मिथकों में इतिहास की तार्किकता
अरुण कुमार कैहरबा
‘सर्पवती-दिग्दर्शन (सफीदों का पौराणिक परिचय)’ में लेखक रामस्वरूप शास्त्री धर्म-पुराण और मिथकों में इतिहास की तलाश करते प्रतीत हो रहे हैं। किताब के विभिन्न अध्यायों में क्रमवार पौराणिक साहित्य में सृष्टि-क्रम, भारतवर्ष, हरियाणा (हरिवर्ष) का वर्णन करते हैं। उसके बाद कुरुक्षेत्र के विभिन्न तीर्थों, विस्तार, नामकरण, वन, नदियों, नगरों की महिमा और महत्ता के बारे में बताते हैं। अपनी जन्मभूमि सींक की कथा कहते हैं। इसके बाद वे सफीदों का महात्म्य और पौराणिक इतिहास की चर्चा करते हैं। इसमें भी नाग पंचमी, नाग पूजा की व्यापकता, विदेशों में नाग पूजा और नाग-पूजा क्यों करनी चाहिए आदि विषयों पर धार्मिक दृष्टि से प्रकाश डाला जाता है। इसके बाद सफीदों के तीर्थस्थलों का उल्लेख होता है।
कह सकते हैं कि किताब में महाभारतकालीन कुछ पौराणिक स्थलों का सूत्रात्मक उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक को संपादक सुरेखा शर्मा ने संशोधित व परिवर्धित करके अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की है। किताब की शुरुआत संपादक के लंबे संपादकीय से होती है, जिसमें उन्होंने किताब के सार और मंतव्य को स्पष्ट करते हुए उन सवालों पर भी चर्चा की है, जो कि किताब पढ़ते हुए पाठकों के मन में पैदा हो सकते हैं।
संपादक की मान्यता है कि ‘इतिहास जहां ठहर जाता है, मिथक वहां से प्रारंभ होता है। मिथक में अतिरंजना तो हो सकती है, पर वह मिथ्या नहीं हो सकता। यदि इतिहास मिथक में यथार्थ नहीं खोज पा रहा तो यह इतिहास की कमी है।’
पुस्तक : सर्पवती-दिग्दर्शन लेखक : पं. रामस्वरूप शास्त्री संपादक : सुरेखा शर्मा प्रकाशक : हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुरुग्राम पृष्ठ : 56 मूल्य : रु. 150.