श्रीलंकाई संसदीय चुनावों से साफ होगी तस्वीर
पुष्परंजन
राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के राजनीतिक लक्ष्य अभी पूरे नहीं हुए हैं। यह लक्ष्य संसदीय चुनाव के बाद पूरा होना संभव है। श्रीलंका में 2022 के आर्थिक संकट के बाद पहला राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हुआ, जिसमे वामपंथी अनुरा कुमारा दिसानायक को बम्पर जीत मिली है। नेशनल पीपुल्स पावर, सिंहली में जिसे ‘जातिका जन बलवेगय’, बोलते हैं, की स्थापना 2019 में हुई थी। संसद में इस पार्टी की हालत उस मोर की तरह है, जो नाचते हुए जब अपने पांव की ओर देखता है, ठहर जाता है। संसद में केवल तीन सांसदों के बूते अनुरा कुमारा दिसानायक कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं हैं।
मंगलवार को नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) की सांसद डॉ. हरिनी अमरसूर्या ने श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। वह इस पद पर आसीन होने वाली 16वीं शख्सियत बन गईं। डॉ. हरिनी अमरसूर्या न्याय, शिक्षा, श्रम, उद्योग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य और निवेश मंत्री के पोर्टफोलियो भी सम्भालेंगी। लेकिन यह सुनना थोड़ा अजीब लगेगा, कि प्रधानमंत्री के पद की शपथ लेने के चंद घंटों बाद श्रीलंका की संसद भंग कर दी जाएगी। अब संसदीय चुनाव दिसंबर में होंगे।
हालांकि, श्रीलंका में राष्ट्रपति, राज्य और सरकार दोनों का मुखिया होता है, लेकिन कार्यकारी राष्ट्रपति प्रणाली के कारण, दिसानायक को सारी चीजों को सुचारु रूप से चलाने के लिए सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होगी। श्रीलंका की 225 सदस्यीय मौजूदा संसद में अनुरा कुमारा दिसानायक की पार्टी के केवल तीन सांसद हैं। दक्षिणपंथी श्रीलंका पोदुजना पेरामुना के पास 225 सीटों में से 145 सीटों के साथ संसद में बहुमत रहा।
मंगलवार रात संसद भंग करने के बाद एनपीपी संसदीय चुनाव के लिए अपना अभियान शुरू करने की योजना बनाएगी। यदि एनपीपी दिसंबर में संसदीय चुनाव जीत जाती है, तो जो सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र से सबसे अधिक वोट और निर्वाचित सांसदों के बीच सबसे अधिक समर्थन प्राप्त करता है, उसे नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा। ऐसा नए राष्ट्रपति से सम्बद्ध सूत्रों ने जानकारी कोलम्बो से दी है।
तीन सदस्य और इतने सारे विभाग। नौकरशाही को चलाना भी इतना आसान नहीं, जहां संसद में एनपीपी के केवल तीन सदस्य हों। वरिष्ठ सांसद विजिता हेराथ और नए शपथ लेने वाले सांसद लक्ष्मण निपुण अराची को कई विभागों के साथ मंत्री नियुक्त किया जा चुका है। निपुण अराच्ची ने कल ही सांसद के रूप में शपथ ली। यह जगह कोलंबो निर्वाचन क्षेत्र में अनुरा कुमारा दिसानायके द्वारा रिक्त हुई थी। एनपीपी खेमे के सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके संसद को भंग करने के बाद चुनाव की संभावित तिथि तय करेंगे। इस तिथि के बाद चुनाव आयोग नामांकन के लिए 10 से 17 दिनों का समय देगा।
श्रीलंका में चार मंत्रियों की एक अंतरिम कैबिनेट के बीच 15 विभागों का बंटवारा हो चुका है। राष्ट्रपति दिसानायक पर्यटन, रक्षा, वित्त, न्याय, उद्योग और निवेश संवर्धन विभागों को अपने पास रखेंगे, जबकि प्रधानमंत्री विदेश मामलों, शिक्षा और मास मीडिया के अलावा बाक़ी विभागों को दो अन्य साथियों के सुपुर्द करेंगी। नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) के एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा कि दो महीने तक शासन सुचारु रूप से चलाने की चुनौती रहेगी, लेकिन हमारे नेता ऐसे समय को भी ढंग से मैनेज कर लेंगे।
सबसे बड़ा सवाल है कि क्या श्रीलंका का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और दबावमुक्त है? श्रीलंका का मीडिया गाहे-बगाहे टीएन शेषन को याद करता है। वहां के दैनिक अख़बार डेली मिरर ने आज अपने सम्पादकीय में लिखा, ‘भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के कार्यकाल के दौरान राजनेताओं को चुनाव कानूनों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने का डर था। एक मामले में, मध्य प्रदेश के एक निर्वाचन क्षेत्र में मतदान स्थगित कर दिया गया था, जहां एक कार्यरत राज्यपाल अपने बेटे के लिए प्रचार कर रहे थे, जिसके परिणामस्वरूप अंततः राज्यपाल को इस्तीफा देना पड़ा। मैंने ‘राजनेताओं को नाश्ते में खा लिया’, शेषन प्रसिद्ध टिप्पणी थी।’
श्रीलंकन मेन स्ट्रीम मीडिया को अब भी लगता है कि भारत का निर्वाचन आयोग बिना किसी दबाव के काम करता है। उसकी वजह कोलम्बो में निर्वाचन आयुक्त का प्रेशर में बने रहना भी है। ताज़ा उदाहरण अभी का ही है, जब चुनाव आयोग के निर्देशों की अनदेखी करते हुए चुनाव अभियान के दौरान एस्टेट कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की गई थी। मतदाताओं को रिश्वत देने और सत्ता का दुरुपयोग जैसी बीमारी चालीस साल पुरानी है। श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव ऐसे होते हैं, जिसमें मौजूदा राष्ट्रपति व्यक्तिगत रूप से चुनाव लड़ सकते हैं, या पद पर रहते हुए अपनी पार्टी के किसी सदस्य को चुनाव में खड़ा कर सकते हैं, जो समानता के सिद्धांत के खिलाफ है। प्रांतीय परिषद और स्थानीय सरकार के चुनावों का समय व्यावहारिक रूप से कार्यपालिका द्वारा निर्धारित किया जाता है।
वर्ष 1982 से अब तक देश में हुए नौ राष्ट्रपति चुनावों में से कोई भी चुनाव समान अवसर वाले माहौल में नहीं हुआ है, क्योंकि उम्मीदवारों में से एक या उसकी पार्टी के नेता को पहले से ही मौजूदा राष्ट्रपति के रूप में पुलिस, सशस्त्र बलों, सभी मंत्रालयों और विभागों सहित पूरे राज्य तंत्र को ऐसे चुनावों के दौरान जुटाने का अधिकार दिया गया था। पूर्व राष्ट्रपति डीबी विजेथुंगा को छोड़कर, अन्य सभी राष्ट्रपतियों ने लगातार चुनावों में अपनी पार्टी के प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अपनी कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल किया। नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने भी अपने भाषण में स्वीकार किया कि सत्ता पक्ष ने निर्वाचन आयोग को ‘घर की मुर्गी’ समझ रखा था।
बहरहाल, इस बार के परिणाम में पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को ज़ोर का झटका धीरे से लगा है। रानिल विक्रमसिंघे भविष्य में होने वाले आम चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि पार्टी का मार्गदर्शन करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। यूएनपी के उपनेता रुवान विजेवर्धने और अध्यक्ष वजीरा अबेवर्देना ने कुछ समय पहले श्री विक्रमसिंघे द्वारा लिए गए निर्णय की पुष्टि की। रानिल विक्रमसिंघे अपनी पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में रहकर यूएनपी का कितना उत्थान कर पाते हैं, उसे आने वाले वक्त पर छोड़ देते हैं।
संसद में श्रीलंका पोदुजना पेरामुना के पास 225 सीटों में से 145 सीटों का होना राजपक्षे कुनबे के दम्भ को बरक़रार रखे हुए है। 2.57 वोट प्रतिशत के साथ राजपक्षे का राइजिंग स्टार नमल, श्रीलंका के राजनीतिक क्षितिज से धूमकेतु की तरह ग़ायब हो चुका है। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे सोमवार को काठमांडो पहुंच गए। गोटबाया इसे ‘निजी यात्रा’ बताकर गए हैं। लेकिन गोटबाया का काठमांडो में चीनी कूटनीतिकों से मिलने का कार्यक्रम क्यों है? इस सवाल पर चुप्पी है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।