संतों के दरबार की ओर बढ़ा कदम यज्ञ के समान : हुजूर कंवर साहेब
भिवानी, 21 अप्रैल (हप्र)
संतों के दरबार की तरफ बढ़ाया गया एक-एक कदम यज्ञ के समान है। संत जीव से तन मन धन की बाजी लगवाते हैं। भक्ति करने वालों के लिए बाजी परमात्मा से ही लगती है। यह एकमात्र ऐसी बाजी है, उसमें हर तरह से यह बाजी लगाने वाला भक्त ही जीतता है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि दुनियादारी की सारी बाजियों में जीतने वाला तो लाभ में रहता है और हारने वाले हानि में लेकिन परमात्मा से खेली बाजी में अगर हम जीतते हैं तो भी लाभ में रहते हैं और हारते हैं तो भी। गुरु महाराज जी ने कहा कि इस बाजी में आनंद भी तभी है, जब हम अपना सर्वस्व लगा देते हैं। सतगुरु से दीक्षा के समय ही गुरु आपसे आपका तन मन और धन ले लेता है और बदले में आपको वो मार्ग देता है, जिसे अपना कर आप परमात्मा के घर को पा सकते हो। नाम दान से बड़ा दान नहीं है, क्योंकि यह आपको जगत से ऊपर उठाकर अगत से जोड़ता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि बिना नाम के ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा की मुक्ति के भी चार प्रकार हैं, सालोक सामीप्य सायुज्य और सरूप। इन सबमें सबसे उत्तम है सरूप भक्ति क्योंकि ये भक्ति की वह अवस्था है जिसमे भक्त और परमात्मा एक रूप हो जाते हैं।