को आकार देने के लिए प्रयोग किया जाता है। अन्य रंगों की मदद से रंगोली को सुंदर रूप दिया जाता है।
आज के आधुनिक युग में रंगोली विभिन्न वस्तुओं से बनाने का चलन बढ़ा है, जैसे परंपरागत रंगोली, फूलों की रंगोली, तरह-तरह के रंगों से बनी रंगोली, साबुत नमक से बनी रंगोली, कागज के कतरन से बनी रंगोली, दाल-चावल से बनी रंगोली, इसके अलावा कांच की चूड़ियों के टुकड़ों से बनी रंगोली, मसालों से सजी रंगोलियां, तरह-तरह के बटनों से, फूल-पत्तों से, मोतियों से व धागों से रंगोली बनाई जाती है।
परंपरागत रंगोली में अब भी चूना, गेरू, हल्दी व चावल का आटा व फूलों का ही प्रयोग होता है। चित्रकारी का ही एक रूप है रंगोली, पर इसमें किसी कूची या साधन का उपयोग नहीं होता। बस सधे हुए हाथों से रंगों को इस तरह फैलाना होता है कि एक सुंदर कलात्मक रचना तैयार हो जाए। राजस्थान में गीले चूने व हिरमच से जो मांडने बनाये जाते हैं।
जिस तरह हर विषय में समाज में आधुनिकता आई है, नयापन आया है, उसी तरह इसका रूप भी थोड़ा आधुनिक होने लगा है। जैसे राजस्थान में परंपरागत मांडनों का स्थान स्टीकरों ने ले लिया है। महाराष्ट्र में विवाह के उपलक्ष्य में थाली के चारों ओर बनने वाली रंगोली का स्थान मोतियों की लड़ियों व झालरों ने ले लिया है। इसे हम आधुनिक रंगोली भी तो कह सकते हैं।