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समय के थपेड़ों के बावजूद पौराणिक महिमा बरकरार

08:04 AM Nov 15, 2024 IST
समय के थपेड़ों के बावजूद पौराणिक महिमा बरकरार
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राजेंद्र कुमार शर्मा
भारत में दो ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो हिंदुओं के लिए अत्यधिक पूजनीय हैं, जहां पर हिंदू भगवान ब्रह्मा की पूजा करने के लिए भक्त आते हैं। इनमें से एक अरब सागर के तट पर स्थित द्वारका (गुजरात) में ब्रह्म कुंड है, और दूसरा राजस्थान के पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर है। इन स्थलों के धार्मिक महत्व के कारण यहां दूर-दूर से तीर्थयात्री आते रहे हैं।

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कहां है ब्रह्म कुंड

पौराणिक नगरी द्वारका स्थित ब्रह्म कुंड, हालांकि आज अपनी पुरानी स्थिति में नहीं है, फिर भी इसका पौराणिक महत्व कम नहीं हुआ है। यहां तीर्थयात्री अब कम ही दिखाई देते हैं, लेकिन इस कुंड का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अद्वितीय है। कभी यह कुंड द्वारका शहर से कुछ किलोमीटर दूर था, लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार हुआ, यह कुंड शहर के मुख्य बाजार के बीच में आ गया। पहले यह कुंड स्नान के लिए प्रसिद्ध था और माना जाता था कि यह पवित्र जल मनुष्यों को उनके सभी पापों से मुक्ति दिलाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस कुंड में स्नान करने से चारों वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त होता है।

पौराणिक कथा

मान्यता है कि पौराणिक काल में ब्रह्माजी भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका आए थे। भगवान कृष्ण ने ब्रह्माजी को कुछ समय के लिए उलझाने का निर्णय लिया। जब ब्रह्मा ने द्वारका में प्रवेश करने की अनुमति मांगी, तो उन्हें द्वारपालों ने बाहर ही रोक लिया और उनकी पहचान पूछी। ब्रह्मा ने बताया कि वे चतुर्मुख ब्रह्मा हैं, लेकिन श्रीकृष्ण ने उनसे और अधिक पहचान मांगी। तब ब्रह्मा ने कहा कि वे इस सृष्टि के निर्माता हैं और उनके चार पुत्र हैं। आखिरकार, श्रीकृष्ण ने ब्रह्माजी से मिलने का निश्चय किया। भगवान कृष्ण ने ब्रह्माजी को हर युग में उत्पन्न होने वाले अन्य ब्रह्माओं का दर्शन कराया। उन्होंने उनके द्वारा रचित बड़े-बड़े संसार दिखाए। ब्रह्माजी ने द्वारका में निवास करने की इच्छा जाहिर की, और श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए ब्रह्म कुंड का निर्माण करवाया।

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अलग-अलग मान्यताएं

स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस कुंड का जल अमृत के समान है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पापियों को सद‍्मार्ग पर लाने के बाद द्वारका आने के समय, इंद्र, यम, सूर्य, चंद्रमा, कुबेर और वरुण भगवान कृष्ण के सम्मान में उनके आभार के लिए इस स्थान पर आए थे। इसके बाद भगवान कृष्ण ने यहां एक तीर्थ स्थल का निर्माण कराया, जिसे ब्रह्म तीर्थ या ब्रह्म कुंड के नाम से जाना जाता है।

सभी चित्र लेखक

वास्तुकला

कुंड की वर्तमान स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। पौराणिक भारतीय शैली में निर्मित इस कुंड की गहराई लगभग 15 फीट है। ब्रह्म कुंड एक आयताकार तालाब के रूप में है, और चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं, जिनसे जल तक पहुंचा जा सकता है। कुंड के चारों ओर पत्थर की आयताकार गैलरी बनी हुई है। जिसमें चलते हुए हम इस कुंड की दीवारों पर भगवान बलराम, वराह अवतार, भगवान श्रीकृष्ण और अन्य देवताओं की सुंदर मूर्तियां देख सकते हैं, जो पत्थरों में उकेरी गई हैं। इन मूर्तियों का सौंदर्य आज भी बहुत अच्छा है, हालांकि कुछ स्थानों पर नवीनीकरण किया गया है। चतुर्मुख ब्रह्माजी की मूर्ति एक छोटे मंदिर के मुख्य मंडप में रखी गई है।
हालांकि, फिलहाल कुंड में पानी की मात्रा बहुत कम हो गई है, और यह जल वनस्पतियों और काई से हरा हो चुका है, फिर भी इस पौराणिक स्थल की महत्ता बनी हुई है। यहां के जल को साफ करने और कुंड का नवीनीकरण करने की आवश्यकता है। जानकारी के अभाव और गुमनामी के कारण इस स्थल पर अब तीर्थयात्री कम ही आते हैं। यदि प्रशासन इस कुंड के बारे में जानकारी बांटे और इसे पुनः संवारा जाए, तो यह पौराणिक स्थल श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ बन सकता है।

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