जीवन की जागीर
कृष्णनगर में महाराज शिवचंद्र का शासन था। उन्हें यह जानकर दुख हुआ कि पंडित रामनाथ जैसे महान विद्वान गरीबी में दिन काट रहे हैं। महाराज ने स्वयं रामनाथ जी से पूछा, ‘आपका घर-खर्च कैसे चलता है?’ पंडित जी बोले, ‘इस बारे में गृहस्वामिनी मुझसे अधिक जानती हैं।’ राजा ने गृहिणी से पूछा, ‘माताजी घर-खर्च के लिए कोई कमी तो नहीं है?’ पंडित जी की पत्नी ने कहा, ‘महाराज! कोई कमी नहीं है। पहनने को कपड़े हैं, सोने के लिए बिछौना है। पानी रखने के लिए मिट्टी का घड़ा है। खाने के लिए शिष्य ले आते हैं।’ राजा ने कहा, ‘देवी! हम चाहते हैं कि आपको कुछ गांवों की जागीर प्रदान करें। इससे होने वाली आय से गुरुकुल भी ठीक तरह से चल सकेगा।’ उत्तर में वृद्धा ब्राह्मणी कहने लगीं, ‘प्रत्येक मनुष्य को परमात्मा ने जीवनरूपी जागीर पहले से ही दे रखी है। जो जीवन की इस जागीर को संभालना सीख जाता है, उसे फिर किसी चीज का कोई अभाव नहीं रह सकता।’ राजा आगे कुछ नहीं बोल पाये।
प्रस्तुति : रोहित शर्मा