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पूर्ण बजट में उभरेगी आर्थिकी की असली तस्वीर

06:46 AM Feb 03, 2024 IST
मधुरेन्द्र सिन्हा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा चुनाव के पहले अपना छठा बजट पेश किया जो सही मायनों में वोट ऑन अकाउंट था। दरअसल चुनाव के कारण परंपरागत रूप से कोई भी वित्त मंत्री पूर्ण बजट पेश नहीं करता और वोटरों को ललचाने वाले कदम नहीं उठाता। श्रीमती सीतारमण ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने भी इस परंपरा का पालन किया और रेवड़ियां बांटने की कोई कोशिश नहीं की। इसमें उन्होंने अच्छी तरह से अर्थव्यवस्था की स्थिति की व्याख्या की। उन्होंने यह भी बताया किस तरह से सरकार ने राजकोषीय घाटे को मैनेज किया और उसे लक्ष्य से भी नीचे ही रखा। पहले लक्ष्य था कि राजकोषीय घाटा कुल जीडीपी का 5.9 फीसदी हो लेकिन सरकार के प्रयासों और टैक्स देने वालों की उदारता से राजकोषीय घाटा 5.8 फीसदी पर ही रहा। यहां पर उन करोड़ों टैक्स देने वालों का भी योगदान रहा जिनके टैक्स देने से प्रत्यक्ष कर वसूली लक्ष्य से कहीं ज्यादा रही और सरकार को अपना लक्ष्य पाने में मदद मिली।
वित्त मंत्री के भाषण को सुनने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि सरकार इस समय आत्मविश्वास से भरी हुई है और उसे अगली लोकसभा भी दिख रही है। यहां पर यह कहना अनुचित नहीं होगा कि एनडीए सरकार वापसी की ओर देख रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो वह इसी बजट में किसी न किसी तरह रेवड़ियां बांटती, टैक्स में छूट देती और कुछ अन्य सुविधाएं देती। लेकिन यहां पर हमने देखा कि वित्त मंत्री ने इन सभी से दूरी बनाए रखी और इस बात का पूरा ख्याल रखा कि वोट ऑन अकाउंट की परंपरा का पालन हो। यह इस बात को इंगित करता है कि वित्त मंत्री ने अपनी पार्टी के बारे में न सोचकर देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सोचा। इस समय जबकि सभी अन्य पार्टियां राज्यों में चुनावों में किस तरह से रेवड़ियां बांट रही थीं और सरकारी खजाने को अपने निजी स्वार्थ के लिए निर्ममता के साथ लुटा रही थीं, श्रीमती निर्मला सीतारमण का यह व्यवहार प्रशंसनीय है। सभी पार्टियों को इसका अनुकरण करना चाहिए, चुनाव जीतने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई से दिये गये टैक्स के पैसों को उड़ाना कहां तक उचित है? बहरहाल वित्त मंत्री ने एक बढ़िया परंपरा रखी है जिसका आगे भी पालन होना चाहिए।
अब इस बजट पर चर्चा करने के लिए कुछ खास नहीं है। वित्त मंत्री ने टैक्स संबंधी पुराने अदालती मामलों को खत्म करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। देश में लाखों ऐसे टैक्स देने वाले हैं जो पुराने विवादों में फंसे हुए हैं यानी उनकी टैक्स देनदारी पर विवाद है। ऐसे मामलों को सदा के लिए खत्म करने के लिए वित्त मंत्री ने सरकारी लेनदारी को एक सीमा तक खत्म कर दिया है जिससे वे लोग आगे टैक्स दे सकेंगे। वर्षों से चल रहे ऐसे मामलों से छुटकारा पाकर सरकार ने टैक्स देने वालों को राहत दी है।
एक छोटा सा कदम सरकार ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करके उठाया है। आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताएं ग्रामीण तथा आदिवासी भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की पहली सीढ़ी हैं। दूर-दराज के इलाकों तथा वन क्षेत्रों में इनकी उपस्थिति तथा काम के प्रति निष्ठा से ही स्वास्थ्य सेवाएं देना संभव हुआ है। कोविड काल में इन्होंने अपनी जान पर खेलकर टीकाकरण के काम में जो कुछ किया उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। उनके लिए सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है। इससे उन्हें इसी तरह काम करते रहने की प्रेरणा मिलेगी।
अब लोकसभा चुनाव की ओर सभी का ध्यान है। बस कुछ ही दिनों में निर्वाचन आयोग इसकी घोषणा करेगा और फिर राजनीतिक हलचल अपने चरम पर होगी। लेकिन यह सरकार कुछ ऐसा जता रही है मानो वह भविष्य के प्रति निश्चिंत है। यही कारण था कि वित्त मंत्री ने इनकम टैक्स के यथावत रहने का भी संकेत दे दिया। उन्होंने टैक्स देने वालों को ललचाने की कोई कोशिश भी नहीं की। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि इनकम टैक्स की दरें पहले की ही तरह होंगी और उनमें बदलाव या छूट की कोई गुंजाइश नहीं है। लोकसभा चुनाव के सिर पर रहने के बावजूद इतना बड़ा कदम उठाना वाकई प्रशंसा का विषय है। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने में नई व्यवस्था के तहत सात लाख रुपये तक कमाने वालों पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। यह व्यवस्था पिछले साल भी थी। इसका मतलब हुआ कि अगला बजट पेश करने में अगर वह वित्त मंत्री रहीं तो इनकम टैक्स की दरों में कोई बदलाव नहीं होगा। यहां पर एक बात उल्लेखनीय है कि भारत की अर्थव्यवस्था भले ही दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है, उसके पास अन्य पैसे वाले देशों की तुलना में टैक्स देने वाले बहुत ही कम हैं। यहां की कुल आबादी का दो प्रतिशत ही टैक्स देती है जिसमें बहुत बड़ी तादाद वेतनभोगियों की है जो इनकम टैक्स के जाल से बच नहीं पाते हैं। अच्छा होगा कि वित्त मंत्री अगले बजट में उन लोगों को टैक्स के जाल में लाने की कोशिश करें जो अच्छा कमा रहे हैं लेकिन टैक्स नहीं दे रहे हैं। यह कठिन कार्य है और इसमें उन कृषि उत्पादकों को भी लाना होगा जो बहुत अच्छी कमाई कर रहे हैं, सरकारी सुविधाओं, सब्सिडी का भी उपभोग करते हैं लेकिन टैक्स देने के नाम पर सरकार को आंख दिखा देते हैं। ऐसे कई और वर्ग हैं जिनकी सरकार को खोज करनी चाहिए और टैक्स का दायरा बढ़ाना चाहिए। इससे टैक्स वसूली बढ़ेगी और सरकार अन्य तरह की कल्याणकारी योजनाएं बना सकेगी तथा उन्हें कार्यान्वित कर सकेगी।
अगला बजट जो जुलाई में आयेगा वह पूर्ण बजट होगा। अभी सरकारी आंकड़े अधूरे हैं और अनुमान से भरे हुए हैं। तब तक तस्वीर साफ हो जायेगी और सरकार के लिए बड़े फैसले लेना आसान होगा। वित्त मंत्री के तरकस में अभी टैक्स छूट के अलावा कई और तीर हैं जिससे जनता में खुशियां आ सकती हैं। वह चाहें तो 50,000 रुपये तक के स्टैंडर्ड डिडक्शन को बढ़ा सकती हैं, बीमा पर लगे टैक्स में कटौती कर सकती हैं, टैक्स रिटर्न देर से भरने वालों को राहत दे सकती हैं, सीनियर सिटीजन्स के ईपीएफ तथा एनपीएस पर एक सीमा के बाद लगे टैक्स को घटा सकती हैं। इस तरह के कदमों की गुंजाइश है जिसे उठाकर वह लोगों को राहत दे सकती हैं। यह संभव अगले बजट में होगा जिसे पूर्ण बजट कहा जायेगा। उसमें वित्त मंत्री के पास काफी कुछ होगा।
इंतजार कीजिये, लोकसभा चुनाव का और फिर नई सरकार का जो देश की जनता की आर्थिक स्थिति को सुधारने के बड़े कदमों के अलावा कुछ छोटे कदम भी उठायेगी। ऐसे कदमों से भी जनता का उत्साह बढ़ता है और वह टैक्स देने को प्रेरित होती है।

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लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।

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