सृजन के सरोकारों के ‘रवि’ का अस्त होना
प्रार्थना सभा आज
अरुण कुमार कैहरबा
अध्ययन-मनन की आभा ही थी जो आजीवन डॉ. रविंद्र गासो द्वारा किये गये अध्यापन और लेखन में प्रकट होती रही। चिंतन का उच्च स्तर ही था जो उनमें गुरुओं-महापुरुषों से संबंधित साहित्य-रचना का प्रेरक बना। उनका संवेदनशील व्यक्तित्व उनके जन सरोकारों को व्यापकता देता रहा। इन सब क्षेत्रों में अपनी और भी कई महत्वपूर्ण योजनाओं को साकार करने में निरंतर सक्रिय थे कि हरियाणा-पंजाब के शिक्षा व साहित्यिक जगत में प्रकाशमान यह दीया असमय बुझ गया। अपने शिक्षा संस्थान में ही नहीं बल्कि व्यापक दायरे में उजियारा फैला रहे थे डॉ. रविंद्र गासो कि बुखार और डेंगू से जूझते उन्हें 24 घंटे भी नहीं मिले और वे हमसे सदा के लिये विदा हो गए। निस्संदेह, उनका असामयिक निधन शिक्षा, समाज और साहित्य जगत को क्षति है।
डॉ. गासो के जाने के बाद स्थितियां ख़ालिद शरीफ के शे’र जैसी हो गई हैं- ‘बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई, इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।’ डॉ. रविंद्र गासो कैथल जनपद के पूंडरी स्थित डीएवी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष थे। साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के आयोजन में वे अग्रणी भूमिका निभाते थे। कॉलेज शिक्षक संगठनों में सक्रियता व संस्थानों में अच्छी शिक्षा का माहौल निर्मित करने के लिए बहुआयामी गतिविधियों का संचालन करते थे। कुरुक्षेत्र में स्थापित डॉ. ओम प्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान के सचिव के रूप में संस्थान को साहित्यिक-शैक्षिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बनाने के लिए उन्होंने जो कार्य किया, उसे भुलाया न जा सकेगा। उनकी सक्रियता के चलते संस्थान में होने वाले कार्यक्रमों में देशभर के प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने व्याख्यान दिए। आयोजनों में प्रदेश भर के शब्द-शिल्पियों की शिरकत रहती थी।
डॉ. रविंद्र गासो अध्ययन संस्कृति को समर्पित व्यक्तित्व थे। ग्रेवाल अध्ययन संस्थान में उन्होंने पुस्तकालय की स्थापना के साथ ही उसे सारा दिन खोले रखने के लिए प्रबंध किए। गत अक्तूबर माह में हरियाणा लेखक मंच के कुरुक्षेत्र में आयोजित दूसरे वार्षिक अधिवेशन में डॉ. रविंद्र गासो ने प्रदेशभर से आए सभी लेखकों को संस्थान और पुस्तकालय में आमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि पुस्तकालय के संचालन के लिए और संसाधनों की कमी नहीं आने देने के लिए करीब 150 लेखक और अध्यापक तैयार हुए हैं जो मासिक आर्थिक सहयोग कर रहे हैं। ऐसे दौर में पुस्तकालय संचालन के लिए लेखकों को एकजुट करना रविंद्र गासो की सांगठनिक कुशलता और गहरे सरोकारों का परिचय देता है। वे जिंदादिल व्यक्ति थे। जिससे मिलते थे, उसे अपना बना लेते थे। उनका खिलखिलाता चेहरा और बेखटके दूसरों को गले लगा लेना उनसे एक बार भी मिला व्यक्ति भला कैसे भुला सकता है।
गुरु, कवि और समाज सुधारक गुरु नानक पर हिन्दी में मौलिक लेखन करने वाले रविंद्र गासो विरले लेखक थे। उन्होंने गुरु नानक कृत ‘जपुजी साहिब’: एक अध्ययन, गुरु नानक कृत ‘आसा दी वार’: एक अध्ययन, गुरु नानक देव जी : व्यक्तित्व और विचारधारा शीर्षक से मौलिक पुस्तकें लिखी। गुरु नानक वाणी : विविध आयाम का संपादन किया। गत 31 जुलाई को देस हरियाणा और स्वतंत्रता समता बंधुता मिशन द्वारा आयोजित कुरुक्षेत्र ऐतिहासिक स्थल यात्रा में रविंद्र गासो ने सक्रियता से हिस्सा लेते हुए पहली पातशाही गुरुद्वारा पर गुरु नानक की विरासत पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि जन संवाद और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए लोगों की चेतना को तैयार करने में गुरु नानक के जीवन का सार है। गुरु नानक देव के जीवन और साहित्य पर और भी कार्य करना उनकी योजना में शामिल था। उनकी जनवादी लेखक संघ में भी उनकी सक्रियता थी। जतन पत्रिका का उन्होंने संपादन किया था। डॉ. ओम प्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित किए गए विशेष व्याख्यानों को संपादित करके लोगों के बीच लेकर जाना चाहते थे।
रविंद्र गासो युवाओं को हमेशा प्रोत्साहित करते थे। हरियाणा दिवस के अवसर पर संस्थान में ही आयोजित काव्य-गोष्ठी में इन पंक्तियों के लेखक ने हिस्सा लिया। गोष्ठी में नवोदित एवं वरिष्ठ कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। डॉ. रविंद्र गासो ने रचनाओं पर टिप्पणी की। नवोदित रचनाकारों को अपनी रचनाओं को किताब के रूप में प्रकाशित करवाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि वे निरंतर इस तरह की गोष्ठियों का आयोजन करना चाहते हैं। पुस्तकालय में रखी किताबों और पुरानी पत्रिकाओं को उन्होंने पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इच्छा जताई थी कि उनका मन होता है कि वे किताबों में डूब जाएं। मानवता को किताबें बचा सकती हैं। लेकिन आज लोग किताबों से दूर होते जा रहे हैं। उम्मीदों से लबरेज रविंद्र के मन में अनेक योजनाएं थीं। लेकिन वे योजनाएं पूरी होने से पूर्व ही वे 58 साल की उम्र में ही लंबी यात्रा के लिए रुखसत हो गए। उनके दोस्त और विद्यार्थियों की लंबी सूची है, जो आज भी यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि रविंद्र गासो उन्हें छोड़ कर चले गये हैं। उनके दोस्तों का संकल्प है कि उनके कार्यों को आगे बढ़ाएंगे। उनकी स्मृतियों को जिंदा रखेंगे।