‘एक देश, एक चुनाव’ की तार्किकता
गंभीर मंथन जरूरी
आम चुनावों से कुछ माह पहले ही एक देश एक चुनाव की बात करना अतार्किक नजर आता है। इस फैसले की तमाम जटिलताएं हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले देश के राजनीतिक दलों और राज्यों में गैर-भाजपा दलों की सरकारों से गंभीर विमर्श नहीं हो पाया। ऐसे में लगता है कि एक देश एक चुनाव का मुद्दा, चुनावी शिगूफा मात्र है। वहीं इस बार के आम चुनाव से पहले इस योजना को अमलीजामा पहनाया जाना असंभव नजर आता है। नि:संदेह ऐसे बड़े फैसलों पर व्यापक मंथन की जरूरत होती है, जिसमें विपक्ष, लोकतांत्रिक संस्थाओं और जनता की भागीदारी जरूरी होती है।
भारत भूषण, प्रतापनगर, यमुनानगर
विकास संभव
देश के प्रधानमंत्री काफी समय से देश में लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की बात कहते रहे हैं तथा इस पर चर्चा भी होने लगी है। क्योंकि देश में वर्षभर कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं जिस कारण समय, सुरक्षा,, वित्त एवं कर्मचारियों की आवश्यकता बहुत बढ़ जाती है। विकास कार्यों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए एक देश, एक चुनाव की परम्परा यदि फिर से लागू हो जाए तो जनता एवं समस्त देशवासियों के लिए बहुत हितकारी साबित हो सकती है। इस विषय पर सभी राज्यों एवं भारत सरकार को मिलकर विचार करना चाहिए।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
जनता की राय लें
देश में एक राष्ट्र एक चुनाव का विचार चुनाव चक्र को इस तरह से संरचित करने का है कि लोकसभा, विधानसभा, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव समकालिक ही हों। निश्चित ही इससे देश के धन, श्रम शक्ति व समय की बचत होगी जिसे विकास कार्यों के लिए समायोजित किया जा सकता है। लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान व संबंधित कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी। इसे लागू करने से पहले जनता की राय भी लेनी चाहिए। कुल मिलाकर कहा जाए तो एक देश, एक चुनाव का विचार अच्छा है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
देश के लिए फायदेमंद
वर्ष 1967 से पहले एक देश, एक चुनाव का विधान था लेकिन फिर यह क्रम टूट गया। लेकिन एक साथ चुनाव करवाना देश के लिए लाभदायक है। सबसे पहले तो यही कि बार-बार आचार संहिता से जो विकास परियोजनाएं बाधित होती हैं उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। दूसरा एक साथ चुनाव से धन की बचत होगी जिससे देश पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। इससे पार्टियों व प्रत्याशियों का ख़र्च भी कम होगा। तीसरा, चुनाव आयोग का कार्य सुगम हो जाएगा। संसाधनों का समन्वय, चुनाव सामग्री, सुरक्षा कर्मचारियों व अन्य इंतजाम, जो चुनाव के दौरान अनिवार्य होते हैं, बार-बार नहीं करने पड़ेंगे।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
फायदे और नुकसान
एक देश, एक चुनाव लोकतंत्र के लिए सराहनीय कदम है क्योंकि इससे चुनावों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी और संसाधनों की बचत हो सकेगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी। लेकिन दूसरी तरह से देखा जाए तो इसमें बहुत-सी चुनौतियां भी हैं। जैसे इसके लिए राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन को अमली जामा पहनाना होगा। कुल मिलाकर एक साथ चुनाव कराने के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं।
सुनील कुमार महला, हनुमानगढ़, राजस्थान
सहमति जरूरी
देश की आजादी के बाद 1952 से 1967 में लोकसभा और विधानसभा के आम चुनाव के बाद कई राज्यों की विधानसभाएं पहले भंग होने के कारण यह व्यवस्था टूटती चली गई। इसी कड़ी में राज्य बनते ही हरियाणा भी प्रभावित हुआ। राजनीतिक दलों के लिए कोई अधिकतम चुनाव व्यय सीमा निर्धारित न होने के कारण सभी दल किसी न किसी हिस्से में लगातार चुनाव लड़ रहे होते हैं। ऐसे में उनके लिए चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित करना असंभव है, ‘एक देश-एक चुनाव’ की अवधारणा से चुनावों में काले धन पर अंकुश लगेगा पर इस चुनाव हेतु संविधान संशोधन तथा नेता प्रतिपक्ष की सहमति जरूरी है।
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
पुरस्कृत पत्र
जड़ता खत्म होगी
देश के विकास को गति देने, योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु, प्रशासनिक एवं राजनीतिक जड़ता को समाप्त करने एवं समय तथा धन की बचत के लिए एक देश एक चुनाव की अवधारणा आवश्यक है। एक देश एक चुनाव की संभावनाएं तभी बलवती हो सकती हैं जब सभी राजनीतिक दलों एवं जनता में इस पर आम सहमति बने। एक देश एक चुनाव के पैटर्न को लागू करने में बड़ी संख्या में प्रशासनिक एवं सुरक्षा अमले की व्यवस्था करना, सभी चुनावों के कार्यकाल में एकरूपता लाना, चुनाव संबंधी संसाधनों की व्यवस्था करना एवं सभी राजनीतिक दलों की रजामंदी जैसी चुनौतियां पेश आ सकती हैं।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.