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सामने मौत, फिर भी अंतिम सांस तक लड़ने के जज्बे की कहानी

07:37 AM Jul 26, 2024 IST
सामने मौत  फिर भी अंतिम सांस तक लड़ने के जज्बे की कहानी
कारगिल युद्ध के दौरान साथी सैनिकों के साथ संजीव राणा।  -हप्र
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ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 25 जुलाई
कारगिल की जंग करीब दो महीने तक चली और भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानी घुसपैठियों को घुटने टेकने पड़े। देश की रक्षा करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले जांबाजों में कैथल के वीर सैनिक भी शामिल हैं। इन जवानों में कैथल जिले के ट्यौंठा गांव के संजीव राणा को 25 साल पहले लड़ी गई कारगिल की लड़ाई आज भी अच्छे से
याद है।
संजीव राणा बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई का जिक्र आते ही वो मंजर उनकी आंखों के घूमने लगता है। साहसी सैनिक संजीव राणा कारगिल की जंग से दो वर्ष पूर्व ही 11 राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उनकी टुकड़ी को ग्लेशियर में भेज दिया था। इसके बाद जब वे वापस दिल्ली के लिए लौटने की तैयारी कर रहे थे तो उसी दौरान कारगिल में दुश्मन ने कुछ हिस्से पर कब्जा करना शुरू कर दिया। इसके बाद संजीव की टुकड़ी को कारगिल जाने के आदेश हो गए।

कैथल में एसपीओ संजीव राणा को सम्मानित करती पुलिस अधीक्षक उपासना।  -हप्र

संजीव राणा बताते हैं कि जून, 1999 में हमारी टुकड़ी ग्लेशियर से अपना जरूरी समय पूरा कर दिल्ली आने की तैयारी कर रही थी। जब ग्लेशियर से चले तो रास्ते में सूचना मिली की कारगिल में कुछ हिस्से में पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कब्जा कर लिया है और काफी अंदर तक घुस आए हैं। इसके बाद उनकी टुकड़ी को कारगिल पहुंचने के आदेश हुए। कारगिल में जब हमने सेक्टर तुर्तक में तोलोलिंग पहाड़ी की तरफ कूच किया तो दुश्मनों ने हमारे ऊपर फायरिंग शुरू कर दी। 10 लोगों की हमारी टुकड़ी में से 4 जवान शहीद हो गये। दुश्मनों के साथ छिड़ी इस जंग में अंबाला के राइफल मैन प्रवेश कुमार, राजस्थान के हवलदार कांग सिंह, नायब सूबेदार मंगेज सिंह व लेफ्टिनेंट हीनफुद्दीन शहीद हो गए। हिम्मत ऐसी कि सामने मौत, फिर भी अंतिम सांस तक लड़ने का जज्बा कम नहीं था। मौत को नजदीक देख भी हमारी टुकड़ी पीछे नहीं हटी और बाद दुश्मन को मार गिराकर आखिरकार तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा कर लिया।
इस जंग में हम कई दिन तक भूखे प्यासे रहे, क्योंकि नीचे से ऊपर खाने-पीने का सामान नहीं पहुंच रहा था। शुरुआत में जो पूरी और बची-खुची सब्जी साथ लेकर चले थे, वही कई दिन तक खाकर लड़ाई में लगे रहे। प्यास लगी तो मिट्टी के तेल की जो कैनी थी उसी में पानी लाकर पीया। तेल की कैन में काफी दुर्गंध आती, लेकिन लाचारी और प्यास के आगे हम बेबस थे।
कारगिल फतेह करके जब करीब एक वर्ष बाद घर लौटे तो लोगों ने जो प्यार और स्नेह लुटाया तो मानो जंग की सारी थकान उतर गई हो। सम्मान इतना कि बस में बैठने के लिए सम्मान के लिए बस की पिछली सीट खाली कर दी गई। कंडकर ने टिकट तक नहीं काटी।
बता दें कि फिलहाल संजीव राणा हरियाणा पुलिस में कैथल में एसपीओ के पद पर कार्यरत हैं। पिछले दिनों पुलिस अधीक्षक उपासना ने उन्हें उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित भी किया।

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