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एआई के प्रसार से बढ़ा जैविक हथियारों का खतरा

06:26 AM Apr 23, 2024 IST
एआई के प्रसार से बढ़ा जैविक हथियारों का खतरा
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मुकुल व्यास

दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का जोर बढ़ रहा है। कृत्रिम बुद्धि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी जड़ें फैला रही है। हालांकि स्वास्थ्य, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में इसके नवीनतम प्रवेश ने उत्साह के साथ-साथ कुछ चिंता पैदा भी की है। क्या एआई द्वारा डिजाइन किए गए प्रोटीन किसी दिन जैविक हथियारों की तरह खतरा पैदा कर सकते हैं? यह उन शोधकर्ताओं के मन में सवाल है जो अब प्रोटीन डिजाइन प्रौद्योगिकी के नैतिक उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपायों की वकालत कर रहे हैं। पूरी तरह से नए प्रोटीन का मंथन करने में सक्षम एआई टूल किसी साइंस फिक्शन फिल्म की तरह लगते हैं, लेकिन यह आज एक वास्तविकता है।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के डेविड बेकर सहित कई वैज्ञानिक विशिष्ट कार्यों के लिए प्रोटीन डिजाइन करने के लिए एआई टूल का उपयोग कर रहे हैं। एआई के प्रोटीन डिजाइन का उपयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने से लेकर दवाओं की लक्षित डिलीवरी के लिए किया जा रहा है। इसके उपयोग की संभावनाएं अनंत हैं। हालांकि, संभावित खतरे भी बहुत चिंताजनक हैं। इन चिंताओं को दूर करने के लिए बेकर और अन्य शोधकर्ताओं ने प्रोटीन डिजाइन में एआई के जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक पहल शुरू की है। उनका लक्ष्य सरल है। वे इस शक्तिशाली टूल को गलत हाथों में पड़ने या गलत तरीके से दुरुपयोग होने से रोकना चाहते हैं।
बेकर का ग्रुप अपने प्रयास में अकेला नहीं है। दुनियाभर के विशेषज्ञ यह सुनिश्चित करने के लिए एकजुट हो रहे हैं कि जैव प्रौद्योगिकी में एआई के उपयोग के साथ समुचित सुरक्षा उपाय होने चाहिए। इस तरह के स्वैच्छिक दिशानिर्देश सही दिशा में स्वागतयोग्य कदम हैं। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि एआई का दुरुपयोग रोकने के लिए अधिक ठोस उपायों की आवश्यकता है। अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के वैश्विक स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ मार्क डायबुल ने इन स्वैच्छिक प्रयासों के साथ-साथ सरकारी हस्तक्षेप के महत्व पर भी जोर दिया है। उनका कहना है कि जब सार्वजनिक सुरक्षा के मामलों की बात आती है, तो अनुपालन और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक ढांचा आवश्यक हो जाता है। हमें सरकारी कार्रवाई और नियमों की ज़रूरत है। केवल स्वैच्छिक मार्गदर्शन से काम नही चलेगा।
जैविक युद्ध में एआई के संभावित खतरों की तरफ इशारा करने वाली हालिया रिपोर्टों से भी इस मुद्दे पर तत्काल विचार करना जरूरी हो गया है। अल्फाफोल्ड जैसे एआई प्रोग्राम के साथ प्रोटीन संरचना की भविष्यवाणी करना आसान हो गया है। चिंता की बात यह है कि ये प्रौद्योगिकियां अनजाने में खतरनाक रोगजनकों या विषाक्त पदार्थों के निर्माण की सुविधा प्रदान कर सकती हैं। एआई से डिजाइन किए गए प्रोटीन के संभावित लाभ बहुत अधिक हैं। अगर वे गलत हाथों में पड़ जाएं तो जोखिम भी बहुत हैं। यही कारण है कि बेकर और उनके सहयोगियों की पहल सक्रिय उपायों पर जोर देती है। लेकिन बेकर का कहना है कि एआई क्षेत्र के विनियमन के लिए सरकारी कानून बहुत कड़े नहीं होने चाहिए। कड़े नियम उन दवाओं, टीकों और सामग्रियों के विकास को सीमित कर सकते हैं जो एआई द्वारा डिजाइन किए गए प्रोटीन से उत्पन्न हो सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एआई-जनित खतरों से बचाव के लिए ऐसे एआई मॉडल होने चाहिए जो समय पर इन खतरों का पता लगा सकें।
एआई और जैव प्रौद्योगिकी का मिलन नए खतरे पैदा कर रहा है। इससे विशिष्ट जनसांख्यिकीय समूहों सहित बड़ी आबादियों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा हो सकता है। जैविक हथियार संहिता की कार्यान्वयन सहायता इकाई के समक्ष इन खतरों के शमन के उपायों के समन्वय में मुख्य जिम्मेदारी है। लेकिन दुर्भाग्य से इस इकाई के पास पर्याप्त साधन नहीं है। इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। यह सही है कि एआई हमें जीव विज्ञान की सभी जटिलताओं को समझने में सक्षम बना रही है। इससे हमें मानवता की कुछ सबसे गंभीर चुनौतियों को हल करने के लिए अरबों वर्षों के विकास का उपयोग करने का अवसर मिल रहा है। एआई लाइलाज बीमारियों को ठीक करने से लेकर जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने जैसी कई चुनौतियों से निपटने में मदद कर रही है। सकारात्मक प्रभाव की इस विशाल क्षमता के साथ बड़े और नए खतरे भी आते हैं।
एआई का उपयोग लंबे समय से दवा की खोज के लिए किया जाता रहा है। इसके जरिए सबसे कम विषाक्तता वाले चिकित्सीय अणु की खोज की जाती है। जब वैज्ञानिकों की एक टीम ने विषाक्तता को बढ़ाने के लिए निर्धारित मानदंड को उलट दिया, तो एल्गोरिदम ने न केवल वीएक्स (अस्तित्व में सबसे शक्तिशाली जहरों में से एक) उत्पन्न किया, बल्कि नए विषाक्त पदार्थों को भी उत्पन्न किया, जिनके अधिक विषाक्त होने की भविष्यवाणी की गई थी। विषाक्तता के अलावा, एआई वायरस की संचरण क्षमता को भी बढ़ा सकती है और यह अक्सर महामारी फैलाने वाले वायरसों पर शोध करने वाली प्रयोगशालाओं में किया जाता है।
जरा इबोला वायरस के रोगियों की मृत्यु दर के साथ कोविड-19 की संक्रामकता की कल्पना कीजिए। स्पष्ट हो जाएगा कि जैविक हथियारों की मारक क्षमता कितनी भयावह हो सकती है। एआई का उपयोग महामारी के प्रसार का अनुकरण करने के लिए भी किया जा सकता है जो क्वारंटीन के उपायों को लागू करने और परीक्षण संसाधनों को सुनिश्चित करने में उपयोगी हो सकता है। हालांकि, रोगाणुओं के प्रसार को बढ़ाने के लिए इसे उलटा भी किया जा सकता है। इस प्रकार इसके हानिकारक प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।
दरअसाल, एआई और जैव प्रौद्योगिकी एकमात्र प्रौद्योगिकियां नहीं हैं जो नए खतरे पेश करने के लिए आपस में मिल सकती हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्रौद्योगिकियां जो बायोमैन्युफैक्चरिंग या खाद्य प्रणाली के साथ जुड़ी हुई हैं, संभावित जैविक हमले का मार्ग बन सकती हैं। दूसरी तरफ, एआई का उपयोग जैविक हथियारों को रोकने में मदद के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए एआई नए विषाक्त पदार्थ और रोगजनक स्ट्रेन उत्पन्न कर सकती है जिन्हें मौजूदा ब्लैकलिस्ट में जोड़ा जा सकता है। इस प्रकार जैविक हथियारों के संभावित हमलों के जोखिम को पहले से ही खत्म किया जा सकता है।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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