अनुभूतियों से सराबोर चिट्ठियों की सोंधी महक
दीपिका अरोड़ा
पारंपरिक भावाभिव्यक्ति विधा द्वारा रिश्तों में आत्मीयता-बोध करवाने के उद्देश्य से हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद ने मिशन ‘निपुण’ के अंतर्गत एक उत्कृष्ट पहल का बीड़ा उठाया है। अभियान का केंद्रीय विषय जहां भावी पीढ़ी को पत्र लेखन की समृद्ध परंपरा से परिचित करवाना है, वहीं रिश्तों के महत्व का अहसास दिलाना भी है। इसी के दृष्टिगत, सरकारी विद्यालयों में कक्षा तीन से पांचवीं तक के विद्यार्थियों को रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में अपने भाई-बहनों को पत्र लिखने हेतु प्रेरित किया जा रहा है।
लगभग छह लाख पत्र लिखवाने के विभागीय लक्ष्य में, पत्र लिखने संबंधी संख्या निर्धारित करने एवं लेखन अभ्यास में बतौर सहायक परिवारजनों का विशेष योगदान रहेगा। अभिभावकों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पोस्टकार्ड खरीदने से पोस्ट करने तक की समूची प्रक्रिया के दौरान बच्चे पोस्ट ऑफ़िस में उनके साथ मौजूद रहें ताकि उन्हें व्यावहारिक ज्ञान मिल सके।
रफ़्तार के युग से कदमताल मिलाती वर्तमान पीढ़ी के लिए भले ही अनौपचारिक पत्राचार आश्चर्य का विषय हो किंतु देश में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो पत्र लेखन विधा के ख़ासे मुरीद हैं। उनमें से बहुतेरों ने समय का वह स्वर्णिम दौर देखा है, जब साइकिल की घंटी टनटनाते हुए डाकिए का पधारना किसी आत्मीय के शुभागमन से कम सुखद नहीं जान पड़ता था। दूर-दराज बैठे संबंधियों का कुशल-क्षेम जानकर भावातिरेक में नयन सहसा ही छलक उठते। आत्मग्लानि के बोध में भीगी पाती अंतर में उलझी सभी गांठें खोल डालती। हल्दी-रोली से अलंकृत चिट्ठियां दूर ही से ‘सर्वमंगलम्’ का पूर्वाभास करा जातीं तो संक्षिप्त शब्दों में सिमटे तार होनी-अनहोनी की आशंका में कुलबुलाते हृदय धड़का जाते। समाचार कैसा भी हो; जुड़ाव का सर्वाधिक सरल, सुलभ एवं सशक्त माध्यम पत्र ही थे।
यद्यपि तकनीकी प्रगति ने पत्राचार को काफी हद तक प्रभावित किया तथापि भाव-प्रकाट्य के दृष्टिकोण से पत्राचार का महत्व आंकें तो प्रासंगिकता आज भी पूर्ववत् ही जान पड़ेगी। दरअसल, पत्र लेखन साहित्य की वह महत्वपूर्ण विधा है, जिसके द्वारा स्वभावतः अंतर्मुखी व्यक्ति भी निज हृदयोदगार सहजता से दूसरों तक सम्प्रेषित कर सकता है। व्यावहारिक जीवन में इसे सेतु की संज्ञा दे सकते हैं, जिसके माध्यम से मानवीय संबंधों की परस्परता पल्लवित होती है। एक ऐसा माध्यम, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भी भावनात्मक संगमस्थल पर निकटतम् ला खड़ा करे।
एक अंग्रेज़ी विद्वान के अनुसार, ‘जिस प्रकार कुंजियां बक्सा खोलती हैं, उसी प्रकार पत्र हृदय के विभिन्न पटल खोलते हैं।’ पत्र लेखन अपने आप में एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है, जो व्यावसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में अधिक होती है। मानवीय विचारों के संप्रेषण में आज भी पत्राचार सशक्त भूमिका का निर्वाह करता है। शब्दों रूपी दर्पण से न केवल लेखक की व्यक्तिगत भावनाएं झलकती हैं अपितु उसका समूचा व्यक्तित्व ही प्रतिबिम्बित हो उठता है। संभवतः इसी कारण आधुनिक युग में पत्र लेखन को ‘कला’ की संज्ञा दी गई है। इनके माध्यम से होने वाली कलात्मक अभिव्यक्तियों को आधुनिक साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया गया।
भले ही तकनीकी सुलभता के चलते आज हम पलक झपकते ही अपना संदेश लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा सकने का सामर्थ्य रखते हैं किंतु निश्छल भावों व स्वाभाविक विचारों का आदान-प्रदान स्वलिखित पत्रों द्वारा ही संभव हो पाता है। शाब्दिक सामीप्य की अनुभूति सीधे अंतर्मन में प्रविष्ट होकर अलसाई संवेदनाओं को नवस्फूर्त बना डालती है, यांत्रिक कृत्रिमता में अपनत्व के सोंधेपन की महक़ कहां? कदाचित भावनाएं प्रबल हों किंतु स्वभाव संकोची हो तो सामाजिक संबंधों को सुदृढ़ करने में पत्राचार से बड़ा सहोदर शायद ही कोई बने!
कभी-कभार कोई पत्र भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भी बन जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1928 में जेल प्रवास के दौरान बेटी इंदिरा को लिखे पत्र सभ्यता, मज़हब तथा भारतीय संस्कृति की सर्वाधिक सुंदर परिभाषा हैं। ‘लेटर फ्रॉम फादर टू हिज़ डॉटर’ नाम से संकलित इन पत्रों ने पिता-पुत्री के मध्य भावनात्मक जुड़ाव को इतना सशक्त कर दिया कि भविष्य ने प्रधानमंत्री के रूप में भारत को एक ‘आयरन लेडी’ देने की ठान ली। दूर रहकर भी आत्मीय संवाद बनाए रखने वाले पिता की भूमिका में लिखा प्रत्येक पत्र संस्कार-सीख की अनुकरणीय पूंजी है, जिसने किशोर इंदु के मन में सांस्कृतिक पहलुओं की बृहद एवं सर्वसांझी सोच विकसित की। उत्कंठित हृदय में राजनीतिक कौशल का बीजारोपण किया, सामाजिक उत्थान को संवर्धित करने का हुनर सिखाया।
लुप्तप्राय स्थिति से जूझती पत्र लेखन विधा एवं शुष्कप्राय पड़ते रिश्तों को संपुष्ट करने के उद्देश्य से हरियाणा सरकार द्वारा चलाया जा रहा यह प्रशंसनीय अभियान जहां बच्चों को आधुनिक तकनीक के साथ-साथ पुरातन परंपराओं से जोड़े रखेगा, वहीं मृतप्राय बनते सामाजिक संबंधों को संजीवित करने में भी प्रभावशाली सिद्ध होगा। लेखन अभ्यास की सतत् प्रक्रिया वर्तनी व भाषा प्रयोग में वांछित सुधार लाते हुए भविष्य में अनेक साहित्यिक प्रतिभाओं को भी जन्म देगी। पारंपरिक अनुभूतियों से सराबोर पाती यदि समाज की भौतिकतावादी सोच को सारगर्भित दिशा दे पाए तो सामाजिक स्तर पर अशक्त होते संबंधों को कभी-कभार शाब्दिक घुट्टी पिलाने में हर्ज़ ही क्या है?