मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

संकटग्रस्त भेड़िये के हमलावर होने की हकीकत

07:39 AM Sep 20, 2024 IST

जयसिंह रावत

Advertisement

इन दिनों भेड़िया बहराइच में लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा रहा है। देखा जाए तो भेड़िये को शेर और बाघ जैसे मांसाहारी जानवरों की तरह अत्यंत खूंखार माना जाता रहा है। विशेषज्ञ भेड़िये को बहुत शर्मीला और मनुष्य से बचकर रहने वाला मानते हैं। वास्तव में, बच्चों पर कुछ हमलों के अलावा किसी वयस्क पर हमले के कम ही दृष्टांत मिलते हैं। भेड़िये के कथित खौफ और उसके प्रति इंसान की बदले की भावना के कारण प्रकृति का यह एक महत्वपूर्ण जीव अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। इसकी आबादी भारत में 3 हजार से कम रह गई है। इसीलिए वन्यजीव अधिनियम में बाघ और शेरों के साथ इसे भी अति संरक्षित जीवों की सूची में रखा गया है। लेकिन संरक्षण तो रहा दूर, उसे बचाने के भी कोई उपाय नजर नहीं आते।
उत्तर प्रदेश में 1996-97 के बाद पहली बार भेड़ियों का इतने बड़े पैमाने पर आतंक देखा जा रहा है। ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर वोल्फ’ के ताजा अंक में छपे एक शोध के अनुसार पूर्वी उत्तर प्रदेश में वर्ष 1996 में बच्चों पर भेड़ियों के हमले अपने चरम पर पहुंचे। उस समय भेड़ियों ने 76 बच्चों पर हमले किए थे, जिनमें से 50 बच्चों की मौत हो गई थी। उ.प्र. के अन्य हिस्सों में भी वर्ष 1997, 1998 और 1999 में बच्चों पर हमलों की घटनाएं दर्ज हुईं।
दरअसल, यह मामला भी मानव-वन्यजीव संघर्ष का है, जिसमें अकेले भेड़िये को गुनहगार नहीं मान सकते। अगर दशकों बाद भेड़िया फिर मानव जीवन के लिए संकट बनकर बाहर निकला है, तो इस समस्या का समाधान भेड़ियों की नस्ल को समाप्त करने में नहीं, बल्कि इंसान और भेड़िया के बीच संघर्ष को समाप्त करना होना चाहिए ताकि दोनों ही जीवित रहें। धरती के हर जीव का होना जरूरी है और अगर धरती पर खूंखार मांसाहारियों और शाकाहारियों में संतुलन बिगड़ गया, तो शाकाहारी जीव वनस्पति जगत का विनाश कर डालेंगे। इसीलिए उनकी संख्या नियंत्रित करने के लिए प्रकृति ने मांसाहारियों का सृजन किया है। भारतीय भेड़िया दुनिया में जीवित भेड़ियों की सबसे प्राचीन वंशावली है और भारत में इसकी वंशावली 8 लाख साल पुरानी मानी जाती है।
देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान में वन्यजीव विशेषज्ञ के अनुसार वर्तमान में उपमहाद्वीप में भेड़ियों की संख्या का कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। वर्ष 2003 में किए गए दो आनुवंशिक अध्ययनों से पता चला था कि भारतीय उपमहाद्वीप में तीन हजार भेड़िया वंश मौजूद हैं। माना गया था कि देश में लगभग 350 हिमालयी भेड़िये जंगल में थे और शेष भारतीय भेड़ियों की आबादी 1,000 से 3,000 के बीच थी। जबकि इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन अभिलेखों से पता चलता है कि 1875 और 1925 के बीच 2,00,000 भेड़ियों की खालें एकत्र की गई थीं। जाहिर है कि उस समय भारत में भेड़ियों की संख्या कई लाख में रही होगी। एक अनुमान के अनुसार उस समय भारत में वन क्षेत्र लगभग 3.47 करोड़ हेक्टेयर था, जो कि भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग की 2021 की वनस्थिति रिपोर्ट के अनुसार 32,87,469 हेक्टेयर रह गया।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के ही डीन पद पर रहे एक जाने-माने वन्यजीव वैज्ञानिक ने लेख में कहा है कि भेड़िये बेहद शर्मीले और मायावी जानवर हैं जो इंसानों के संपर्क से बचने की कोशिश करते हैं। वे भारत में मनुष्यों पर भेड़ियों के हमलों को असामान्य बताते हुए लिखते हैं कि तीन दशकों में ऐसी घटनाएं केवल एक 1980 के दशक में बिहार में और दूसरी 1996-97 में उत्तर प्रदेश में दर्ज हुई हैं। (बहराइच की घटना नवीनतम है।) उनका कहना है कि भारतीय भेड़िये का वजन औसतन 18 किलोग्राम तक होता है, जो कि पालतू कुत्तों जैसे जर्मन शेफर्ड और लैब्राडोर के आधे जितना होता है। इसलिये भेड़िये से एक वयस्क व्यक्ति को कोई खतरा नहीं होता, जबकि बाघ, गुलदार, हाथी और जंगली सूअरों द्वारा हर साल बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं। यहां तक कि भारत में जंगली कुत्तों द्वारा भेड़ियों से कहीं अधिक लोग मारे जाते हैं। फिर भी भेड़िये को आदमखोर के रूप में बदनाम किया जाता है।
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय भेड़िये ने मानवीय गतिविधियों के कारण अपने प्राकृतिक शिकार और आवास का पांचवां हिस्सा खो दिया है। बाघ, शेर और हाथी के विपरीत, भेड़िये के संरक्षण के लिए सरकार की कोई प्रायोजित योजना नहीं है, जबकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में इसका उल्लेख है। हालांकि, इस कानून का क्रियान्वयन अव्यवस्थित है। भेड़ियों के असहाय शावकों को मारने के लिए उनके बिलों में जहर और धुआं दिया जाता है। भारत में ऐसा एक भी मामला नहीं है, जिसमें किसी व्यक्ति पर भेड़िये को मारने के लिए मुकदमा चलाया गया हो, जबकि बाघों के शिकार के मामले आम हैं।
भारतीय भेड़िया (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स) कंटीले जंगलों, झाड़ियों, और शुष्क घास के मैदानों में रहता है। यह जनसंख्या के निकट, विशेषकर पालतू पशुओं के लिए लालच के कारण, घने जंगलों के बजाय आबादी के पास पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, मवेशियों की मौत पर लोग मृत पशुओं को फेंक देते हैं, जो भेड़ियों और अन्य मांसाहारियों के लिए भोजन का स्रोत बनता है। इस प्रकार, भेड़िये ग्रामीणों के दुश्मन बन जाते हैं, और उनकी अधिकांश मौतें इन्हीं क्षेत्रों में होती हैं। भारत में भेड़ियों द्वारा किए गए नुकसान का मुआवजा देने की कोई व्यवस्था नहीं है।

Advertisement
Advertisement