अनूठा संस्कृति प्रेम
भारत के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हरगोविन्द खुराना कुछ कारणों से अमेरिका जाकर बस गए। लेकिन फिर भी उन्हें अपनी मातृभूमि से गहरा प्यार और लगाव रहा। एक बार किसी काम से वे भारत की यात्रा पर दिल्ली आए हुए थे। जब भोजन का समय हुआ तो उनके समक्ष मेज पर पाश्चात्य ढंग का भोजन परोसा गया। भोजन देखकर डॉ. हरगोविन्द जी को आश्चर्य हुआ। वे भोजन व्यवस्था संभालने वाले व्यक्ति से बोले, ‘भाई, इस तरह के भोजन का इंतजाम क्यों किया गया है?’ भोजन प्रभारी बोले, ‘सर, आप काफी समय से विदेश में रह रहे हैं। इसलिए पाश्चात्य ढंग के भोजन की व्यवस्था की गई है।’ डॉ. साहब बड़े विनम्र होकर बोले, ‘भाई, मैं अभी भी भारतीय भोजन खाता हूं। पाश्चात्य भोजन मुझे प्रिय नहीं है। कृपया मुझे बाजरे की रोटी व मक्के का साग खिलाने की व्यवस्था करें। मैं अपने घर आया हूं, मुझे विदेशी अतिथि जैसा न समझा जाए।’ भोजन प्रभारी ने सिर्फ कुछ समय के भीतर बाजरे की रोटी व मक्के का साग की व्यवस्था कर दी। डॉ. साहब ने भोजन प्रभारी को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
प्रस्तुति : सुरेन्द्र अग्निहोत्री