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दुकान अच्छी चली, बस ग्राहकों की क्वालिटी गिरी

06:40 AM Dec 26, 2023 IST

आलोक पुराणिक

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साल 2023 निकल ही गया, साल कमाल रहा है, एनिमल और डंकी की खूब चर्चा रही, प्याज पर हल्ला रहा, इंसानों की चर्चा खास ना हो पायी। वो ही इंसान चर्चा में रहे, जो इंसान होने के साथ साथ नेता भी थे, यू नेताओं से इंसानियत की उम्मीद बेकार है फिर भी चर्चा में नेता ही रहे।
राजस्थान में गहलोत की पार्टी हार गयी, मध्यप्रदेश में कमलनाथ की पार्टी हार गयी, राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस हार गयी, यह बात चुनाव आयोग ने कही। पर यह बात मानने से इनकार कर दिया कई बुद्धिजीवियों ने, कई एक्सपर्ट ने। इन्होने बताया कि कांग्रेस हारी नहीं है कांग्रेस तो मजबूती से जमी हुई है। इस तर्क से 2014 से अब तक कांग्रेस हारी ही नहीं है। राजनीति मजे का धंधा है, कुछ भी कोई भी साबित कर सकता है। कोई दुकान हो, वहां ग्राहक कम आयें, तो कारोबारी समझ सकता है कि धंधा मंदा जा रहा है। पर पालिटिक्स के एक्सपर्ट अलग हैं। दुकान का धंधा मंदा हो जाये, कस्टमर कम हो जायें, तो एक्सपर्ट दुकान के मालिक को बता सकते हैं-सर हमारी क्वालिटी बहुत शानदार हो गयी है। दरअसल, अच्छी क्वालिटी को समझने वाले लोग तो बहुत कम होते हैं। आप समझिये न टॉप क्लास क्लासिकल म्यूजिक सुनने वाले कितने कम होते हैं। अब हमारा आइटम इतनी क्वालिटी वाला है कि लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। तो इसका मतलब यह है कि हमारी क्वालिटी तो वैसे ही वैसी है, बस यूं समझिये कि ग्राहकों की क्वालिटी डाउन हुई है। ग्राहकों की क्वालिटी गिरी है।
समझदार दुकानदार होगा तो ऐसे एक्सपर्ट को लात मारकर भगा देगा कि भाई तू क्या कर रहा है दुकान बंद हो रही है और तू मेरे ईगो को सहला रहा है कि ग्राहकों की क्वालिटी डाऊन है, हम तो टापमटाप हैं। भाई हम आइटम बेच रहे हैं,अगर हमारे ग्राहक भी क्लासिक सुननेवाले जितने रह गये, हमारी तो दुकान बंद हो लेगी।
पर राजनीति की दुकान में सारे समझदार न होते। सच्चा दुकानदार जानता है कि कस्टमर कभी घटिया न होता, कस्टमर की दो ही वैरायटी होती है-एक वो जो आपकी दुकान पर आता है, दूसरा वह जो आपकी दुकान नहीं आता। समझदार दुकानदार की कोशिश होती कि जो कस्टमर दुकान में नहीं आ रहा है, वैसे कैसे आये। पर यह बात हर नेता नहीं जानता। इसलिए ऐसे नेताओं की दुकान बंद हो जाती है। जिन नेताओं की दुकान बंद हो जाती है, वो दूसरे राजनीतिक दलों के एडवाइजर बन जाते हैं।
2023 में हिंदी साहित्य की गति वैसी ही रही, जैसी 2022 में थी-पाठक उतने ही रहे, जितने पहले थे। कवि एक दूसरे को कविता सुना कर खुश होते रहे और आम पाठक के बारे में वही बात करते रहे जो कई बंद राजनीतिक दुकानों के मालिक करते थे- पाठक घटिया है।

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