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सभी धर्मों में जगमग त्योहार की

10:13 AM Oct 27, 2024 IST

आर.सी.शर्मा
भारत में जन्में सभी प्रमुख धर्मों हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख में दिवाली महत्वपूर्ण है। वहीं अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए यह धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द का विषय रही है। लेकिन जो धर्म भारत में जन्में हैं, उन सबमें दिवाली से संबंधित महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक संदर्भ है। जिस कारण जैन, बौद्ध और सिख धर्म में भी दिवाली का पर्व हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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अयोध्या वापस लौटे राम

दिवाली को सनातन धर्म की नजर से देखें तो यह भगवान राम के वन से वापस लौटने पर अयोध्यावासियों की खुशी का प्रतीक है। भगवान राम, अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास बिताकर तथा लंका के राजा रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे, तो अयोध्यावासियों ने इस खुशी में घी के दीये जलाये थे। तब से हिंदू धर्म में दिवाली पर्व मनाया जाता है। दिवाली हिंदू धर्म में धन, समृद्धि और वैभव की देवी लक्ष्मी की पूजा का दिन भी है। यह अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का भी पर्व है। इस पर्व का रिश्ता भगवान श्रीकृष्ण से भी है। उन्हों ने इसी दिन नरकासुर को परास्त कर 16000 महिला कैदियों को कैदखाने से मुक्त कराया था।

भगवान महावीर का निर्वाण दिवस

जैन धर्म में दिवाली की धूमधाम से मनाये जाने का कारण, इस दिन इस धर्म के के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण 527 ईसा पूर्व इसी दिन यानी कार्तिक अमावस्या को हुआ था। इसलिए जैन धर्म के अनुयायी दिवाली को महावीर स्वामी मोक्ष प्राप्ति के दिन के रूप में मनाते हैं। इस दिन जैन समाज अपने घरों, मंदिरों को दीयों से रोशन करता है।

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शांति की रोशनी

बौद्ध धर्म में भी दिवाली मनाये जाने की भव्य परंपरा है। दरअसल कार्तिक अमावस्या के दिन ही साम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था, तभी से बौद्ध लोग इस दिन को शांति की रोशनी के पर्व के रूप में मनाते हैं।

बंदीछोड़ दिवस’के रूप में

सिख धर्म में भी दीपावली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। कार्तिक अमावस्या के दिन साल 1577 में गुरु रामदास जी के हाथों अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। साथ ही सन 1619 में इसी दिन सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद जी मुगल बादशाह की कैद से आजाद हुए थे। मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु जी को गलत तरीके से गिरफ्तार करके ग्वालियर जेल में डाल दिया था। लेकिन जब बादशाह को गलती का अहसास हुआ तो उसने गुरु जी को छोड़ने का ऐलान किया। लेकिन गुरु हरगोविंद जी ने कहा कि वह तब तक कैद से बाहर नहीं जाएंगे, जब तक कि बंदी किये गये अन्य 52 बेकसूर राजाओं को भी रिहा नहीं किया जायेगा। अंततः जहांगीर को गुरु जी के साथ 52 बेकसूर राजाओं को भी कैद से छोड़ना पड़ा। इसके बाद जब गुरु हरगोविंद जी अमृतसर पहुंचे तो लोगों ने उनके स्वागत में घी के दीये जलाये गये। तब से सिख भी रोशनी पर्व ‘बंदीछोड़ दिवस’के रूप में मनाते हैं।
-इ.रि.सें.

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