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बड़ोग की वो सुरंग, जिसके सिरे कभी नहीं मिले

10:37 AM Apr 14, 2024 IST
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यशपाल कपूर
हिमाचल के सोलन स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बड़ोग अपनी प्राकृतिक सुंदरता व जलवायु के चलते पर्यटकों को बेहद पसंद है। प्रतिवर्ष लाखों टूरिस्ट बड़ोग आते हैं। यहां कई नामी होटलों के अलावा देश की नामी हस्तियों के आशियाने भी हैं। हालांकि बड़ोग का परिचय यहीं तक पूरा नहीं हो सकता। बड़ोग एक ब्रिटिश इंजीनियर का नाम था, जिसके नाम पर सोलन के इस रमणीक स्थान का नाम बड़ोग पड़ा। इसके नामकरण के पीछे एक दुखद इतिहास छिपा है। इंजीनियर बड़ोग की आत्महत्या के बाद इस स्थान का नाम बड़ोग रख दिया गया, जिससे वह ताउम्र जिंदा रहेंगे।
अति उत्साह में हुई अलाइनमेंट की चूक
कालका-शिमला रेलवे ट्रेक को बनाने का जिम्मा इंजीनियर बड़ोग पर था। बड़ोग ने पहाड़ पर दक्षिणी और उत्तरी सिरे से जब सुरंग खोदने का काम शुरू किया तो सुरंगों के सिरे नहीं मिले लेकिन इसी असफलता ने बड़ोग को अमर कर दिया। पहाड़ में सुरंग खोदने के लिए दक्षिणी और उत्तरी दोनों सिरों से इंजीनियर बड़ोग ने सुरंग का काम शुरू करवाया। पहाड़ी क्षेत्रों की इंजीनियरिंग कला में माहिर बड़ोग के भीतर शिमला तक रेल लाइन बिछाने की काफी जल्दी थी। अति उत्साह में बड़ोग पहाड़ की एलाइनमेंट में चूक गए। इन दोनों सुरंगों के सिरे आपस में नहीं मिले। लोग बताते हैं कि एक-एक सुरंग की उतनी खुदाई हो चुकी थी, जितनी से दोनों सिरों को मिलाना था। 80-80 फीसदी सुरंग का काम होने पर भी सुरंगों के किनारे एक-दूसरे से नहीं मिले।
पश्चाताप
कहते हैं कि इस सुरंग के निर्माण में काफी राशि खर्च हो चुकी थी और अन्य नुकसान इसमें झेलने पड़े थे। अंग्रेजी सरकार ने इस चूक के लिए इंजीनियर बड़ोग पर एक रुपए जुर्माना लगा दिया। कर्नल बड़ोग निराश हो गये। उनके मन में विचार आ गया कि ‘मैं कैसा इंजीनियर हूं, जिसने सरकारी पैसे को बर्बाद किया और जो मज़दूर कार्य करते समय दब कर मर गए, उन सबका मैं ही जिम्मेदार हूं। नुकसान की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बड़ोग ने पहले अपने पालतू कुत्ते और बाद में खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी। हालांकि ऐसा कदम सही पश्चाताप नहीं हो सकता, पर आत्मग्लानी और उच्च नैतिक आदर्शों का पालन करते हुए बड़ोग ने यह कदम उठाया।


कालका-शिमला सेक्शन की सबसे लंबी सुरंग
इंजीनियर बड़ोग की मौत के बाद चीफ इंजीनियर एचएस हैरिंग्टन ने इसे नए सिरे से आरंभ कर सुरंग को बनाया, जिसकी लम्बाई 1143 मीटर है। यह कालका-शिमला सेक्शन की सबसे लंबी सुरंग है। इस कार्य में सोलन जिला की पर्यटन नगरी चायल के समीप गांव झाझा निवासी बाबा भलकू (आध्यात्मिक साधू) ने हैरिंग्टन की काफी मदद की। बड़ोग सेक्शन का सबसे स्वच्छ सुंदर स्टेशन है। यहां पहले भाप इंजन के लिए कोयला व पानी की पर्याप्त सुविधा थी और अधिकारियों ने अपना विश्राम गृह भी बनवाया।
इंजीनियरिंग का एक अनूठा नमूना
बड़ोग स्टेशन काफी ऊंची पहाड़ियों के आगोश में बना है जहां गर्मियों में पर्यटक काफी आते हैं। लार्ड कर्जन के समय में पहली गाड़ी 9 दिसंबर 1906 को शिमला पहुंची। यह सेक्शन इंजीनियरिंग का एक अनूठा नमूना है। इसीलिए इसे यूनेस्को ने वर्ष 2008 में विश्व धरोहर में शामिल किया। इस सेक्शन पर चलने वाली हर अप-डाउन गाड़ी 10 मिनट का ठहराव लेती है क्योंकि यात्रियों को भोजन एवं चाय-नाश्ता की सुविधा भी उपलब्ध है। यात्री फोटोग्राफी भी काफी करते हैं। बॉलीवुड की कई फिल्मों की शूटिंग भी बड़ोग में हो चुकी है। फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने हाल ही में अपनी फिल्म ‘मैट्रो इन दिनों’ की शूटिंग की।
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मौजूद हैं सुरंगों के दोनों सिरे
बड़ोग ने जिस सुरंग के दोनों सिरों को मिलाने का प्रयास किया, भले ही वह प्रयास सफल न रहा, लेकिन सुंरग के दक्षिणी व उत्तरी सिरे अभी भी मौजूद है। उसी भव्यता में, उसी शैली में जैसे बड़ोग छोड़ गया था।
गुमनाम ही रहा दक्षिणी सिरा
दक्षिणी सिरा कुमारहट्टी के समीप वर्तमान में निजी स्वामित्व वाली भूमि पर है। इस पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया, जो भी आते हैं वह उत्तरी सिरे को बड़ोग सुरंग मान लेते थे। कहते हैं कि यह वह सिरा है, जिसे पहले खुदवाना प्रारंभ किया था। आज दक्षिणी सिरे की टनल लगभग 100 मीटर के बाद बंद कर दी गई है। फिर भी भीतर जाने पर उसकी भव्यता मौजूद है। उसी सूरत में ऊपर का हिस्सा जैसे कटा था, तीखी नुकीली चट्टानें, एक बूंद भी रिसता पानी नहीं। भीतर जाकर अहसास होता है कि कैसे सीमित संसाधनों में मजदूरों ने इन सख्त पत्थरों को काटा होगा। यह सिरा कालका-शिमला नेशनल हाईवे से महज 10 मिनट चलकर दिखता है। अधूरी सुरंग का दक्षिणी सिरा इसलिए गुमनामी में रहा, क्योंकि नई बड़ोग सुरंग निकाल गई। इससे बड़ोग की अधूरी सुरंगों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। उत्तरी सिरे पर इंजीनियर बड़ोग ने सुसाइड किया था, यहां बड़ोग और उसके कुत्ते की कब्र थी। इसलिए उत्तरी सुरंग लोगों की नजर में रही। दक्षिणी सुरंग आजादी के बाद निजी स्वामित्व में आ गई व गुमनामी ने चली गयी।
उत्तरी छोर ही रहा मालूम
उत्तरी सिरा हिस्सा बड़ोग रेलवे स्टेशन से 1700 मीटर की दूरी पर स्थित है। आज भी यह भाग करीब 300 मीटर कायम है। करीब 120 साल पुरानी सुरंग का यह हिस्सा बिल्कुल तैयार किया हुआ है। इसके अंदर ठंडा पानी उपलब्ध है। यहां से पाइप लाइन के जरिये बड़ोग रेलवे स्टेशन तक पानी पहुंचाया जाता रहा है। कहते हैं इसी स्थान पर बड़ोग ने पहले अपने कुत्ते और फिर खुद को गोली मारी थी।
बाबा भलकू बने अंग्रेज इंजीनियरों के मार्गदर्शक
कालका से शिमला तक चलने वाली छुक-छुक रेलगाड़ी का ट्रैक बनाने में जब अंग्रेज इंजीनियरों के पसीने छूट गए थे तो उनकी मदद स्थानीय अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलकू ने की थी। उसने अंग्रेजों को पटरी बिछाने का जो रास्ता दिखाया था, उस पर चल कर रेल ट्रैक बिछाया गया और केंद्रीय सत्ता के गलियारे शिमला की पहाड़ियों तक पहुंच गए। वर्ष 2008 में इस ट्रैक को यूनेस्को ने वर्ल्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया।
कालका-शिमला रेलवे लाइन एक नजर में
विशेष धरोहर वाली सूची में कालका-शिमला रेलवे को स्थान दिया गया। कालका से शिमला तक खूबसूरत पर्वतीय क्षेत्र में 96.6 किलोमीटर रेलमार्ग पर 2 फुट 6 इंच चौड़ी नैरोगेज लाइन बिछाई गई। इस ट्रैक पर 9 दिसंबर 1906 को पहली बार यह रेललाइन यातायात के लिए खोली गई। इस पर पहले भाप के इंजन दौड़ते थे। वर्ष 1965 में पहली बार इस ट्रैक पर डीजल इंजन चलाया गया। वर्तमान में इस ट्रेक पर 10 ट्वॉय ट्रेन दौड़ रही हैं।

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