हिमालय की अस्मिता का प्रश्न
सुरक्षा प्राथमिकता
सिलक्यारा सुरंग जैसे हादसे भविष्य में न हों, इसके लिए सुरक्षित आधारभूत संरचना की महत्ता को समझना होगा ताकि प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सके। हिमालय में प्रकृति से छेड़छाड़ करने के पहले मिट्टी की जांच, भूगर्भीय आकलन और सुरक्षा का पालन करना जरूरी है। साथ ही पर्यावरण का संतुलन बनाना भी जरूरी है। कोई भी निर्माण करने के पहले प्राकृतिक आपदा से बचने का मार्ग ढूंढ़ना होगा। चट्टानों को काट-काटकर घर-मकान बनाने से बचना होगा। सुरंग में पर्याप्त रोशनी और चट्टानों को उस पर गिरने से सुरक्षित करना होगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर
धरोहर को बचायें
उत्तराखंड के टनल में फंसे 41 मज़दूरों को जिंदा निकालने की जद्दोजहद हिमालय के विकास व पर्यटन से जुड़ा सवाल है। इस तर्ज पर पहाड़ों, वृक्षों का कटान प्रकृति से छेड़छाड़ मानवीय स्वार्थ है। पर्यावरण की सुरक्षा-स्वच्छता जीवन उपयोगी है, जानते हुए भी केदारनाथ की त्रासदी से हम अनजान नहीं हैं। हिमालय क्षेत्र में आवागमन को सरल-सुगम बनाने के लिए युद्धस्तर पर सड़कों के निर्माण से चारधाम यात्रा योजना को अमलीजामा पहनाना भूकंप आदि आपदाओं का न्योता है। सदियों से भारत के प्रहरी हिमालय की धरोहर को बचाने के लिए पर्यटन विकास की दौड़ धीमी करनी होगी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
संकट को न्योता
सिलक्यारा टनल में 41 मज़दूरों का फंसना, हिमालय के साथ विकास तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर पहाड़ों के साथ छेड़छाड़ तथा वृक्षों को काटकर सड़कें तथा सुरंगें बनाने का दुष्परिणाम था। वृक्ष न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखते हैं बल्कि पहाड़ों की मजबूती के लिए भी मदद करते हैं। केदारनाथ की त्रासदी से शायद हमने कुछ नहीं सीखा। चारधाम यात्रा को सरल करने की कवायद को लेकर जो कुछ हो रहा है इसका सीधा असर हिमालय पर पड़ता है। हम भूकंपों को न्योता दे रहे हैं। अतः हिमालय के साथ किसी प्रकार की छेड़खानी संकट को न्योता देना है।
शामलाल कौशल, रोहतक
उचित संतुलन जरूरी
दुनिया में प्रकृति की सुंदरता का कोई सानी नहीं है। हिमालय देश की शान है। प्रकृति से प्राप्त सुविधाओं से व्यक्ति लाभान्वित होता आ रहा है। लेकिन उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि प्रकृति के मूल स्वरूप को न बिगाड़ कर सैर-सपाटे या अन्य प्रकार की सुविधाओं के लिए सीमित रूप से ही उसमें बदलाव किया जाए। इस ओर जागरूक बनकर ही प्रगति की राह पर आगे बढ़ना चाहिए। प्रकृति एवं व्यक्ति की सुविधाओं के बीच उचित संतुलन बना रहना चाहिए। वरना इसके परिणाम भविष्य में भयावह हो सकते हैं।
दिनेश विजयवर्गीय, बूंदी, राजस्थान
विनाश की पृष्ठभूमि
उत्तराखंड में विकास के नाम पर हिमालय की प्रकृति पर लगातार प्रहार किये जा रहे हैं। हमें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि विकास का दायरा इतना होना चाहिए कि प्रकृति से ज्यादा छेड़छाड़ न की जाए। मानव अमर्यादित अंधाधुंध ‘विकास’ के चक्कर में यह भूल जाता है कि विकास ही उसके विनाश की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है। इसलिए पहाड़ों की प्रकृति को पूरी तरह से समझ कर ही किसी परियोजना का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
सेहत से खिलवाड़
विकास के नाम पर हिमालय में हो रहे हादसों और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ को रोकना होगा। आल वेदर रोड के निर्माण के चलते हिमालय की शांति भंग हो रही है। दिन-रात भारी-भरकम मशीनों से विस्फोटों से यहां के पर्यावरण, जैव विविधता को भारी नुक़सान पहुंच रहा है। यहां दुर्लभ जड़ी- बूटियां, पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं, जिन्हें बचाना जरूरी है। हिमालय, पर्यावरण और मौसम के लिए फेफड़ों की तरह है, जिसे असंतुलित कर देश की सेहत बिगड़ रही है।
संजय डागा, इंदौर, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
छेड़खानी न हो
हिमालय के कारण ही भारत में विभिन्न जड़ी-बूटियों का भंडार और जल का स्रोत है। हिमालय ही भारत को मध्य एशिया की ठंडी और शुष्क हवाओं से बचाता है और मानसून हवाओं को उत्तरी देशों में जाने से रोकता है। उत्तरी भारत में भारी वर्षा का कारण केवल हिमालय है। हिमालय भारत के लिए वरदान है और इस वरदान के साथ छेड़छाड़ करना प्रकृति के नियमों का उल्लंघन होगा क्योंकि यही वह सुरक्षा प्रहरी है जो हमें शत्रुओं से भी बचाता है। केवल रक्षा दृष्टि से हिमालय में आवश्यकतानुसार संतुलित बदलाव करना पड़े तो किया जाये, नहीं तो कोई भी छेड़खानी करने की आवश्यकता नहीं है।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र