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राजनीति के साथ दिलों को जीतने का हुनर

06:47 AM Sep 14, 2024 IST

इंद्रजीत सिंह

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समय से पहले चले जाने वाली किसी असाधारण शख्सियत पर लिखना वास्तव में बहुत कठिन होता है। पांच दशकों तक सक्रिय राजनीतिक जीवन में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय धरातल पर अपनी छाप छोड़ने वाले सीताराम येचुरी केवल 72 वर्ष के ही थे। 12 सितंबर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से उनकी दुखद मृत्यु की खबर बड़े झटके जैसी थी। देश भर से शोक व्यक्त करने हेतु लोगों द्वारा सीताराम येचुरी के साथ जिस तरह से अपने अपने फोटो पोस्ट किये जा रहे हैं वह पुष्टि करता है कि वे जहां भी गए वहीं दिलों पर अपनेपन की छाप छोड़ आए।
इन पंक्तियों के लेखक के उनसे समकालीन साथी के तौर पर 50 वर्ष सरोकार रहे। सीताराम येचुरी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने। साल 1975 में आपातकाल का विरोध करने पर दोनों गिरफ्तार हुए। पार्टी की जिम्मेदारियों के चलते साथ काम करने की लंबी अवधि गुजरी।
सीताराम येचुरी बहुप्रतिभावान व्यक्तित्व थे। उत्कृष्ट वामपंथी नेता, प्रखर विचारक, संवैधानिक बारीकियों के ज्ञाता थे। राज्य सभा में अपने बेहतरीन योगदान के लिए 2017 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से नवाजा गया। कम्युनिस्टों की जो कट्टरता वाली परंपरागत छवि गढ़ कर बनाई जाती है उसको बदलते हुए एक असल उदारतावादी और मानवीय सरोकारों वाली पहचान स्थापित करने का श्रेय उन्हें अवश्य जाता है। बता दें कम्युनिस्टों को धर्म के विरुद्ध बताकर विभिन्न धर्मों में आस्था रखने वाले लोगों के बीच उनकी छवि अकसर कट्टरवादी के रूप में गढ़ी जाती रही।
येचुरी ने बीते दिनों अपने संबोधन में धर्म और राजनीति के बीच आवश्यक दूरी को जरूरी बताया था। उनके मुताबिक, ‘धर्म और राजनीति के बीच में एक रेखा होती है। उसे लक्षमण रेखा माना जाना चाहिए। यदि उसका उलंघन होता है तो वह न केवल राजनीति बल्कि धर्म के लिए भी हानिकारक है। वे आगे कहते हैं कि धर्म हर व्यक्ति का निजी मामला होता है। धर्म आत्मा और परमात्मा के बीच का संबंध है। किस व्यक्ति का परमात्मा कौन है वह केवल उस व्यक्ति की आत्मा जानती है। आत्मा और परमात्मा के बीच में किसी का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं।’
कम्युनिस्ट होते हुए रामायण व महाभारत जैसे भारतीय पौराणिक ग्रंथों के लोकप्रिय संदर्भों को निकाल कर उन्हें समकालीन परिस्थितियों के साथ जोड़ कर प्रासंगिक बनाने में सीताराम येचुरी को महारत हासिल थी। भारतीय संविधान की बुनियादी प्रस्थापनाओं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर की गई समीक्षाओं को आधार बनाकर मौजूदा संदर्भों में व्याख्या करने के मामले में सीताराम येचुरी को संसद के भीतर और बाहर कोई हल्के में नहीं ले सकता था। राज्य सभा में जनतंत्र, आर्थिक स्थिति, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय संप्रभुता, केन्द्र-राज्य संबंधों के स्वरूप और एक स्वतंत्र विदेश नीति को लेकर उनके भाषण आने वाले चुनौतीपूर्ण दौर में धरोहर से कम नहीं।
सीताराम येचुरी की शख्सियत की तीसरी खासियत यह थी कि वे राजनीतिक दलों के बीच तालमेल बिठाने के एक ऐसे शिल्पकार थे जिसकी स्वीकार्यता सर्वमान्य रही। हाल की जटिलतम राजनीतिक परिस्थितियों में विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों को साथ लाकर इंडिया गठबंधन की स्थापना करने जैसे कठिन काम को अंजाम देने में सीताराम येचुरी की भूमिका निर्णायक मानी जाती है। वैचारिक स्पष्टता और वचनबद्धता उनमें ऐसे गुण थे जिनकी बदौलत उन्हें अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच एक विश्वसनीयता प्राप्त थी।
प्रकाश करात और सीताराम येचुरी उस नई पीढ़ी के नेता थे जिन्होंने राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के पुरोधा ईएमएस नंबूदरीपाद, ज्योति बसु, हरकिशन सिंह सुरजीत सरीखे कद्दावर नेताओं से जिम्मेदारी धारण करने का साहस दिखाया और इस दायित्व को बखूबी निभाया भी। कम्युनिस्ट पार्टियों में ऐसा इसलिए संभव हो पाता है कि ये पार्टियां सामूहिक कार्यपद्धति से संचालित होती हैं। हिंदी व अंग्रेजी में एक समान दक्षता से लिखने व बोलने वाले सीताराम येचुरी तेलुगू भाषी परिवार में पैदा हुए थे। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में वह लोकप्रिय वक्ता के रूप में जाने जाते थे। अर्थशास्त्र के विषय में उन्होंने स्नातक व स्नातकोत्तर की डिग्री बतौर टॉपर सेंट स्टीफंस कॉलेज से की और जेएनयू में पीएचडी में प्रवेश लिया। छात्र संघ के अध्यक्ष बनने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भारत के छात्र फेडरेशन के अध्यक्ष और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय कमेटी और पोलित ब्यूरो के सदस्य रहते हुए गत दस साल से अब तक पार्टी के महासचिव रहे।
एक जिंदादिल इंसान, काबिल विद्वान,देश की एकता और उसके इंसानों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए ताउम्र सक्रिय रहने वाले राजनेता सीताराम अलविदा!

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