गुलजार है बाजार खरीदो दिवाली पर
दीवाली का त्योहार बहुत कलाकारी से खऱीदारी का त्योहार बना दिया गया है। दिवाली आ गयी है, इसका पता कैसे चलता है, जी जब तमाम तरह की सेल शुरू हो जायें। अमिताभ बच्चन साहब हफ्तों से कह रहे हैं-सेल लग गयी है, मोबाइल ले लो, वो वाला ऑयल ले लो, ले लो बस ले जाओ, जब इस तरह की चीख पुकार फुल वोल्यूम पर मच ले, तो समझ लें कि दिवाली आ गयी है। पूरे साल अमिताभ बच्चन कुछ ना कुछ बेचते ही रहते हैं। पर इन सेलमयी दिनों में अमिताभ बच्चन हर तरफ दिखायी दे रहे हैं। थोड़ा चकराता हूं कि बच्चन साहब कर क्या कर रहे हैं, एक इश्तिहार में बता रहे हैं कि कल्याण ज्वैलर्स से ज्वैलरी लो, जी बिलकुल ले आये। फिर अगले इश्तिहार में बता रहे हैं कि इस ज्वैलरी को जाकर मुथूट वालों के यहां गिरवी रख दो, लोन ले लो। जी लोन ले लिया, फिर बता रहे हैं कि लोन से जाकर कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में। सोना बेचकर कर्ज लो और गुजरात घूमकर आओ, बच्चन साहब यह बता रहे हैं। इस देश की युवा पीढ़ी पहले ही विकट कर्ज खाऊ हो गयी है, चार-पांच क्रेडिट कार्ड लिये घूम रहे हैं।
जनता को बताना पर खुद ना करना
बच्चन साहब जितना कुछ बेचते हैं दिवाली पर, उतना सब खरीदने जाये बंदा, तो वर्ल्ड बैंक भी लोन ना दे सकता। शक्ति पंप से लेकर बाइक तक सब कुछ बेच रहे हैं दिवाली पर, लिपस्टिक को छोड़कर बच्चन साहब दिवाली पर हर आइटम की सेल मचाये हुए हैं। अभी विराट कोहली को देखा, बता रहे थे कि वह वाली बाइक पर चलना चाहिए, अगले ही एड में बता रहे थे कि उस वाली टैक्सी सर्विस में चलना चाहिए। पर वो हमें ना कभी बाइक पर दिखे, ना टैक्सी में, यह बड़े आदमी के लक्षण हैं, जनता को बता देता है कि आपको यह करना चाहिए खुद ना करता। तमाम नेता पब्लिक को बता देते हैं कि राष्ट्र सेवा में लगो, फिर खुद वो स्विटजरलैंड या सिंगापुर निकल लेते हैं।
खरीदो जी...
खरीदो। खरीदो जी, खरीदना पड़ेगा। एक बाबाजी ने दिवाली सेल में शिविर लगाया यह सिखाने को कि किस तरह से माया -मोह से दूर हुआ जाये। शिविर ज्वाइन करने की फीस आठ हजार रुपये। आठ हजार की न्यूनतम माया हो तो बड़ी माया को छोड़ने की तरकीब सीखी जा सकती हैं। छोटी माया जेब में रखकर जाइये, बड़ी माया से छुटकारे का उपाय लेकर आइये। दिवाली सेल में शादी डाट काम वाले इश्तिहार भेजते हैं कि शादी करो हम जिससे बतायें। इस मैसेज के साथ ही तलाक डाट काम के आफर भी आने शुरू हो जाते हैं, सस्ते में तलाक करवानेवाले वकीलों की फेहरिस्त भी इश्तिहार में आ जाती है। साथ ही आ जाता है इश्तिहार -दूसरीशादी डाट काम। मैं तो डरता हूं कि मोबाइल कंपनी वाले कहीं शादी के कारोबार में कूद लें तो हर साल तलाक की प्रेरणा देंगे। दूसरी शादी डाट काम के बाद तीसरी शादी डाट काम भी मौजूद है।
बहुत मेहनत से मार्केटिंग
एक कारोबारी को मैंने कहा-क्या बदतमीजी है। एक लाख का फोन कोई ग्राहक खऱीदता है उसे दो-पांच साल चलाने तो दो। एक जमाने में एक लाख में शादी हो जाती थी, जो पचास-साठ साल चल जाती थी। बल्कि कुछेक हजार में हुई शादियां तो सत्तर अस्सी साल भी चलते देखी हैं हमने। कारोबारी ने बताया-बिलकुल चिंता ना करें, हम बहुत मेहनत से मार्केटिंग कर रहे हैं। बहुत जल्दी ऐसा हो जायेगा कि मोबाइल छह महीने से ज्यादा ना चला करेंगे। मोबाइल सेल वाले जो ठान लेते हैं, करके दिखा ही देते हैं। मसला यह है कि खरीदो, दिवाली के नाम पर खरीदो, होली के नाम पर खऱीदो, इयर एंड के नाम पर खऱीदो, न्यू इयर के नाम पर खरीदो, खरीदो। खरीदने की सामर्थ्य अपने पास हो, तो किसी से पूछना नहीं होता है। कई बार तो बताना तक ना होता किसी को। ऑनलाइन शॉपिंग में तेजी से ऐसी महिलाओं की तादाद बढ़ रही है, जो दो से पांच हजार महीने की शॉपिंग ऐसे ही मजे मजे में ऑनलाइन कर लेती हैं। जरा गौर कीजिये, मीडिया में, साफ्टवेयर में, बैंकिंग में कई महिलाएं ऐसी दिखायी देंगी जो 25 से 35 साल की उम्र के बीच में हैं, और उनके लिए दो हजार-तीन हजार प्रति माह शॉपिंग बहुत बड़ी बात नहीं। पर यह बहुत बड़ी बात है तमाम ऑनलाइन वेबसाइटों के लिए।
खऱीद निर्णय में महिलाओं की भागीदारी
एक कंपनी ने जबसे इंटरनेट के रेट सस्ते किये हैं, सस्ता इंटरनेट अब लगभग हर किसी की पहुंच में है। एक की प्रतिस्पर्धा में दूसरे टेलीकाम आपरेटरों को भी इंटरनेट सस्ता करने को मजबूर किया है। इसके चलते हुआ यह है कि पहले इंटरनेट का इस्तेमाल सीमित हुआ करता था। अब दिल खोलकर सब इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। और इंटरनेटयुक्त स्मार्टफोन सिर्फ घर के कमाऊ मर्द के साथ ही नहीं चलता। गृहिणियों के पास भी स्मार्टफोन है, और उसमें इंटरनेट के जरिये तमाम शॉपिंग वेबसाइट, शॉपिंग एप्लीकेशन महिलाओं तक पहुंच रहे हैं। मसला सिर्फ ऑनलाइन का नहीं है। जेब में क्रय क्षमता की बढ़ोतरी का असर ऑफलाइन खरीद में और ऑनलाइन खरीद में दोनों में दिखायी दे रहा है। खऱीद निर्णय में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। एक सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक 2006 में परिवार के खरीद संबंधी निर्णयों में से करीब 60 प्रतिशत निर्णयों में महिलाओं की राय ली गयी थी। दस साल बाद यानी 2016 में यह आंकड़ा बढ़कर 73 प्रतिशत हो गया। 2006 से 2016 के बीच बैंक खाताधारी महिलाओं की संख्या तीन गुने से ज्यादा हो गयी। ये सारे आंकड़े आर्थिक निर्णयों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की सूचना देते हैं।
वेबसाइट पर ढेरों ऑप्शन
कई मध्यवर्गीय परिवारों, उच्च मध्यवर्गीय परिवारों में खरीद के कई महत्वपूर्ण निर्णय महिलाओं पर इसलिए छोड़ दिये जा रहे हैं कि सारी जानकारियां, सारी सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। उन सूचनाओं के आधार पर तमाम फैसले किये जा सकते हैं। सारी जानकारियां हों, खरीद के फैसले की क्षमता हो, तो इंटरनेट शॉपिंग के लिए बेहतरीन माध्यम बन ही सकता है। अब लड़कियों की खरीदारी का पैटर्न बहुत बदल गया है। पहले से ऑनलाइन वैबसाइटें खंगाल ली जाती हैं, यह पता करने के लिए कि कितने विकल्प मौजूद हैं। भारतीय महिला खऱीदार में तमाम तरह के अधिकतम विकल्प खंगाल लेने की अदम्य आकांक्षा मौजूद रहती है। इसी आकांक्षा को आधार बनाकर एक कंपनी ने एक विज्ञापन बनाया था, जिसकी थीम थी-और दिखाओ यानी दिखाते ही जाओ। ऑफलाइन दुकानदार तो सौ साड़ी दिखाने के बाद कुछ संकेत भी देने लगता है कि प्लीज अब फैसला कर लें। इंटरनेट पर कोई ऐसी बाधा नहीं है। वेबसाइट दिखाती ही जाती ही, दिखाती ही जाती है। कोई आइटम ग्राहक द्वारा पसंद किये जाने के बाद शॉपिंग वेबसाइट यह भी बताती है कि जिन्होंने इस आइटम को पसंद किया, उन्होंने यह यह आइटम और खरीदा। ये भी देखिये। फिर तकनीक ने यह संभव कर दिया है कि अगर किसी ने एक बार किसी आइटम की सर्च किसी वेबसाइट पर कर ली तो फिर उसके तमाम विकल्प ग्राहक के पास आते रहते हैं, इंटरनेट पर जाते ही। यह भी देखो, यह भी देखो। ‘और दिखाओ’ की भारतीय मानसिकता को इंटरनेट शॉपिंग साइटों में खूब पकड़ा और इससे अपनी सेल में लगातार बढ़ोतरी की है।
हर मौका सेल का मौका
सचमुच की दुकान के मुकाबले ऑनलाइन शॉपिंग में बहुत सस्ती डील मिल जाती है। इतनी सस्ती कि जरूरत ना होने पर भी कई बार कई आइटम खऱीद लिये जाते हैं। इस तरह से ऑनलाइन शॉपिंग एक आदत बनती है फिर लत में तब्दील हो जाती है। गौर से देखिये, भारत में लगभग हर मौके को ऑनलाइन दुकानें सेल के मौके के तौर पर प्रयोग करती हैं। न्यू ईयर ऑनलाइन सेल, गणतंत्र दिवस सेल, वैलंटाइन डे ऑनलाइन सेल, होली सेल, समर सेल, स्वतंत्रता दिवस सेल,नवरात्रि सेल, गणपति सेल, दिवाली सेल, क्रिसमस सेल। ऑनलाइन शॉपिंग इंटरनेट के चलते बहुत सहज हो गयी है और इसके चलते मोबाइल ही बाजार हो गया है, जो जेब से पैसे निकाले ले रहा है। देखने में आया कि ऑनलाइन खऱीदारी के लती लोगों में महिलाओं का अनुपात ज्यादा है। डिस्काउंट उन्हे आकर्षित करता है और घर में बेवजह चीजें भी ढकेल जाता है। डिस्काउंट पर माल बेचकर ऑनलाइन सेल कंपनियों ने तो अपनी वैल्यू बढ़ा ली। पर डिस्काउंट पर बेवजह माल खऱीदकर ग्राहक की जेब लगातार खाली हो जाती है। इस बात का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है, खास कर ऑनलाइन शॉपिंग में क्योंकि यहां तो बाजार सीधे आपके जेब से पैसे निकालने आपके घर ही आ पहुंचा है मोबाइल या कंप्यूटर के जरिये। डिस्काउंट बहुत बड़ा हथियार है। दिवाली पर डिस्काउंट मिलेगा, यह भाव कई ग्राहकों के मन में रहता है। इसलिए डिस्काउंट के हथियार से ग्राहकों को मारा जाता है।
डिस्काउंट है....
डिस्काउंट है, और अगर हम ले ना पाये, तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा, यह सोचकर भी लोग परेशान रहते हैं। डिस्काउंट अगर है, तो उसे हासिल करना ही चाहिए। इस चक्कर में कई बार ऐसे आइटमों की खरीदारी हो जाती है, जिनकी दरअसल कोई जरूरत ना होती। पर अब अपनी जरूरत से कौन खरीदता है। अब तो बाजार की जरूरत और मार्केटिंगवालों की जरूरत से ही खरीदना पड़ता है। अमेजन, फ्लिपकार्ट वाले पूरे साल इंतजार करते हैं, दिवाली का, वह हैप्पी न्यू ईयर का भी इंतजार करते हैं, माल बेचना है जी। पर इसका एक असर भौतिक दुकानों के दुकानदार महसूस कर रहे हैं। घऱ बैठे ऑनलाइन खऱीदनेवाला ग्राहक सचमुच के बाजार में आने की जहमत नहीं उठाता। इससे भौतिक दुकानों के दुकानदारों के लिए बहुत दिक्कत हो रही है। ऑनलाइन शॉपिंग भौतिक दुकानों के मालिकों के लिए कष्टकारी साबित हो रही है। बाजारों में ठीक वैसी रौनक नहीं है, जैसी पहले के वक्त में हुआ करती थी। रौनक अब बंदों के मोबाइल में है, जहां मोबाइल एप्लीकेशनों के जरिये वो धड़ाधड़ आर्डर कर रहे हैं और धड़ाधड़ शॉपिंग कर रहे हैं।
लेखक आर्थिक पत्रकार और व्यंग्यकार हैं।