औद्योगीकरण से आत्मनिर्भरता की राह
हमारी जनसंख्या का बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में बसा हुआ है और कृषि पर निर्भर है। कई नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं तथा परियोजनाओं को लागू करने के प्रयासों के बावजूद कृषि पर निर्भरता को सरकार कम नहीं कर सकी। यही वजह है कि गरीबी तथा बेरोजगारी से निजात नहीं मिल पाई। किसानों को कृषि यंत्रों, अच्छे बीजों, पानी, उर्वरकों, कीटनाशकों, मजदूरी आदि पर काफ़ी ख़र्च करना पड़ता है, यदि समय पर वर्षा न हो और सूखा पड़ जाए तो आर्थिक हालात खराब होने और कर्ज की मार के कारण तमाम कृषक आत्महत्या कर चुके हैं। छोटे तथा मझोले किसानों व खेतिहर मजदूरों की स्थिति तब और भी गंभीर बन जाती है, जब ख़ाली समय होता है और कामकाज नहीं मिलता। इसलिए, ग्रामीण औद्योगीकरण करना जरूरी समझा जाता है।
एमएसएमई मंत्रालय, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, विकास आयुक्त कार्यालय, खादी और ग्रामोद्योग आयोग, कॉयर बोर्ड और अन्य प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत हैं। मंत्रालय का संबंध, नीति निर्माण, कार्यक्रमों, परियोजनाओं और योजनाओं तथा कार्यान्वयन सुनिश्चित करने से होता है। राज्य सरकारें जिला उद्योग क्षेत्रों, सेवा केन्द्रों के माध्यम से प्रयास करती हैं।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय और उसके अन्य संगठनों द्वारा जो सुविधाएं दी जाती हैं वे हैं-वित्तीय संस्थानों/बैंकों को पर्याप्त मात्रा में ऋण प्रवाह; प्रौद्योगिकी उन्नयन तथा आधुनिकीकरण के लिए सहायता; एकीकृत संचालन सुविधाएं; आधुनिक परीक्षण व गुणवत्ता प्रमाणन; आधुनिक प्रबंधन कार्यों तक पहुंच; उद्यमिता विकास और कौशल उन्नयन; उत्पाद विकास, डिज़ाइन हस्तक्षेप और पैकेजिंग के लिए सहायता; कारीगर और श्रमिक कल्याण; घरेलू व निर्यात बाजारों में बेहतर पहुंच के लिए सहायता; और इकाइयों तथा समूहों का क्षमता निर्माण तथा सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के वास्ते क्लस्टर-वार उपाय। औद्योगीकरण के अंतर्गत, ये उद्योग अनाज, कपास, सिल्क, पटसन, बीज, कागज़, गत्ता आदि पर आधारित हों और इनके साथ-साथ डेयरी पदार्थ, बांस, झाड़ू, वाइपर, डिटर्जेंट, लाख की चूड़ियां, जूते, चप्पल, सौर ऊर्जा, कला केन्द्र, देसी खाद्य पदार्थ, ग्रामीण पर्यटन, मेहमाननवाज़ी, गोबर खाद, भवन निर्माण, सामग्री, भठ्ठा ईंट, सीमेंट-ईंट, टाइलें, देसी दवाइयां, लेखन सामग्री, पैकिंग मेटीरियल, कलात्मक वस्तुएं, मशीनरी कलपुर्जे, लोहे से बनी वस्तुएं, प्लास्टिक का सामान व फर्नीचर, वनस्पति तेल, जैतून का तेल, बायो डीजल, खेलों का सामान, आटा चक्की, चीनी के बर्तन, बेकरी इत्यादि उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं।
जो समस्याएं ग्रामीण औद्योगीकरण के समक्ष हैं वे अनेक वर्षों से वैसी की वैसी बनी हुई हैं। वर्ष 1977 से कार्यरत जिला उद्योग केन्द्रों को भी किन्हीं कारणों की वजह से पूर्णत: सफलता नहीं मिल पाई। तकनीकी ज्ञान के अभाव में जो लघु व छोटे उद्योग चलाए गए उनमें से ज्यादा या तो बंद हो गए या बंद होने के कगार पर हैं। सबसे अधिक और गंभीर समस्या पर्याप्त ऋण की देखने को मिली। यही नहीं, बल्कि कच्चा माल सस्ता और समय पर न मिलने से उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा। आज का वैज्ञानिक युग बड़ी तीव्रता से बदल रहा है । यदि समय अनुसार बदलाव न हो तो उद्यमियों को हताश होना पड़ता है, यही हुआ है अधिकतर उद्यमियों के साथ। बड़े उद्योगों के सामने ये उद्योग नहीं टिक पाते क्योंकि प्रतियोगी नहीं बन सकते इसलिए, घाटे का सामना करते हैं। इनके पास कुशल प्रबंधक भी नहीं होते, जिससे कार्यकुशलता पर असर देखा जाता है। गरीबी हमेशा रास्ते में बाधा पहुंचाती है। इसी कारण गुणवत्ता में सुधार नहीं हो पाता क्योंकि अतिरिक्त निवेश की गुंजाइश नहीं होती। दी गई रियायतें भी प्रभावशाली सिद्ध नहीं हुईं।
ग्रामीण औद्योगीकरण के कुछ उपाय यदि अपनाए जाएं तो अवश्य ही गरीबी व बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान हो सकता है। औद्योगीकरण के लिए उन्हें प्रचार व प्रेरणा को बढ़ावा देने के लिए प्रेस, लोक संपर्क विभाग, टी.वी., रेडियो की सहायता लेनी चाहिए। वहीं सहकारी मिलों की स्थापना में राज्य सरकारों की ओर से योजनाबद्ध तरीके से कार्य कर न लाभ न हानि के सिद्धांत पर चलने की ज़रूरत है। जानकारी की कमी के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाती है। इसलिए, शुरुआत करने से पहले इन लोगों को गुणात्मक प्रशिक्षण देना होगा जिसकी व्यवस्था स्थानीय स्तर पर हो। सब्सिडी के बजाय बिना ब्याज ऋण दिए जाएं। मशीनरी के साथ ही पंचायत की जमीन या फिर शामलात भूमि उपलब्ध हो। कृषि आधारित उद्योगों को प्राथमिकता दी जाए, कच्चे माल पर विशेष छूट दी जाए, तैयार माल उच्च गुणवत्ता वाला हो, सरकारी ख़रीद या फिर बाज़ार उपलब्ध करवाया जाए। तकनीकी ज्ञान का ग्रामीणों में फैलाव, रियायतें जारी रखने, कृषि पर निर्भरता कम करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा उद्योग लगाने, सेवा केन्द्रों को सक्रिय बनाने, जिला उद्योग केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण कर सही दिशा में चलाने, नीति और नियत में दूरी समाप्त करने, आधारभूत संरचना की उचित व्यवस्था, उत्पादन की सरकारी खरीद, सोच बदलने, निरंतर प्रबोधन व मूल्यांकन से कार्यक्रमों के प्रभाव को आंकते हुए सुधार हेतु प्रयास, सरकारी सहयोग, सहायता व फीडबैक पर आधारित कार्यवाहियां करना, आधुनिकीकरण सुनिश्चित करना जैसे प्रभावशाली कदम उठाने की जरूरत है ताकि ग्रामीण औद्योगीकरण के परिणाम मिल सकें।