जलवायु सम्मेलन की सार्थकता
वैश्विक प्रयास जरूरी
किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से यह उम्मीद की जाती है कि सभी देश प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के समाधान पर गंभीरता से विचार करें। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का प्रभाव पूरी दुनिया पर है, और अगर अभी कार्रवाई नहीं की गई तो यह और बढ़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाया, लेकिन कुछ देशों ने इस पर गंभीरता नहीं दिखाई। वायु प्रदूषण को बढ़ाने में आम लोग भी जिम्मेदार हैं। सरकारों पर निर्भर रहने के बजाय, सभी देशों को एकजुट होकर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम उठाने चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता
ग्लोबल वार्मिंग की समस्या वर्षों से बढ़ रही है, और इसके लिए जिम्मेदार देशों का रवैया चिंताजनक है। सीओपी-29 सम्मेलन में चीन और अमेरिका जैसे प्रमुख देश अनुपस्थित रहे, जो उनके स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र को निष्पक्षता से काम करते हुए, बिना दबाव के सभी देशों को एकजुट करना चाहिए ताकि निर्दोष लोगों को महाविनाश से बचाया जा सके और विश्व शांति तथा भाईचारे को बढ़ावा दिया जा सके। इन देशों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और सही कदम उठाने चाहिए।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, रेवाड़ी
ठोस कदम उठाएं
सीओपी-29 सम्मेलन अजरबैजान के बाकू में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग पर हुआ, लेकिन अमेरिका, चीन जैसे प्रमुख प्रदूषण फैलाने वाले देश शामिल नहीं हुए। विकसित देशों को प्रदूषण की समस्या का समाधान गंभीरता से करना चाहिए, क्योंकि यह विश्व संकट बन सकता है। संयुक्त राष्ट्र को ऐसे देशों का बहिष्कार करना चाहिए, जो कुदरती आपदाओं से बचाव के नियमों की अनुपालना नहीं करते। आर्थिक विकास की दौड़ को धीमा कर बेमौसमी बरसात, बाढ़ और बर्फबारी जैसी आपदाओं से बचाव के ठोस कदम उठाने चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
अस्तित्व की लड़ाई
साल 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग के चलते पृथ्वी के जलवायु में बदलाव आया है। बाकू सम्मेलन में विश्व के प्रमुख देशों ने औपचारिकता के तहत अपने प्रतिनिधि भेजे हैं, जबकि पहले इन देशों के राष्ट्राध्यक्ष खुद जाते थे। इन देशों का रवैया यह दर्शाता है कि वे कॉप-29 सम्मेलन के प्रति गंभीर नहीं हैं। आज की लड़ाई मानवता और पृथ्वी के अस्तित्व पर है। मानव सभ्यता के सुरक्षित भविष्य के लिए अभी चेतना जरूरी है, वरना भविष्य में इसके और भी दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।
मुनीश कुमार, रेवाड़ी
चोरी और सीनाजोरी
बाकू में हुए संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में अमेरिका और चीन जैसे बड़े देशों ने हिस्सा नहीं लिया, जिससे उनकी जिम्मेदारी से बचने की मंशा स्पष्ट होती है। इन देशों द्वारा सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन के बावजूद, वे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकते। इन देशों को स्वेच्छा से कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए आगे आना होगा और अन्य देशों को जागरूक करने में मदद करनी चाहिए, अन्यथा उनकी ‘चोरी और ऊपर से सीनाजोरी’ अन्य देशों द्वारा सहन नहीं की जाएगी।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
पुरस्कृत पत्र
विकसित देशों की उदासीनता
बाकू जलवायु शिखर सम्मेलन में विकसित देशों का अड़ियल रुख और चीन की चुप्पी पर्यावरण संकट के प्रति उनकी लापरवाही को दर्शाती है। जबकि विकासशील देशों ने 1300 अरब डॉलर की सहायता की मांग की, विकसित देशों ने केवल 300 अरब डॉलर देने पर सहमति जताई। भारत ने इस समझौते को अस्वीकार किया, यह दिखाता है कि विकसित देशों के लिए पर्यावरण प्राथमिकता नहीं है। हालांकि, सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि वैश्विक कार्बन बाजार बनाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए सहमति बनाना था, लेकिन महाशक्तियों की उदासीनता चिंता का विषय है।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.