पूर्वोत्तर के जीवन राग में बसी नदी
वीना गौतम
नदियां जीवनदायिनी होती हैं। नदी के किनारे ही इंसान जन्मा है और नदियों के किनारे ही दुनिया की सभी सभ्यताएं और संस्कृतियां फली-फूली हैं। धरती में नदियों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और नदियों के प्रति आम लोगों की उदासीनता के चलते धरती में जल संकट तो गहराया ही है, अब नदियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसलिए नदियों का न केवल संरक्षण जरूरी है, बल्कि हमें अपनी नई पीढ़ियों को इनके प्रति संवेदनशील बनाना भी जरूरी है ताकि इनका अस्तित्व बचा रहे और धरती में इंसानी सभ्यता और संस्कृति भी हमेशा की तरह फलती-फूलती रहे।
ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इसका उद्गम तिब्बत में मानसरोवर के पास है। इसे तिब्बत में त्सांगपो कहा जाता है। भारत में यह अरुणाचल प्रदेश से प्रवेश करती है और असम होते हुए बांग्लादेश जाती है। अपनी इस यात्रा के दौरान ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर भारत की कई भौगोलिक संस्कृतियों और आर्थिक भूमिकाओं को रेखांकित करती है। अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर भारत का द्वार है। इसलिए यह अरुणाचल प्रदेश की ही नहीं, समूचे पूर्वोत्तर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी है। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र को सियांग कहते हैं और जब यह अरुणाचल से असम में प्रवेश करती है, तो इसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है। ब्रह्मपुत्र के रूप में ही यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है। ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर की जीवनधारा है। यह यहां के समाज और संस्कृति को गहरे तक प्रभावित करती है। ब्रह्मपुत्र के किनारे रहने वाली समस्त जातियां अपनी जीविका के साधनों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने सारे सांस्कृतिक क्रियाकलापों और कर्मकांडों के लिए ब्रह्मपुत्र पर निर्भर हैं। इनकी जिंदगी के हर पहलू पर यह नदी जीवन आधार की तरह शामिल रहती है।
पूर्वोत्तर के लोग खेती के लिए बड़े पैमाने पर ब्रह्मपुत्र के पानी पर निर्भर हैं। इसी नदी से यहां के लोगों को बड़े पैमाने पर मछलियां और पीने का पानी भी हासिल होता है। जीवन के साधनों की तरह ही पूर्वोत्तर के लोगों को अपनी कला, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों का आधार भी ब्रह्मपुत्र से हासिल होता है। नदियां हमेशा से इंसान के जीवन का मूल आधार रही हैं। दुनिया की सारी सभ्यताओं का जन्म नदियों के किनारे ही हुआ। चाहे भारत में सिंधु नदी घाटी की सभ्यता हो या मिस्र में नील नदी घाटी की सभ्यता, सब नदियों के किनारे ही पनपी और फूली-फली हैं। भारतीय संस्कृति में तो नदियों को मां कहकर संबोधित किया जाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे लिए नदियों का कितना महत्व है।
कुल 2900 किलोमीटर लंबी यह नदी हिमालय से निकलकर पूर्वोत्तर की घाटियों और मैदानों को समृद्ध बनाती है। असम के मैदानों में ब्रह्मपुत्र काफी चौड़ी हो जाती है, जिससे इसकी जलधारण की क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां जैसे-लोहित, दिहांग और दिबांग, अपनी जलराशि से इसे विशाल नदी में परिवर्तित कर देती हैं। हालांकि, ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर में अक्सर आने वाली बाढ़ का प्रमुख कारण भी बनती है, जो कई बार बहुत विनाशकारी होती है। लेकिन इसके अपने फायदे भी हैं। बाढ़ के चलते क्षेत्र में प्राकृतिक उर्वरता का संचार होता है। दरअसल, बाढ़ का पानी अपने साथ तरह-तरह की मिट्टी और पोषक तत्व लेकर आता है, जिससे बाढ़ के बाद बाढ़ वाले क्षेत्र बेहद उपजाऊ हो जाते हैं। असम के मैदानी क्षेत्रों में चावल, सरसों की बड़े पैमाने पर होने वाली शानदार खेती का एक कारण बाढ़ के जरिए उर्वर होने वाली मिट्टी भी है।
असम और अरुणाचल प्रदेश की जनजातियां इस नदी से बहुत गहरे तक जुड़ी हुई हैं। नदी किनारे रहने वाली, विशेषकर मिसिमी, निशि और बोरो जातियां ब्रह्मपुत्र को बहुत पवित्र मानती हैं। उनके सभी धार्मिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में ब्रह्मपुत्र का शामिल होना जरूरी है। असम में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध अंबुबासी मेला, कामाख्या मंदिर के परिसर में इसी नदी के तट पर लगता है।
इसी तरह माघ बिहू और रोंगाली बिहू की इंद्रधनुषी छटा भी इस ब्रह्मपुत्र के तट पर बिखरती है। जैसे उत्तर भारत में गंगा नदी की पूजा होती है, वैसे ही पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र की पूजा होती है। गंगा की तरह पूर्वोत्तर के लोग ब्रह्मपुत्र को मां का दर्जा देते हैं। यहां के लोगों के सुख-दुख में गाये जाने वाले गीतों, सुनायी जाने वाली कहानियों और ध्वनित होने वाली संगीत लहरियों में ब्रह्मपुत्र नदी धड़कती है। ब्रह्मपुत्र की पूजा केवल धार्मिक भावनाओं को ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की भावना को भी दर्शाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी का इस्तेमाल पूर्वोत्तर में परिवहन के एक बड़े साधन के रूप में भी सदियों से हो रहा है। इसके चलते असम और अरुणाचल प्रदेश के लोग सदियों से आपस में व्यापार करते हैं और एक-दूसरे के यहां सहजता से आवागमन करते हैं। हाल के सालों में भारत सरकार ने इस नदी को एक बेहतर जलमार्ग के रूप में विकसित करने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी का भारत ही नहीं, बल्कि समूचे दक्षिण एशिया के लिए अत्यधिक पर्यावरणीय महत्व है। इस नदी का जलस्तर और प्रवाह हिमालय के ग्लेशियरों पर निर्भर करता है। क्योंकि हाल के दशकों में लगातार धरती का तापमान बढ़ रहा है, इसलिए ग्लेशियरों की पिघलने की रफ्तार काफी ज्यादा है, इस कारण ब्रह्मपुत्र का जलस्तर लगभग पूरे साल ही ऊंचा रहता है। लेकिन यह चिंता का विषय भी है कि अगर इसी तरह ग्लेशियर पिघलते रहे, तो एक ऐसा समय भी आ सकता है, जब पिघलने के लिए ग्लेशियर ही न बचें, तब ब्रह्मपुत्र में पानी का अभाव होगा।
ब्रह्मपुत्र देश की सबसे ज्यादा जैव विविधता से संपन्न नदी है। इसमें डॉल्फिन सहित दर्जनों तरह की मछलियां और दूसरे जलीय जीव रहते हैं। असम में यह नदी काजीरंगा नेशनल पार्क और मानस नेशनल पार्क जैसे विश्व धरोहर स्थलों से भी होकर बहती है। इस तरह यह नदी पूर्वोत्तर ही नहीं, बल्कि समूचे भारत की धड़कन है।
इ.रि.सें.