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पारलौकिक जीवन की तलाश अब अलग रूप-रंग में

08:15 AM Jun 02, 2024 IST
पारलौकिक जीवन की तलाश अब अलग रूप रंग में
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मुकुल व्यास
यदि पारलौकिक दुनिया में एलियंस रहते हैं तो उनका रंग-रूप कैसा होगा? अभी तक हम पृथ्वी के जीवन को पैमाना मान कर दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश कर रहे थे। लेकिन बहुत से खगोलविद अब यह कहने लगे हैं कि दूसरे ग्रहों पर जीवन के रूप और रंग पृथ्वी से एकदम अलग हो सकते हैं। अमेरिका के कार्ल सागन इंस्टीट्यूट और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के ताजा शोध से पता चला है कि बैंगनी जीवाणु विभिन्न परिस्थितियों में पनप सकते हैं। नए अध्ययन की प्रमुख लेखक लिजिया फोंसेका कोएलो का कहना है कि इस तरह के जीवाणु पृथ्वी पर पहले से ही कुछ खास जगहों पर पनप रहे हैं। एक लाल सूरज (रेड ड्वार्फ) उन्हें प्रकाश संश्लेषण के लिए सबसे अनुकूल परिस्थितियां दे सकता है। इसका यह मतलब हुआ कि मंद रोशनी वाले लाल तारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों पर जीवन के रूप वास्तव में बैंगनी हो सकते हैं। अतः सुदूर ग्रहों पर जीवन खोजने के लिए खगोलविदों को बैंगनी रंग के चिह्नों की तलाश करनी चाहिए।
प्रकाश संकेतों का खुलासा
नए शोध में बाहरी ग्रहों से आने वाले प्रकाश संकेतों का खुलासा किया गया है। जिन ग्रहों पर ऑक्सीजन और सूर्य के प्रकाश की आपूर्ति कम है,वहां से आने वाले प्रकाश संकेत अलग तरह के होंगे। अब तक खोजे गए कई बाहरी ग्रह इसी श्रेणी में आते हैं। पृथ्वी पर जीवन के लिए प्रमुख रंग संकेत हरा है। इसका श्रेय बैक्टीरिया और पौधों को जाता है जो सूर्य के दृश्यमान प्रकाश को ऊर्जा में बदलने के लिए हरे क्लोरोफिल का उपयोग करते हैं। लेकिन एक छोटे,मंद तारे की परिक्रमा करने वाले ग्रह पर जीवों के पनपने की अधिक संभावना होगी बशर्ते वे अदृश्य इन्फ्रारेड प्रकाश से अपना मेटाबोलिज्म (चयापचय) चला सकें।

प्रयोगशाला में बैंगनी बैक्टीरिया के नमूने

शोध के लिए बैंगनी जीवाणुओं का नमूना
इन्फ्रारेड प्रकाश से ऊर्जा लेने वाले जीवाणु पृथ्वी पर कई जगहों पर मौजूद हैं। ऐसे जीवाणु खासकर उन जगहों पर पाए जाते हैं जहां सूरज की रोशनी प्रवेश नहीं करती। ऐसी जगहों में दलदल या गहरे समुद्र में हाइड्रोथर्मल वेंट यानी जलतापीय छिद्र शामिल हैं। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में कॉर्नेल विश्वविद्यालय की खगोलविज्ञानी कोएलो और अध्ययन के सह-लेखकों ने इन जीवाणुओं का एक नमूना विकसित किया। उन्होंने इन जीवाणुओं द्वारा परावर्तित प्रकाश की वेवलेंथ को मापा और इस बात का अंदाजा लगाया कि दूर-दराज के ग्रहों से आने वाले प्रकाश संकेत कैसे दिखेंगे। बैंगनी जीवाणु स्यूडोमोनैडोटा नामक प्रजाति से संबंधित हैं, और वे कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में पनपते हैं। कोएलो और उनके सहयोगियों ने बैंगनी सल्फर उत्पादक जीवाणु की 20 प्रजातियां और बैंगनी गैर-सल्फर उत्पादक जीवाणु की 20 प्रजातियां उगाईं। उन्होंने इन प्रजातियों को विभिन्न प्रकार के वातावरणों से एकत्र किया। इन जीवाणुओं में बैंगनी रंग के अलावा नारंगी और लाल कैरोटीनॉयड रसायन सहित कई रंगीन पिगमेंट होते हैं।
उम्मीदें नए टेलीस्कोप से
शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे मॉडल दिखाते हैं कि विभिन्न प्रकार के स्थलीय ग्रह बैंगनी बैक्टीरिया के संकेत दिखा सकते हैं। हालांकि यह अभी अज्ञात है कि क्या किसी अन्य ग्रह पर जीवन विकसित हो सकता है,सतही जीवन की खोज में बैंगनी पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। चिली में निर्माणाधीन एक्सट्रीमली लार्ज टेलीस्कोप,और प्रस्तावित हैबिटेबल वर्ल्ड्स ऑब्जर्वेटरी जैसे नए टेलीस्कोप इन प्रकाश संकेतों की खोज करने में सक्षम होंगे।
जारी हैं खोज के वैज्ञानिक प्रयास
पारलौकिक जीवन के अस्तित्व के बारे में अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिलने के बावजूद खगोल वैज्ञानिक हतोत्साहित नहीं हुए हैं। मंगल ग्रह पर एक रोवर नमूने एकत्र कर रहा है जो यह निर्धारित कर सकता है कि क्या लाल ग्रह पर कभी जीवन मौजूद था। जांचकर्ता हमारे सौर मंडल के कुछ बर्फीले चंद्रमाओं पर आवास-योग्य संकेतों की खोज की तैयारी कर रहे हैं। खगोल वैज्ञानिक हमारे अपने सौर मंडल से परे ग्रहों के वायुमंडलों में परग्रही जीवन का संकेत देने वाले तत्वों की खोज में भी लगे हैं। और हां, हम किसी भी बुद्धिमान सभ्यता के संकेतों पर भी कड़ी नजर रख रहे हैं जो जानबूझकर या गलती से हम से संपर्क कर सकते हैं।
जीवन के सबूत तकनीकी चिह्नों में!
ब्रिटेन के खगोलशास्त्री लॉर्ड मार्टिन रीस का कहना है कि 10 वर्षों में हमारे पास इस बारे में कुछ सबूत होंगे कि आसपास के कुछ ग्रहों पर कुछ भी जैविक है या नहीं। कुछ खगोलविदों का मानना है कि तकनीकी चिह्न उन्नत पारलौकिक सभ्यता की प्रौद्योगिकी का प्रमाण प्रदान कर सकते हैं। खगोलविद इन चिन्हों को टेक्नोसिग्नेचर भी कहते हैं। पारलौकिक बुद्धिमत्ता की खोज अथवा सेटी खगोल विज्ञान की एक शाखा है जो तकनीकी चिन्हों को खोजने पर ध्यान केंद्रित करती है, क्योंकि उनका पता लगाने से पृथ्वी से परे बुद्धिमान जीवन का प्रमाण मिल सकता है। परंपरागत रूप से लक्षित रेडियो सर्वेक्षण सेटी अनुसंधान का मुख्य आधार रहे हैं और इस समय चल रही कई सेटी परियोजनाएं अभी रेडियो बैंड में होती हैं। अब खगोलविदों ने टेक्नोसिग्नेचर का पता लगाने के सेटी एलिप्सॉइड नामक नई तकनीक का प्रस्ताव किया है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में एसईटीआई संस्थान और बर्कले एसईटीआई अनुसंधान केंद्र की डॉ.बारबरा कैब्रालेस और उनके सहयोगियों ने दिखाया है कि सेटी एलिप्सॉइड विधि विस्तृत क्षेत्र के आकाश सर्वेक्षणों का लाभ उठा सकती है, जिससे संभावित तकनीकी चिन्हों का पता लगाने की हमारी क्षमता में काफी वृद्धि हो सकती है।

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