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उपदेशों को जीने में ही सार्थकता

09:10 AM Jul 01, 2024 IST
उपदेशों को जीने में ही सार्थकता
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सुदर्शन
यह सर्वविदित है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी जीवन-यात्रा तो समाज के बिना चल ही नहीं सकती। सृष्टि का आदि-पुरुष मनु तब तक उदासीन ही बना रहा, चिन्ताग्रस्त ही बना रहा जब तक आद्या नारी श्रद्धा से उसका साक्षात्कार नहीं हो पाया।
जैसे एक दीपक से दूसरा दीपक जलता है, वैसे ही एक व्यक्ति के अच्छे विचारों से दूसरा भी प्रभावित होता है। पवन चलता है यदि चलने वाला पवन उत्फुल्ल कुसुमोद्यान में से चले तो वह सुवासित होगा। यदि वही पवन गन्दगी के ढेर से सम्पर्क पाकर आये तो वह दुर्गन्ध से युक्त होगा। ऐसे ही एक व्यक्ति के अच्छे या बुरे विचार रूपी पवन का प्रभाव सारे समाज पर पड़ता है। व्यक्तियों के विचार बिगड़े नहीं सुधरें, उनमें कुप्रवृत्ति‌यों के स्थान पर सुप्रवृत्तियां पैदा हों, मानव के विचार समाज के पतन का कारण नहीं, उत्थान का कारण बने; इसलिए उपदेश की आवश्यकता पड़ती है।
उपदेश उप+दिशा के संयोग से बना है। इसका • अभिप्राय है- पास जाकर निर्देश देना, मार्ग बताना। दूसरे शब्दों में कर्तव्य और अकर्तव्य से परिचित कराना। उपदेश में ‘उप’ शब्द का बड़ा महत्व है। इसका अभिप्राय यह है कि वही व्यक्ति उपदेश दे सकता है जो उस प्राणी के बहुत समीप हो जिसे वह उपदेश देना चाहता है। अर्थात‍् उपदेश देने के लिए घनिष्ठता की आवश्यकता है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि प्रत्येक प्राणी अपने को बड़ा समझदार और विद्वान समझता है। वह समझता है कि भगवान ने उससे बढ़कर समझदार व्यक्ति कोई पैदा नहीं किया। वास्तव में उपदेश सदा कटु होता है। मधुर हो ही नहीं सकता। संस्कृत में लिखा है :-
हितं मनोहारि च दुर्लभं वच:।
अर्थात‍् हित करने वाली बात मनोहारी हो, यह कठिन है। किसी कुप्रवृत्ति या कुसंगति में पड़े हुए किशोर या तरुण को यों समझायें तो यह बुरा अनुभव करेगा। ऐसा इसलिए कि उसे वे बातें कटु लगेंगी। उपदेश में कटुता रहती है।
दूसरा बुराई एक आसक्ति है। उससे किसी को हटाना सुगम नहीं। अतः बुराई की इस आसक्ति से हटाकर अच्छाई की ओर ले जाने वाला प्रत्येक प्रयत्न कटु ही होगा। कथनी से करनी का प्रभाव अधिक होता है। कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कुछ न कहकर अपने जीवन में ऐसे कार्य करे जिनसे दूसरे व्यक्तियों के जीवन पर सद्‌प्रभाव पड़े। श्रीराम का जीवन उपदेशपूर्ण न होकर आदर्शपूर्ण बना। गुरु तेग बहादुर का आत्मबलिदान, गुरु गोबिन्द सिंह के बच्चों का बलिदान, बाल हकीकत राय का धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति देना उनके आदर्श जीवन का ही परिचय देता है।
सभी मनीषियों ने उपदेश से अधिक आदर्श को महत्व दिया है। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं :-
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जो आचरहिं ते नर न घनेरे॥
महात्मा कबीर इस बारे में लिखते हैं :-
कथनी मीठी खाण्ड सी करनी विष को लोय, कथनी तज करनी करे विष अमृत होय॥
आदर्श के महत्व को प्रकट करते हुए कबीर जी लिखते हैं :-
कथनी थोथी जगत में करनी उत्तम सार, कथनी तज करनी करो तब पावो उद्धार॥
मनीषियों के इस कथन से यह प्रमाणित होता है कि आदर्श उपदेश से भी बढ़कर है। जो व्यक्ति आदर्श के स्थान पर केवल उपदेश देता है, उसका कभी सम्मान नहीं होता। पंजाबी में एक कहावत है :-
आप न बस्सी सौहरे लोकां मतां दे।
उर्दू के एक शायर ने लिखा है :-
खुद मियां फजीहत औरों को नसीहत।
अर्थात‍् जो अपनी कही बातों पर आचारण नहीं करते और दूसरों को उपदेश देते हैं। उनका उपदेश दो कानों के समान होता है। एक कान में डाला और दूसरे कान से निकाल दिया।
विद्वानों का कहना है कि अपने जीवन को ऐसा बनाओ जिसका अनुकरण दूसरे करें। उपदेशों से कुछ नहीं बनता।
तभी तो केवल उपदेशकों का ध्यान रखते हुए, जिनका अपना जीवन कुछ भी नहीं होता। ऐसे लोगों के बारे में गोस्वामी जी ने कहा था :-
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

व्रत-पर्व

2 जुलाई : योगिनी एकादशी व्रत।
3 जुलाई : प्रदोष व्रत।
4 जुलाई : मास शिवरात्रि व्रत, चतुर्दशी व्रत।
5 जुलाई : आषाढ़ अमावस।
6 जुलाई : गुप्त नवरात्र प्रारंभ।
7 जुलाई : चंद्रदर्शन (30 मुहूर्ति), रथ यात्रा-उत्सव (श्रीजगन्नाथपुरी), मनोरथ द्वितीय (बंगाल) श्री राम-बलराम रथोत्सव, मेला त्रिमौणी (सिरमौर)। - सत्यव्रत बेंजवाल

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