अयोध्या का राजवृक्ष कोविदार झंडे में और प्रांगण में भी
रेणु जैन
योध्या में प्रभु श्रीराम के विशाल मंदिर की नींव का शिलान्यास करने के साथ वहां पारिजात के पेड़ का पौधारोपण भी किया गया था। प्रभु श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या अब सज-संवरकर तैयार हो चुकी है। तमाम तैयारियों में इस बार भी अयोध्या के राम मंदिर प्रांगण में कोविदार का पेड़ लगाया जाएगा। जान लें कि हमारे शास्त्रों में एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सौ गायों के दान देने के समान माना गया है। गर्व की बात यह भी है कि अयोध्या के श्रीराम मंदिर के ध्वज पर सूर्य के साथ कोविदार पेड़ के चिन्ह को अंकित किया गया है। वर्तमान में भारत में बरगद को जहां राष्ट्रीय पेड़ कहा जाता है, वैसे ही कोविदार का पेड़ प्राचीन समय में राज वृक्ष के नाम से जाना जाता था।
प्राचीन इतिहास
प्राचीन समय में कोविदार वृक्ष को अयोध्या साम्राज्य की शक्ति और संप्रभुता का प्रतीक माना जाता था। बदलते दौर के साथ ध्वज और ध्वज पर अंकित कोविदार लुप्त-सा होने लगा था लेकिन पूजनीय वृक्ष माने जाने वाला कोविदार अयोध्या के राम मंदिर प्रांगण में फिर से जीवंत होने वाला है। वाल्मीकि रामायण तथा हरिवंश पुराण में इस पेड़ का जिक्र किया गया है। रामायण के एक कथन में कहा गया है कि जब भरत श्रीराम से अयोध्या लौटने की प्रार्थना करने चित्रकुट गए थे तब उनके रथ पर लगे ध्वज पर कोविदार पेड़ चिन्हित था। लक्ष्मण जी ने दूर से ही इस झंडे को देखकर अनुमान लगा लिया था कि यह अयोध्या की ही सेना है। कालिदास ने लिखा है कोविदार पेड़ तथा इसके पुष्पों की सुंदरता पर हर कोई मुग्ध हो सकता है। ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं होगा जिसे इन फूलों ने लुभाया न हो।
औषधीय गुणों की खान
भारत में कई पेड़ औषधीय है। कोविदार भी उनमें से ही है। अनेक औषधीय गुणों से भरपूर यह पेड़ पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण है। प्रदूषण को कोसों दूर रखने वाला यह निराला पेड़ प्राचीन समय में थायराइड, मधुमेह, शरीर के भीतर होने वाले अल्सर, ट्यूमर में उपयोगी माना जाता था।
दुनिया का पहला हाइब्रिड प्लांट
आज वैज्ञानिकों ने कई नई-नई तकनीक विकसित कर ली है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि पुराणों की एक कथा में लिखा है कि कोविदार वृक्ष को कश्यप ऋषि ने पारिजात के वृक्ष में मंदार का सार मिलाकर बनाया था। माना जाता है कि गंगा के किनारे के आसपास लोगों ने सबसे पहले इसे उगाना शुरू किया था। इसके गुलाबी व पिंक, हल्के बैगनी रंग की आभा लिए होते है। विलुप्ति की कगार पर पहुंचे कोविदार के वृक्ष मध्य प्रदेश के रीवा में अनादिकाल से मौजूद हैं। रीवा में ही सौ ऐसे राज ध्वज अयोध्या भेजे जाएंगे। जो रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान लहराए जायेंगे।