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सत्ता की राजनीति हेतु प्रचंड पथ का फरेब

07:48 AM Mar 15, 2024 IST
सत्ता की राजनीति हेतु प्रचंड पथ का फरेब
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पुष्परंजन
‘एक सिंगा गेंडा’ नेपाल का राष्ट्रीय पशु है। प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल 23 सितंबर, 2023 को अपनी चीन यात्रा में दो गेंडे साथ लेते गये थे। चीन इस गिफ्ट से गद्गद था। तब यह सुनिश्चित हुआ कि प्रचंड ‘गेंडा कूटनीति’ को आगे भी मज़बूत करते रहेंगे। ट्रेड-ट्रांजिट, ऊर्जा व बीआरआई जैसे समझौतों को आप उभयपक्षीय उदाहरण के रूप में ले सकते हैं। चीनी दूतावास ने 14 जनवरी, 2024 को काठमांडो में पहली बार चीनी चंद्र नववर्ष समारोह का आयोजन किया था, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री प्रचंड ने किया था। कार्यक्रम के दौरान कलाकारों ने चीनी कलाबाजी और जादू का प्रदर्शन किया था। इसके दस दिन बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसीआईडी) के अंतर्राष्ट्रीय विभाग में उपमंत्री सुन हैयान ने 26 जनवरी, 2024 को नेपाल का दौरा किया था। चीनी जादू के साथ-साथ प्रचंड की गेंडा नीति को समझने के लिए इस संदर्भ की ज़रूरत है।
आप जितनी मर्जी प्रचंड की आलोचना करें। वो वज्रचर्मा हैं। लोगों की बातों और निंदा का असर प्रचंड पर नहीं होता। नेपाल में भारत की तरह द्विसदनात्मक व्यवस्था है। 59 सदस्यीय ऊपरी सदन ‘राष्ट्रीय सभा’ (नेशनल असेंबली) में मंगलवार को वोटिंग के ज़रिये प्रचंड ने अपने भाई नारायण दाहाल को अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित करा दिया। नेशनल असेंबली में स्पीकर पद के लिए मंगलवार को हुए मतदान में नारायण दाहाल को ओली की नेकपा-एमाले और माओवादी सेंटर समेत पांच पार्टियों ने समर्थन दिया था। उसके अगले दिन बुधवार को प्रचंड 275 सदस्यीय निचले सदन ‘प्रतिनिधि सभा’ में विश्वास मत जीत गये।
संसद में विश्वासमत वाली सुबह प्रचंड से चीनी राजदूत छन सोंग बलुआटार स्थित पीएम आवास पर मिले। प्रचंड के लिए वोट करने वाले नेकपा-एमाले के 75, माओवादी सेंटर के 32, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के 21, जनता समाजवादी पार्टी के 12, यूनिफाइड सोशलिस्ट के 10, नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के 4, आम जनता पार्टी के प्रभु साह के साथ-साथ निर्दलीय अमरेश कुमार सिंह और योगेन्द्र मंडल भी शामिल हैं। प्रचंड को समर्थन देने वालों में आम जनता पार्टी नेपाल के साथ-साथ निर्दलीय सांसद अमरेश कुमार सिंह और योगेन्द्र मंडल भी शामिल हैं। प्रचंड के खिलाफ मतदान करने वालों में नेपाली कांग्रेस के 87 सांसद, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के 13, जनमत पार्टी के 5, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के 4 और राष्ट्रीय जनमोर्चा के एक विधायक शामिल थे। विश्वास प्रस्ताव के समय नेपाल वर्कर्स एंड पीजेंट्स पार्टी के प्रेम सुवाल मतदान से अनुपस्थित रहे।
इस हफ्ते जो कुछ नेपाल की राजनीति में घटित हुआ, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि प्रचंड को सत्ता में बने रहने की भूख सबसे अधिक है, जिसका फायदा केपी शर्मा ओली जैसे कुटिल नेता उठा रहे हैं। ओली को प्रचंड के रूप में एक कठपुतली मिल चुका है। जो ओली कभी प्रचंड के परिवार वालों को पचा नहीं पाये, अब उनसे कोई परेशानी नहीं हो रही है। 14 अगस्त, 2022 को केपी शर्मा ओली ने प्रचंड पर कटाक्ष किया था, ‘मेरा छोटा भाई अभी भी जमीन जोतता है। क्या मैंने उसे राजदूत बनाया? अगर मेरा इरादा अपने भाई को राजदूत बनाने का होता तो शायद मैं ऐसा कर सकता था।’ ओली ने पत्रकारों से पूछा था, क्या आपने मेरे भाई को राजदूत बनने, या किसी समिति में शामिल होने की इच्छा व्यक्त करते हुए सुना है?
यूएमएल के चेयरमैन ओली से अब कोई पूछे प्रचंड के भाई-भतीजावाद पर इतनी आपत्ति रही थी, तो आज क्या हुआ कि नारायण दाहाल को उनकी पार्टी उच्च सदन में स्पीकर पद के लिए समर्थन दे रही थी? ओली दरअसल, प्रचंड को इस क़दर कमज़ोर, सत्ता लोभी और परिवार लोलुप साबित कर देना चाहते हैं कि एक समय के बाद नेपाल की जनता उनसे घृणा करने लगे। अस्सी के दशक में नेपाल के अकादमिक सर्किल में ‘प्रचंड पथ’ की ख़ूब चर्चा होती थी। अलग-अलग लोग, ‘प्रचंड पथ’ की व्याख्या भी अलग-अलग। पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ के शैदाई कहते थे, ‘मार्क्स-लेनिनवाद, माओ और पेरूवियन गुरिल्ला लीडर गोंज़ालो की विचारधारा का कॉकटेल है, ‘प्रचंड पथ’।
लेकिन आज की तारीख़ में प्रचंड पथ की साधारण व्याख्या यह है कि अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना और परिवार वालों को राजनीति में सेटल करने का दूसरा नाम है ‘प्रचंड पथ’। 25 दिसंबर, 2022 को प्रचंड तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजे थे। प्रचंड ने जितनी तेज़ी से गठबंधन को बदलने का उदाहरण पेश किया है, नेपाल के विश्लेषक उसकी तुलना नीतीश की पलटूमार पॉलिटिक्स से कर सकते हैं। लेकिन इसकी समीक्षा करनी चाहिए ‘प्रचंड पथ’ में परिवार को गद्दी देने की गुंजाइश है? ऐसा तो नहीं, कि केरल के मुख्यमंत्री कामरेड पिनराई विजयन से प्रचंड ने प्रेरणा ली हो? मई, 2021 में पिनराई विजयन ने अपने दामाद मोहम्मद रियाज़ को कैबिनेट में जैसे जगह दी, माकपा पर सवाल उठने लगे।
प्रचंड ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पुत्री गंगा दाहाल को जिस तरह आगे बढ़ाने की कवायद आरंभ की है, वह सत्ता के गलियारे में चर्चा का विषय है। दूसरी बेटी रेणु दाहाल की राजनीति चितवन में सलामत रहे, चुनांचे रबि लामिछाने से समझौते की विवशता है। 11 दिसंबर, 2024 को प्रचंड 72 साल के हो जाएंगे। पत्नी सीता दाहाल, बेटा प्रकाश दाहाल और बेटी ज्ञानू केसी की मृत्यु हो चुकी। दो बेटियां रेणु और गंगा विरासत संभाल लें, इसकी चिंता सताती रही है।
चेयरमैन ओली की सबसे बड़ी कमज़ोरी थी, पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी। उस कमज़ोरी से भी उन्होंने मुक्ति पा ली। पत्नी राधिका शाक्य को ओली ने कोई ऐसा पद नहीं दिया कि कोई उनकी निंदा करे। ‘बाल न बच्चा, नींद पड़े अच्छा’ के सनातन सिद्धांत पर चलते हैं ओली। पांचवीं पास ओली प्रचंड को इस तरह घुमा देंगे, इसे देखकर नेपाली कांग्रेस के रणनीतिकार भी हतप्रभ हो गये। ओली ने बयान दिया कि जो कुछ हुआ, उसमें चीन का कोई रोल नहीं है। मगर, ओली की सत्ता जब गई थी, पानी पी पीकर भारत को कोसा था। भारत से बदला लेने तक का संकल्प ओली ने कर लिया था।
प्रचंड ने रबि लामिछाने, रघुबीर महासेठ, नारायण काजी श्रेष्ठ और उपेन्द्र यादव जैसे जिन लोगों को उपप्रधानमंत्री बनाया है, वह कब उनके लिए कालनेमी साबित होंगे, उसका इंतज़ार सभी को रहेगा। यों, इस दुरभिसंधि की एक्सपायरी डेट 2024 में ही है। लेकिन क्या प्रधानमंत्री प्रचंड को 21 मार्च, 2007 की काली रात याद है, जब उन्हीं की पार्टी के 27 कार्यकर्ताओं की हत्या रौतहट ज़िले के गौर में की गई थी? उसकी जांच पूरी नहीं हुई है। मधेशी जनाधिकार फोरम के नेता थे उपेन्द्र यादव तब, उन्हीं पर इस हत्याकांड का आरोप लगा था। 10 मार्च को उपेन्द्र यादव ने उपप्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। स्वार्थ में डूबे प्रचंड माओवादी कामरेडों के भी सगे नहीं निकले।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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