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अधूरी हसरत की कसक

06:52 AM Aug 18, 2024 IST
चित्रांकन : संदीप जोशी
विश्वनाथ अग्रवाल

नंदू की शादी से घर खुशियों से चहक रहा था। रामू ने पत्नी सीता से कहा लक्ष्मी जैसी बहू घर में शांति-समृद्धि लाएगी। बहू मधु सुन्दर-सुशील थी। धीरे-धीरे मधु के घर के काम में हाथ बंटाने से सास को सहारा हो गया। तकरीबन साल बीतने को आया। कुछ दिन पहले मधु भी मायके गई थी। रामू पत्नी से पूछ रहे थे कि ‘बहू कब आएगी?’ ‘लो, मधु के मायके से फोन आया है। मधु ने बेटी को जन्म दिया है।’ रामू बोले -एक साल में दो-दो लक्ष्मी आई हैं। घर में किलकारियां गूंजेंगी।’ कुछ दिन के बाद मधु बच्ची को लेकर ससुराल आई तो खुशियां मनाई गई। दादी तो बच्ची को छोड़ती ही नहीं थी। दादा भी उसे कभी घर में घुमाते, कभी बाहर पार्क में गोद में लेकर बैठते। दादा ने कहा, मैं इसका नाम मोना रखना चाहता हूं। सबने कहा अब यह हम सब की मोनू है।
समय बीतता गया । मोना ने स्कूल में पढ़ाई की, कॉलेज गई और फिर कंप्यूटर का कोर्स किया। पढ़ाई के साथ अच्छे अंकों से कंप्यूटर में भी महारत हासिल की । कंप्यूटर के काम से दादा जी को भी हिसाब-किताब में मदद मिलने लगी। मोना भी कभी मदद कर देती तो कभी न भी कर देती। कंप्यूटर के मामले में मूड़ी थी।
एक दिन दादा जी को कोई जरूरी हिसाब-किताब का काम आया। उन्होंने जल्दी-जल्दी कर भी दिया और मोना से कहा बेटा जरूरी काम आया है। आप इसको कंप्यूटर के जरिये पोर्टल पर डाल दो। मोना ने मना कर दिया और कहा कल-परसों करूंगी। दादा ने कहा बेटा जरा जरूरी है। जिसका काम है उसका नुकसान हो जाएगा। कहते-कहते वे मोना के पीछे-पीछे उसके कमरे की तरफ गये। पर मोना ने कमरे का दरवाजा जोर से बंद कर दिया। दादा जी को बुरा लगा। सोचने लगे मेरे लाड़-प्यार ने इसे बिगाड़ दिया। इसी उधेड़-बुन में वे अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गये। तकरीबन दो घंटे के बाद मोना ने कमरे का दरवाजा खोला और सीधा रसोई में गई। मोना की दादी भी रसोई में थीं। दादी ने शिकायत की, ‘मोना बेटा- तूने आज अपने दादा जी से ठीक व्यवहार नहीं किया। दादा तुम्हें कितना प्यार करते हैं। जब भी उनका दफ्तर से आने का समय होता तो बगैर घड़ी के तुम्हें पता होता कि दादा जी आने वाले हैं। तुम फर्श पर रेंगती हुई दरवाजे पर पहुंच जाती। दादा जी - तुम्हें देखकर खुश होते। तुम्हें प्यार करते, बिस्कुट-चिप्स का पैकेट देते। एक बार जब दादा जी शहर से बाहर काम से गये तो दो-तीन दिन लग गये। तुम रोज़ की तरह दरवाजे के पास जाती। मायूस हो जाती और दो-तीन दिनों तक दादा जी नज़र नहीं आये तो तुम मुरझा सी गई। एक दिन शाम को दादा जी आये। तुम घर के बाहर उदास खड़ी थी। दादा जी को देखकर खुश हो गई। दादा जी भी तुम्हें याद करते रहते थे। तुम्हें देखकर खुश हुए, तुम्हें दो पैकट चिप्स दिये। तुम फिर से खिल उठी थी। फिर जब तुम बड़ी हुई तो तुमने दादा जी से कहा दादा जी मेरे पास पढ़ने के लिये अलग कमरा नहीं है। दादा जी ने मन बनाया कि बड़ा फ्लैट लेंगे और यह घर बेच देंगे। फिर फ्लैट का सौदा हो गया। देखते-देखते नया घर मिल गया। तुम्हें अलग से कमरा मिला। दादा जी कितने खुश हुए, तुम सोच नहीं सकती।’
यह सुनकर मोना की आंखों में आंसू आ गये और बोली मैं दादा जी से माफी मांगंंंंूगी। दोनों दादा जी के कमरे में गये। दादा जी लेटे हुये थे। मोना बोली, ‘दादा जी मैंने आज आपके साथ ठीक नहीं किया। मैं आपसे माफी मांगती हूं।’
दादा जी तो पहले ही उसे माफ कर चुके थे। शायद भूल भी चुके थे। और इस दुनिया से विदा भी ले चुके थे। अपराधबोध से मोना की आंखें भर आई। रोने लगी, बोली, ‘काश! दादा जी, माफी मांगने का एक मौका तो देते।’
दादाजी के देहांत से परिवार में सन्नाटा छा गया। सूनेपन में मोना अपने मां-बाप के साथ दादी का भी ख्याल रखती। कभी दवा की जरूरत होती तो ला देती, कभी डॉक्टर को दिखाने भी ले जाती। एक बार दादी के मन में विचार आया कि मोना सयानी हो गई है। अब उसकी शादी होनी चाहिए। वह बहू मधु से बोली - ‘मैं सोचती हूं मोना सयानी हो गई है। इसके विवाह के बारे में कुछ सोचना चाहिए।’ बहू ने कहा- ‘मां जी मैं भी सोचती हूं पर कोई ढंग का रिश्ता सूझता नहीं।’ बहू आज तुम नंदू बेटे से बात करना।
शाम को नंदू घर आया। मुंह हाथ धोकर खाना खाया और टीवी देखने बैठ गए। मधु भी उनके कमरे में चली गई। उसने नंदू से कहा सुनो जी, ‘आज मांजी कह रही थी कि अब मोना की शादी के बारे में सोचना चाहिए।’ नंदू बोले- ‘मैं भी ऐसा ही सोचता हूं कल मां से बात करूंगा।’
दूसरे दिन नंदू ऑफिस जाने से पहले मां से बोले ‘मोना के बारे में मैं भी सोचता हूं। पर रिश्ता नजर नहीं आता।’ मां बोली, ‘बेटा दिल्ली में तुम्हारे नितिन मामा हैं। उनसे बात करो। एक बार बताया था कि उनके ससुराल के रिश्ते में कोई लड़का है।’ ‘ठीक है मां अगले इतवार दिल्ली जाकर मामू से बात करूंगा।’
दूसरे दिन नंदू अशोक विहार, दिल्ली में मामू के घर पहुंचा। घंटी बजाई तो सीमा मामी ने दरवाजा खोला। खुशी से बोली नितिन जी नंदू बेटा आया है। नाश्ता करने के बाद नंदू ने कहा मामू, मेरी मोना बड़ी हो गई है। मां ने कहा था आपसे बात करूं। शायद आपके ससुराल में कोई लड़का है। मामी ने कहा ‘हां, एक लड़का अमर है। लड़का बड़ी कंपनी में काम करता है। हफ्ते में दो-तीन दिन मुंबई, कोलकाता, चेन्नई व कभी विदेश जाता है। घर-बार ठीक है। बस उनको कुछ नहीं, सुंदर लड़की चाहिए। नंदू ने कहा मामू आप बात करके देखो। मामू ने कहा ‘ठीक है, मैं कल वहां पता करके आऊंगा।’ नंदू मामू-मामी से विदा लेकर चंडीगढ़ चल पड़ा।
नंदू ने घर आकर मां को सब बताया। सबको खुशी थी। इधर मोना को भी भनक पड़ गई। तीसरे दिन नितिन मामा ने नंदू को फोन पर बताया लड़के की मां से बात हो गई है। लड़के को लड़की पसंद आ जाए तो बात आगे चले। मामू ने कहा वे चंडीगढ़ आएंगे। इतवार की सुबह लड़का, उसकी मां और बहन व जीजा आ गए। नंदू ने मोना को आवाज़ लगाई। मोना आई, सब को नमस्कार किया और मुड़ कर जाने लगी। लड़के की बहन ने उसे पकड़ा व अपने पास बिठाया और बातें करने लगी। लड़के वाले भी आपस में सलाह-मशविरा करने लगे। लड़के ने भी हां कर दी। मोना शरमा कर अपने कमरे की तरफ भाग गई। शादी तय हो गई। वे बोले हम शादी जल्दी चाहते हैं। वापस जाकर मुहूर्त निकलवाएंगे और आपको बताएंगे। तीन-चार रोज के बाद फोन आया। विवाह का मुहूर्त जनवरी की 14 तारीख का निकला है। हम 11 लोग 14 तारीख को सवेरे पहुंच जाएंगे। शाम को लड़की के साथ आप लोगों से विदा लेंगे। देखते ही देखते 14 तारीख भी आ गई। लड़के की मां, बहन व दामाद और दो बच्चे बेटे अमर के साथ पहुंच गए। शादी की रस्में होने लगीं। नंदू ने भी अपनी तरफ से बड़ी धूमधाम से शादी की। विदाई का समय आया तो मोना को दादाजी की कमी खल रही थी। मोना को भी अपने दादा से माफी मांगने का एक मौका न मिलने का मलाल था। लेकिन जल्द ही अपने आप को संभाल लिया। भीगी आंखों से मां-बाप और दादी से विदाई ली। मोना दिल्ली में अपने ससुराल में आ गई। अमर की बहन, जीजा और मां सब खुश थे। आस-पड़ोस की औरतों ने कहा बहू तो बहुत सुंदर है। एक दिन अमर को नंदू का फोन आया कि मोना की दादी काफी बीमार है। मोना को याद करती है। मोना ने सुना तो सहम-सी गई। इतवार को मोना और अमर निकल पड़े। घर गए तो वहां पर ताला लगा मिला। पड़ोसियों से पूछा तो पता चला कि दादी को लेकर अस्पताल गए हैं। अस्पताल पहुंचे तो नंदू ने बताया कि मां को सांस की तकलीफ बढ़ गई थी, सो डॉक्टर ने ऑक्सीजन लगा दी है। अस्पताल में मोना दादी से लिपट गई और उसकी आंखें भर आई। फिर अमर और मोना ने मां-बाप से विदा ली।
दूसरे दिन ऑफिस से लौटकर अमर बोले कि दो तीन दिन के लिए उन्हें बांग्लादेश जाना है। मां का ख्याल रखना तुम्हें कुछ चाहिए तो ढाका से लेता आऊंगा। मोना बोली आप अपना ध्यान रखें। अगले दिन अमर चले गए। एकांत में मोना अतीत में खो गई। दादा-दादी को याद करते हुए उदास हो गई। दूसरे दिन दोपहर को पिता का फोन आया कि दादी को हार्ट अटैक आया था। अस्पताल जाते-जाते उनका देहांत हो गया। शाम को उनका संस्कार कर देंगे। मोना सन्न रह गई। अमर भी नहीं हैं। शायद तीन-चार दिन पहले दादी से आखिरी मुलाकात थी। वह बेबस होकर रह गई। अमर के लौटने के बाद अगले दिन चंडीगढ़ गए।
दिन बीतते रहे। मोना मायूस रहने लगी। फिर एक दिन मोना को पेट दर्द होने पर अमर उसे अस्पताल लेकर गए। वहां चेक करके डॉक्टर ने बताया वह मां बनने वाली है। कुछ दिनों के बाद अस्पताल में भर्ती हुई तो बेटा हुआ। खुशी के माहौल में दूसरे ही दिन मोना के मां-बाप भी आ गए। बच्चे और मोना को देखकर खुश हुए। उधर अमर की मां भी खुश थी फिर अमर मोना और बच्चे को छुट्टी दिला घर ले आया। मां ने बच्चे को खूब निहारा और दो सोने की गिन्नी निकाल कर पोते के पास रख दी। बहू से बोली, बेटा जब बड़ा हो जाएगा तो बता देना कि उसकी दादी ने दी थी।
बेटा बड़ा होने लगा। दादी भी उसे देखकर खुश होती, पर सेहत ठीक ना रहते बिस्तर पर पड़ी रहती। कैंसर की बीमारी की वजह से कमजोर हो गई थी। कुछ दिन बाद नींद में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। मोना की आंख भर आई। सोचने लगी, भगवान ने मेरे सर से सभी का साया हटा दिया। उधर अमर भी चुपचाप और मायूस रहने लगा।
सागर 8 साल का हो गया। मोना का ध्यान पूरा सागर पर लगा रहता। थोड़े दिनों के बाद कोरोना का कहर फैलने लगा। मोना को अपने मां-बाप की याद आई। उनको फोन लगाया पर बात नहीं हुई। पड़ोसन से पता चला कि नंदू और मधु जी कोरोना पॉजिटिव पाए गए और अस्पताल में भर्ती हैं। मोना प्रार्थना करने लगी कि हे ईश्वर मां-बाप को जल्दी ठीक कर देना। दूसरे दिन अस्पताल से फोन आया कि नंदू और मधु दोनों कोरोना के कारण मृत घोषित हुए हैं। उनका अंतिम संस्कार अस्पताल कर्मी करेंगे। कोरोना के चलते किसी को वहां आने नहीं दिया जाएगा। मोना फूट-फूटकर रोने लगी कि भगवान मुझे मां-बाप से मिलने का एक मौका तो देते। शाम को अमर आए और मोना उन्हें घटना बताकर रोने लगी। अमर ने मोना को हौसला दिया। मोना सोचती रही कि मेरे साथ क्या हो रहा है। फिर सोचने लगी कि मैंने दादाजी को भी दुख दिया था। जैसा बोया है वही तो काटूंगी।
दो-तीन दिन के बाद अमर ऑफिस से आए और मोना से कहा कि कल दफ्तर की तरफ से चेन्नई जाना है। अगले दिन अमर ने अटैची उठाई और चल दिए। दो दिन बाद अमर का फोन आया, मैं शाम की फ्लाइट से घर पहुंचूंगा। मोना जल्दी-जल्दी तैयार हो अमर का इंतजार करने लगी। मोबाइल पर एक एयरलाइन्स कंपनी का फोन आया कि चेन्नई से आने वाली फ्लाइट क्रैश हो गई है। किसी के बचने की संभावना नहीं है। मोना बेहोश होकर गिर गई। सागर ने देखा तो डर गया। बोला, मम्मी पापा थोड़ी देर में आ जाएंगे। मोना की चीख निकल गई नहीं...नहीं...नहीं!
नंदू पूजा व पति और बच्चे राजू- संजू तुरंत पहुंचे। पूजा और मोना तो खूब रोए। पूजा के पति बोले, मोना हौसला रखो, देखो सागर की तरफ। उसको बहुत सहारे की जरूरत है। मोना ने सागर को गले लगा लिया। बोली- मैं सागर को अमर की निशानी समझ कर एक बड़ा आदमी बनाऊंगी। बीतते समय के साथ सागर ने एमबीए कर लिया और नौकरी तलाशने लगा। फिर एक दिन पापा के दफ्तर वालों ने अधिकारी के पद पर नौकरी दी। मां बेटे के दुख कम हुए। एक महीने बाद कंपनी के मालिक ने सागर को अमेरिका भेजने की बात कही। तनख्वाह भी दोगुनी व फ्लैट भी मिलेगा। सागर ने घर आकर मां को बताया तो मां ने कहा मैं अकेली हो जाऊंगी। सागर ने कहा, मां मैं तुम्हें भी बुला लूंगा। सागर ने अमेरिका जाने की तैयारी शुरू कर दी। फिर अमेरिका से सागर का का फोन आया, मां मैं यहां पहुंच गया हूं। फ्लैट भी मिल गया है। यह न्यूजर्सी शहर है। यहां बहुत से भारतीय परिवार हैं। मैं अपना फोन नंबर दे रहा हूं। अपना ख्याल रखना।
एक महीना बीत गया, सागर का फोन नहीं आया। मोना ने फोन किया। सागर ने फोन पर कहा, मां काम बहुत है। बिजी रहता हूं। बस रात 11 बजे के बाद घर पहुंचता हूं। उसी वक्त फोन किया करो। फिर 3 महीने बीत गए, सागर का फोन नहीं आया। फिर फोन मिलाया, नहीं मिला। सागर का फोन आया मैं ठीक हूं। एक हजार डॉलर आपके बैंक खाते में डलवाए हैं। मोना बोली बेटा मैंने पैसे का क्या करना है। साल होने को आया। सागर का फोन आया—कंपनी ने मुझे यहां पक्का कर दिया है। एक भारतीय लड़की हमारे ही दफ्तर में काम करती है। उसका नाम सरिता है। मां बोली, ‘बेटा तुम कब आओगे। कब मुझे ले जाओगे। मैं यहां पर अकेली हूं।’ मां थोड़े दिन के बाद। फिर कुछ दिन बाद सागर ने फोन पर कहा, मैंने मंदिर में सरिता से शादी कर ली है। मोना को झटका तो लगा मगर बोली, बेटा मैं अपने हाथ से उसको साड़ी पहनाऊंगी। बहू को देखने का बहुत मन कर रहा है। मुझे तुम जल्दी से ले जाओ। मोना ने बहू के लिए रखी साड़ी और जेवर अलमारी से निकाले और अपने पलंग पर रख लिए।
मोना के मन में बहू-बेटे से मिलने की उत्सुकता इतनी बढ़ गई कि दूसरे ही रात सागर को फोन किया कि तू कब बहू को लेकर मेरे पास आएगा। सागर बोला, अगले साल देखूंगा। मोना को गहरा आघात लगा। फिर लाइट बंद कर लेटी तो गहरी नींद में चली गई। दो दिन बाद पड़ोसियों ने दरवाजा खटखटाया तो कोई जवाब नहीं आया। पुलिस आई तो दरवाजा तोड़ कर देखा मोना बिस्तर पर बेसुध पड़ी है। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित किया। पुलिस ने मोबाइल खंगाला तो सागर का नंबर मिला। उसको फोन लगा जल्दी आने को कहा।
पूजा और उसके पति शशि व बच्चे राजू और संजय भी पहुंच गए। दूसरे दिन सवेरे सागर और सरिता भी आ गए। पूजा ने मोना के मुंह से कपड़ा उठाया। सागर रोने लगा और चीख कर बोला, ‘मां मुझे माफी मांगने का एक मौका तो देती।’ सब मां के बिस्तर के पास ही बैठे रहे। सागर ने देखा पास में ही एक डिब्बा रखा है उसमें एक साड़ी और जेवर थे। रोते-रोते सागर कहने लगा, ‘मां की अपनी बहू को साड़ी और चूड़ा पहनाने की हसरत अधूरी रह गई।’

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