सत्ता का ख्वाब और एकता का राग
विपक्ष आजकल एकता को समर्पित है। जिसे देखो वही एकता करने में लगा है या करने वाला है या कर चुका है या करने के बाद और करने वाला है। बस किए ही जा रहा है। हर ऐरा-गेरा, हर नत्थू-खैरे से एकता करने में लगा है। एकता की मरोड़-सी उठ रही है। सुबह उठते से ही एकता जो शुरू करते हैं, तो शाम तक रुकते ही नहीं। अभी इससे लिपट रहे हैं, थोड़ी देर होते-होते उसके गले में लटक जाते हैं, फिर शाम को किसी और की गोदी में बैठ जाते हैं। वोट और कुर्सी की खातिर एकता करने के लिए दर-दर भटक रहे हैं कि किसी भी तरह हो जाए एकता।
सब तरफ निगाहें गड़ाए हैं कि कोई बिना एकता किए निकल न जाए। अरे, वो बिना एकता किए निकला जा रहा है। पकड़ो उसे, पकड़ो उसे येन-केन-प्रकारेण एकता करो। कोई ना-नुकुर नहीं चलेगी, एकता तो करनी ही पड़ेगी। कम से कम चुनाव लड़ने तक तो करनी ही पड़ेगी। एकता का स्वांग रचो, दिखावा करो, कुछ भी करो, पर एकता तो करो ही करो। मानो वे एक होने के लिए मरे जा रहे हैं। परंतु ऐसा प्रयत्न है जिसका होना कभी समाप्त नहीं होता। यानी एकता के फेर में बहुत-कुछ हो जाता है, सिवाय एकता के।
धड़ेबाजी, उठापटक, खींचतान, टांग खिंचाई, जूतेबाजी आदि की जो असीम संभावनाएं एकता के प्रयास में हैं, वे शायद और कहीं नहीं हैं। पहले जब वे अलग-अलग थे, आपस में खूब लड़ते थे। फिर भी अनेकता में एकता थी। जब से वे एकता के फेर में पड़े हैं, मामला पलट गया है। उनकी एकता में अनेकता नजर आने लगी है। वे जितना पास आने की कोशिश करते हैं, उतना ही दूर छिटकते चले जाते हैं। एकता का डिजाइन बड़ा जटिल होता है। सौदेबाजी वाला। छुटभैया पार्टी वाला सोचता है कि भई, तुम से हम एकता तो कर लें, बदले में हमें क्या मिलेगा। कुछ मिले तो एकता में शुमार होवें, यूं फोकट में खाली-पीली एकता करने का क्या फायदा! जिंदगीभर तो हम तुम्हारे खिलाफ और तुम हमारे खिलाफ लड़ते रहे। अब जिगर को कड़ा कर, सीने पर पत्थर रखकर एकता कर रहे हैं तो हमें भी तो कुछ मिलना चाहिए। आप तो बड़ी पार्टी वाले हो, बाद में पतली गली से निकल लिए तो…।
उधर बड़ी पार्टी वाला सोचता है, इस अदनी-सी पार्टी की क्या औकात! तीन विधायक और एक सांसद है, कह रहे हैं कि हमें कितनी सीटे दोगे। परंतु यूं छोटे-मोटों को दुत्कार भी नहीं सकते। बहुमत में कुछ कम पड़ा तो सौदेबाजी में ये ही काम आएंगे। एकता तो करनी ही पड़ेगी इनसे। ऐसा करते हैं अभी तो एकता कर लेते हैं, बाद में मौका पड़ेगा तो लात मार देंगे। तो मन में इस तरह की सोच लिए विपक्षी पार्टियों के नेता एकता करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। एकता के ऐसे उच्चस्तरीय प्रयासों में कई बार न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा वाली स्थिति भी बन आती है। लेकिन इतना लड़-भिड़कर भी उनकी हरसंभव कोशिश यही है कि भले ही एकता न हो पाए, पर दिखनी अवश्य चाहिए।