आहार-विहार के संयम से सेहत का सुख
वर्षा ऋतु में गर्मी व बारिश के संयोग से ऐसा वातावरण बनता है जिसमें हम अपनी सेहत में गुणात्मक वृद्धि कर सकें। खूब पसीना आता है और शरीर निखरता भी है। पसीना शरीर से उन विजातीय तत्वों को बाहर निकलने का माध्यम बनता है, जो सेहत के लिये नुकसान दायक होते हैं। लेकिन ध्यान रहे, गर्मी व नमी के इस मौसम में जीव-जंतु,जीवाणु-कीटाणु और कीट-पतंगे तेजी से पनपते हैं। इस मौसम में सावधानी, सजगता और आहार-विहार में संयम से हम तंदुरुस्ती कैसे हासिल कर सकते हैं, इसी विषय पर वृंदावन आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सालय, बद्दी के निदेशक डॉ. धर्मेन्द्र वशिष्ठ से अरुण नैथानी की बातचीत।
तन झुलसाती गर्मी के बाद बरसात की दस्तक बेहद सुहानी लगती है। इस मौसम में जहां प्रकृति अपने निखार पर होती है, तो तमाम तरह के जीव-जंतु, कीट-पतंगे और हानिकारक जीवाणु भी हमारे खानपान में दखल देते हैं। इस चतुर्मास में सेहत को लेकर खासी सावधानी की जरूरत होती है। जैन धर्म समेत कई अन्य धर्मों में वर्षा ऋतु में आहार-विहार को लेकर तमाम सावधानियों का जिक्र है। लेकिन नई पीढ़ी इस परंपरागत ज्ञान पर ध्यान नहीं देती। जिसकी वजह से बीमारियों को बढ़ावा मिलता है।
वर्षा ऋतु का सबसे ज्यादा महत्व इस बात को लेकर है कि हमें शारीरिक श्रम करने पर खूब पसीना आता है, जो हमारे शरीर के विजातीय तत्वों को इसके जरिये बाहर निकालने में मददगार होता है। बरसात में हम योग ,सैर व व्यायाम कर सकते हैं। लेकिन इसके साथ सावधानी यह बरती जानी चाहिए कि पसीना आने पर तुरंत पानी या किसी अन्य पेय पदार्थ का सेवन न करें। जब हमारे शरीर का पसीना सूख जाए तभी किसी पेय पदार्थ का उपयोग करना चाहिए।
ए.सी. में न करें योग-व्यायाम
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें एअर कंडीशन में योग व व्यायाम नहीं करना चाहिए। आज के समय का सबसे बड़ा अभिशाप यह है कि लोग योग तथा जिम ए.सी. में कर रहे हैं। यह समय की बड़ी विडंबना है। सही मायनों में ए.सी. में व्यायाम करना लाभदायक नहीं बल्कि नुकसानदायक है। दरअसल, जब तक हम शरीर से पसीना नहीं निकालेंगे तो शरीर से टॉक्सिक पदार्थ बाहर नहीं निकलेंगे। बरसात या चतुर्मास का मौसम ज्यादा पसीना निकलने की दृष्टि से सेहत बनाने का सबसे अच्छा समय होता है। बशर्ते हम जुलाई से अक्तूबर के दौरान मौसम की सभी सावधानियों पर ध्यान दें। उल्लेखनीय है कि बरसात का मौसम वजन कम करने में भी सहायक होता है। यदि हम इस दौरान ज्यादा पसीना निकालते हैं तो इससे वजन घटाने में भी मदद मिलती है।
खान-पान में सावधानी
दरअसल, बरसात में खान-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। हमें ठंडा खाना खाने से बिलकुल परहेज करना चाहिए। यदि संभव हो तो रात के भोजन से हमें बचना चाहिए। रात को दलिया और सूप आदि लेना चाहिए। उल्लेखनीय है कि इस मौसम में हमारे शरीर में पित्त शांत रहते हैं। इस दौरान जठराग्नि धीमी रहती है। जैसे आसमान में बादल होते हैं तो शरीर में आकाश तत्व कम हो जाता है। वहीं चतुर्मास में दही व डेयरी प्रॉडक्ट के सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए। कोशिश कीजिए कि सुबह की जमी दही दिन तक खा लें। लेकिन रात की जमायी दही दिन या सुबह न लें।
उल्लेखनीय है कि मक्के के आटे का सेवन गर्मियों व वर्षा ऋतु के दिनों में न करें। हम इस दौरान ज्वार व जौ का आटा ले सकते हैं। करीब सात महीने हमें मक्का-बाजरे से परहेज करना चाहिए। बरसात में हम सलाद लेने से परहेज करें क्योंकि कच्ची सब्जी में हानिकारक जीवाणु आदि हो सकते हैं।
हरी पत्तेदार सब्जी से परहेज
हमें बरसात में हरी पत्तेदार सब्जियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मसलन हरे पत्तों वाली सब्जी पालक व बथुआ आदि का उपयोग वर्षा में न करें। इसमें हानिकारक कीट आदि हो सकते हैं। हम फ्रिज में रखी सब्जी व बासी आलू का प्रयोग न करें। दरअसल हमें कुदरत इस मौसम में हमारी शारीरिक प्रकृति के अनुसार सब्जियां भी देती है। गर्मियों में ज्यादा पानी वाले फल, खीरा, ककड़ी हमारे लिये उपलब्ध होते हैं। वहीं वर्षा ऋतु की सब्जियों में टिंडा, लौकी, तोरी, ग्वार फली, कद्दू, परवल आदि की सब्जी लेना उपयोगी रहता है।
फूड प्वाइजनिंग होने पर
वर्षा ऋत में सड़क आदि पर मिलने वाले खाने का परहेज करना चाहिए। खासकर खुले में बिकने वाले खाद्य पदार्थों से। इस दौरान फूड प्वाइजनिंग की समस्या भी हो सकती है। ऐसा होने पर अन्य उपचार के साथ में खाने में हम चावल व दही ले सकते हैं। इसके अलावा उबला सेब बेहद उपयोगी होता है।
सर्वगुण संपन्न फल नाशपाती
बरसात आते-आते बेहद उपयोगी फल बेल खत्म हो जाता है। सेहत की दृष्टि से इस मौसम में नाशपाती सबसे उपयोगी और गुणों से भरपूर होता है। इसका जैविक नाम जीनस सेवी है। हिंदी में नाशपाती तथा अंग्रेजी में पियर कहते हैं। नाशपाती मानसून का सीजन का फल है और वर्ष में सिर्फ तीन महीने ही यह फल बाजार में दिखाई देता है। सबसे सस्ता व गुणकारी फल है। पाचन तंत्र का पूर्ण रूप से कायाकल्प करता है। यह फल एप्पल फैमिली का है। नाशपाती गुणों से परिपूर्ण फल है। नाशपाती खनिज, पोटेशियम, विटामिन-सी तथा फाइबर का स्रोत है। वहीं इसमें बी-कंपलेक्स है। नाशपाती में मौजूद फाइबर पुराने कब्ज को जड़ मूल से खत्म कर देती है।
मौजूदा दौर में फैटी लीवर से तमाम लोग परेशान रहते हैं। इसमें नाशपाती का रस अमृत व अचूक है। बेड कोलेस्ट्रॉल को कम करने में यह रामबाण का कार्य करता है। एनीमिया से ग्रस्त रोगियों के लिए नाशपाती रस या फल खाना अति उत्तम है। पाइल्स के रोगियों के लिए नाशपाती वरदान है। वहीं स्किन को निखारने में चमत्कारी है। इसके अलावा आंखों की दृष्टि, सिरदर्द व हाइपरटेंशन में भी नाशपाती मदद करती है। ये फल शुगर के रोगियों के लिए भी उपयोगी है। लेकिन नाशपाती का रस शूगर के रोगियों को नहीं लेना चाहिए।
चतुर्मास का आहार-विहार
जैन समाज में चतुर्मास का विशेष महत्व होता है। इस दौरान आहार-विहार के लिये सख्त नियम होते हैं। इस दौरान गतिशीलता को कम किया जाता है। बारिश में सड़क पर भी ध्यान से चलने की कोशिश होती है ताकि पैरों के नीचे कोई कीट-पतंगा न आ जाए। हर व्यक्ति को जैन समाज से प्रेरणा लेकर सूरज ढलने से पहले खाना खा लेना चाहिए। रात का खाना सूर्यास्त से पहले लेना सेहत के लिये बहुत उपयोगी होता है। इस सोच की एक वजह यह भी है कि रात को लाइट में तमाम तरह के कीट-पतंगे आकर्षित होते हैं। वे हमारे भोजन में भी गिर सकते हैं।