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झीलाें के शहर में सांस्कृतिक गहराई

07:32 AM Jul 26, 2024 IST
झीलाें के शहर में सांस्कृतिक गहराई
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अमिताभ स.
मध्य प्रदेश की राजधानी है भोपाल। एकांत में बसा शांत मिज़ाज शहर है। यह लम्बी-चौड़ी झील के किनारे-किनारे क्या खूबसूरत लगता है। इस लिहाज़ से, कह सकते हैं कि भोपाल में दो शहर सम्मिलित हैं। बड़ी और छोटी झीलों की जोड़ी ही भोपाल को दो शहरों में बांटती है। उत्तरी दिशा में पुराना शहर है, जहां मस्जिदें, चौक, हवेलियां और भीड़भाड़ भरे बाज़ार हैं। दक्षिण की तरफ नया भोपाल शामला पहाड़ियों पर है। चौड़ी सड़कें, शॉपिंग कॉम्पलेक्स और न्यू मार्केट आधुनिकता की झलक पेश करती हैं।

सबसे बड़ा आकर्षण ‘भोज ताल’

भोपाल को झीलों का शहर भी कहा जाता है। झीलें एकदम साफ-स्वच्छ हैं। यहां कुदरती झीलें भी हैं और मानव निर्मित भी। बड़ी झील को ही बड़ा तालाब भी कहते हैं। बताते हैं कि बड़ी झील गैर-कुदरतन है, यानी इंसान द्वारा बनाई गई है। बड़ी इतनी है कि इसे एशिया की नामी-गिरामी मानव निर्मित बड़ी- बड़ी झीलों में से एक बताते हैं। इसलिए यह भारत की सबसे बड़ी और पुरानी ग़ैर-कुदरती झील है। इसका निर्माण 11वीं सदी में मालवा के परमार राजा भोज ने करवाया था। असल में, 1005 से 1055 के बीच राजा भोज को ही भोपाल शहर बसाने का श्रेय जाता है।
कथा-कहानियों में दर्ज है कि एक बार राजा भोज गम्भीर त्वचा रोग से पीड़ित हो गए थे। काफी दवा-दारू के बावजूद उनकी त्वचा ठीक नहीं हुई। इसी दौरान, एक संत ने उन्हें रोग मुक्त होने के उपाय के तौर पर, 365 नहरों के पानी को एक ताल में एकत्र कर, उससे नहाने को कहा। इस प्रकार, राजा भोज ने अपनी त्वचा को दुरुस्त करने के वास्ते बड़ी झील या बड़ा तालाब का निर्माण करवाया। साल 2011 में, उसके जनक राजा भोज के नाम पर झील का नामकरण ‘भोज ताल’ हो गया। झील में राजा भोज की प्रतिमा भी लगी है।
बड़ी झील और छोटी झील दोनों मिलकर भोपाल की 40 फीसदी आबादी की जलापूर्ति करती हैं। सैलानी बड़ी झील पर बोटिंग का निराला लुत्फ जरूर लेते हैं, या लेना चाहते हैं। नाइट क्रूज तो हर रात झील पर एक-एक घंटे का चक्कर लगाते हैं। बड़ी तादाद में पर्यटक ही नहीं, बल्कि भोपाल के वासी भी झील पर आनन्दित होने उमड़ते हैं। बावजूद इसके झील का वातावरण एकदम शांत रहता है, ज्यादा शोर-शराबा नहीं होता। झील के बगल में, कमला पार्क भी प्रकृति प्रेमियों का दिलकश ठिकाना है।

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बहुत कुछ देखने लायक

भोपाल के कोने-कोने में देखने लायक और भी बहुत कुछ है। मोतिया तालाब के किनारे ‘ताज-उल-मस्जिद’ भी भोपाल की जान और शान है। इसमें एक साथ पौने 2 लाख लोग नमाज अता कर सकते हैं। इसीलिए इसे मस्जिदों का ताज यानी ‘ताज-उल-मस्जिद’ नाम दिया गया है। है आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के शासनकाल की। हालांकि, इसका निर्माण कार्य 1868 से 1901 के दौरान भोपाल की नवाब शाह जेहन बेगम के जमाने में भी ज़ारी रहा। इसकी बनावट और रंगरूप काफी हद तक दिल्ली की शाही जामा मस्जिद से मिलता-जुलता है।
एक और आकर्षण है भोजपुर मन्दिर। इसे ही भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है। इसका निर्माण 11वीं सदी में राजा भोज के शासनकाल में हुआ था। भगवान शिव का मन्दिर है और भोपाल से महज 28 किलोमीटर दूर है। मन्दिर में स्थापित शिवलिंग एक ही चट्टान को काट कर बनाया गया है। खूब भव्य है 7.5 फुट ऊंचा और 18 फुट घेरा। करीब 21 फुट ऊंचे चबूतरे पर सुशोभित है। ऊंचा इतना कि भक्त लोहे की सीढ़ी चढ़कर शिवलिंग के दर्शन करते हैं।
बड़ी झील के बगल में, करीब 445 हेक्टेयर इलाके में फैला हरा-भरा वन विहार नेशनल पार्क है। साल 1979 में बना और यह मध्य भारत का लोकप्रिय नेशनल पार्क है। इसे चिड़ियाघर और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का मिला-जुला रूप कह सकते हैं। यही नहीं, शाही मस्जिद, सदर मंजिल, मोती मस्जिद और शौकत महल के अपने जलवे हैं। छोटी झील के पास कालिका मन्दिर भी श्रद्धा का केन्द्र है। खासमखास ठिकानों में नूर-अस-सुबह पैलेस भी शुमार है। इसे 1920 में भोपाल के आखिरी नवाब हमिदुल्लाह खान ने अपनी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान के लिए बनवाया था। भोपाल पर राज करने वाली आखिरी बेगम सुल्तान का ताज भी यहां नुमाइश के तौर पर रखा गया है। इतिहास बताता है कि भोपाल पर सौ सालों तक नवाबों की बेगमों ने राज किया है।

संग्रहालय ही संग्रहालय

भोपाल सरकारी तंत्र का केन्द्र तो है ही, यहां साहित्यिक हलचल भी काफी रहती है। संग्रहालय भी कई हैं। भारत भवन है, जो साहित्य का बड़ा केन्द्र है। भारत भवन लाल पत्थरों की भव्य इमारत ही नहीं, देश की कला और साहित्य की धड़कन को महसूस करने की बेहतरीन जगह है। इसकी रचना मशहूर आर्किटेक्चर चार्ल्स कोरिया ने की थी। इसका हरेक कोना अलग-अलग रंगों से सराबोर है- कहीं संगीत है, तो कहीं नाटक। यहीं विश्व कविता सम्मेलन, राष्ट्रीय नृत्य उत्सव, कवि भारती वगैरह नेशनल लेवल के कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किए जाते हैं।
​और फिर, ललित कला की झांकी देखने के लिए ‘रूपांकर’ है, तो नाटक मंचन के लिए ‘रंगमहल’। कविताओं के छींटों से तर होना है, तो ‘वागर्थ’ का रुख कर सकते हैं। लोकसंगीत के लिए ‘अनहद’ ठिकाना है। क्लासिकल सिनेमा का आनन्द उठाने के लिए ‘छवि’ भी है। निराला की रचनावली से ‘निराला सृजन पीठ’ में रू-ब-रू हो सकते हैं। घूमते-घूमते थक जाएं, तो भवन की सीढ़ियों पर बैठ कर बड़ी झील से उभरती ठंडी-ठंडी हवाएं तन-मन तरोताज़ा कर देती हैं।
संग्रहालयों की तादाद के चलते भोपाल को संग्रहालयों का शहर भी कह सकते हैं। साइंस से जुड़ा विज्ञान केन्द्र, भोपाल त्रासदी पर बना स्मृति संग्रहालय, केन्द्रीय पुरातात्विक संग्रहालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, इतिहास की परतों को खोलता महाराजा छत्रसाल संग्रहालय और रानी दुर्गावती संग्रहालय भोपाल के चंद चर्चित म्यूजियम हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में देश भर की 450 से ज्यादा आदिवासी जातियों का जीवननामा संजो कर रखा गया है।

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पुराना भोपाल और जायके जोरदार

पुराने भोपाल के चौक बाज़ार का रुतबा देश की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक या पंजाब की स्ट्रीट फूड कैपिटल अमृतसर से ज़रा कम नहीं है। चौक बाज़ार का ‘रतलामी नमकीन कॉर्नर’ 1935 से भोपाल वालों का स्वाद और जायकेदार बनाने में जुटा है। दुकान का अंदाज़ आज भी बेशक पुराना है, फिर भी, लौंग सेव, अजवाइन सेव, लहसुन सेव, मीठा चिवड़ा और मावा जलेबी खाने लोग खिंचे आते हैं। पुराने भोपाल के इतवार चौक पर जमाल भाई की सुलेमानी चाय नहीं पी, तो क्या पिया। सुलेमानी चाय की खूबी है कि चीनी और थोड़ा नमक दोनों होते हैं और खूब क्रीम भी उड़ेलते हैं।
भोपाल का सेव जलेबी और पोहा का नाश्ता दिल्ली के बेड़मी-आलू या छोले-भटूरे से कम मशहूर नहीं है। मांसाहारी खाने के शौकीनों के लिए भी पूरा भी इंतजाम है। बन कबाब, सीख कबाब, नर्गिसी कबाब और बिरयानी तो माशा अल्लाह समझिए। ऐसे ही कई अन्य लज़ीज़ नवाबी जायके आज भी बराबर बनाए और चाव से खाए जाते हैं।

दिल्ली से भोपाल, ट्रेन से 8 घंटे में

* दिल्ली से भोपाल करीब 750 किलोमीटर दूर है। भोपाल देश भर से हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है।
* उड़ान से दिल्ली से भोपाल के राजा भोज एयरपोर्ट उतरने में करीब 2 घंटे लगते हैं।
* शताब्दी ट्रेन के जरिए करीब 8 घंटे में नई दिल्ली से भोपाल आ-जा सकते हैं।
* सरकारी बस सेवा के लिए सहाय काले खां स्थित आईएसबीटी से बस ले सकते हैं।
* शुरू-शुरू में, भोपाल ‘भोज-पाल’ के नाम से जाना जाता था। बताते हैं कि भोपाल को राजा भोज ने बसाया था। यह भोज शासन का अहम शहर था और तब उज्जैनी राजधानी थी, जो भोपाल के नजदीक थी।

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