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नेताओं की टर्र-टर्र और महिमा टमाटर की

06:42 AM Jul 13, 2023 IST
नेताओं की टर्र टर्र और महिमा टमाटर की
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सिंघई सुभाष जैन

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जो चिल्ला-चिल्ला कर एक रुपये किलो में नहीं बिक पाता था अब डेढ़ सौ पार कर गया है टमाटर। आगामी महीनों में विधानसभा चुनाव होना है। राजनीतिक दल यही कह रहे हैं कि वे डेढ़ सौ पार कर लेंगे। टमाटर ने तो चुनाव के पहले ही उनके लक्ष्य को चुनौती दे डाली। खबर यह भी है कि अब आगामी महीनों में चुनावी सभाएं होंगी। सभाओं में नेताओं के स्वागत-सम्मान के लिए अभी से ही टमाटरों को गोदाम में एकत्रित किया जा रहा है। जनता मितव्ययी रास्ता चुनती है अतः सम्मान फल के बतौर टमाटर चुन लिया गया है। टमाटर की गेंदबाजी से अच्छे-अच्छे नेताओं के चेहरों के भाव लाल-पीले देखे जा सकते हैं।
टमाटर पहले तो सभी तरकारियों से गठबंधन कर लेता था। लेकिन अब वह अपने पैरों पर बलपूर्वक शान से खड़ा हो गया है। एकला चलो रे वाला भजन गा रहा है। वो अब सब्जबाग से दूर रहकर अमृत की भांति सब्जी के बघार में आचमन बन गया है। पहले तो घर में कोई भी सब्जी न होने पर टमाटर मसलकर नमक लगाकर रोटी खा लिया करते थे। अब वो संभ्रांत वर्ग में सम्मिलित हो गया है। दर्शन दुर्लभ हो रहे हैं। सब्जियों के ठेले पर उपभोक्ता उसे स्पर्श कर सुख का अनुभव कर रहे हैं।
चुनाव के पहले जनता को पेट्रोल के भाव विस्मरण करवाने के लिए सत्ता से गठजोड़ कर बैठा है टमाटर। लोगबाग अब पेट्रोल की नहीं टमाटर की चर्चा में लग गए हैं। वर्षा अच्छी हो रही है। बोवनी का समय शुरू हो गया है। किसान सोच रहे हैं कि क्या बोएं! टमाटर के सौदे नकद के होते हैं। सोयाबीन बोएं या टमाटर!
चुनावी वातावरण में नेताजी मेढक की भांति इस पलड़े से उस पलड़े में जाते हुए दिखाई देते हैं। मेढक की टर्र-टर्र से टमाटर को नैतिक शाब्दिक बल मिल रहा है। तिराहे-चौराहे पर खड़े होकर यहां-वहां घूमते शोहदे आजकल हाथों में टमाटर लिए दिखाई दे रहे हैं। आसपास की फूलों की दुकान ठप हो गई है।
हमारे यहां एक क्रीड़ा प्रतियोगिता आयोजित हो रही है। प्रथम पुरस्कार एक कैरेट टमाटर है। द्वितीय पुरस्कार एक डलिया भर टमाटर है। तृतीय पुरस्कार दोनों हथेलियों में भर टमाटर है। सभी प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार में एक-एक टमाटर रखे ग‌ए हैं।
गुलदस्तों में फूल कम टमाटर ज्यादा बांधे जा रहे हैं।
नये गीत का सृजन हो गया है— छू लेने दो इन टमाटरों को कुछ और सब्जी नहीं है।
पड़ोसनें सुबह व संध्या के समय घर की खिड़कियां बंद रखने लगी हैं। क्या पता ये स्वर गूंजने लगे— एक टमाटर देना। सब्जी बघारनी है।

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