मोक्ष की विद्या
गांव बालुका, जिला रायपुर, छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन का दर्शन शून्यवाद कहलाता है। उन्होंने वस्तु शून्यता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था, जिसका अर्थ है कि अविद्या के नष्ट हो जाने पर सभी वस्तुएं शून्य में विलीन हो जाती हैं और कुछ विशेष न रहना ही निर्वाण है। उनकी आयुर्वेद समेत साहित्य और संस्कृति में गहन रुचि थी। उन्होंने कई ग्रंथ प्रणीत किए। जिनमें ‘रस हृदय', ‘रस रत्नाकर' और ‘रसेंद्र मंगल' प्रसिद्ध हैं। नागार्जुन के गुरु श्रीमद् गोविंद पादाचार्य जब अजर-अमर होने की विद्या नागार्जुन को सिखाने लगे, तब उन्होंने कहा था कि, ‘पुत्र, मुक्ति की प्राप्ति एक ही जन्म की तपस्या से नहीं हो सकती, फिर वह जन्म भी कैसा, जो रोग-शोक से परिपूर्ण हो। इसलिए मुक्ति तत्व जानने से पहले तू अजर-अमर होने की विद्या मुझसे सीख क्योंकि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल तंदुरुस्ती है।’
प्रस्तुति : राजकिशन नैन