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शेर नहीं रंगे सियार बदलेंगे चुनावी बयार

07:45 AM Oct 04, 2024 IST
शेर नहीं रंगे सियार बदलेंगे चुनावी बयार
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विनय कुमार पाठक

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पुरानी बात है। एक मित्र ने दूसरे मित्र की तारीफ में कहा, ‘वाह रे मेरे मिट्टी के शेर।’ दूसरा मित्र खफा होकर बोला, ‘बब्बर शेर बोलो, बब्बर शेर।’ पहले मित्र ने अपने वाक्य को सुधारा, ‘वाह रे मेरे मिट्टी के बब्बर शेर।’ इस पर दूसरा मित्र और भी खफा हो गया कि ‘मिट्टी के’ शब्द लगाकर तो तुम शेर को ढेर कर देते हो अर्थात‍् मिट्टी पलीद कर देते हो।
अभी इस वाकया के याद आने के पीछे कारण यह है कि एक दल अपने सदस्यों को शेर बताता है तो दूसरा दल शेर पर सवा शेर बनाकर अपने दल के लोगों को बब्बर शेर बताता है। साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि उनके शेर अकेले नहीं, झुंड में रहते हैं। साथ ही उनका यह भी कहना है कि उनके बब्बर शेर कभी-कभी आपस में लड़ भी जाते हैं। जब बब्बर शेर आपस में लड़ें और कोई उन्हें साथ कर दे तो यह काम शायद कोई रंगा सियार ही कर सके। किसी जीव के बस में बब्बर शेरों को नियंत्रित करना कठिन है। रंगा सियार भी तभी तक उन पर नियंत्रण रख पाता है जब तक अपने हुआं-हुआं को नियंत्रण में रखे। इतिहास में कई बब्बर शेर साधारण शेर में तब्दील होते देखे गए हैं। इसका विलोम भी उतना ही सत्य है।
वैसे ज्ञात स्रोतों से तो यही पता चलता है कि भेड़, हिरण, जेब्रा, जंगली भैंसे, चिड़िया, पेंग्विन आदि ही झुंड में रहते हैं। कुछ जीवों का नाम शेरों की नाराजगी से बचने के उद्देश्य से नहीं लिया गया है। पर आज के समय में कई जीवों के गुणों में परिवर्तन देखा गया है। तो हो सकता है उन शेरों के अकेले रहने की आदत झुंड में रहने की आदत में बदल गई हो। यह चुनावी माहौल का प्रभाव भी हो सकता है। हो सकता है उनकी दहाड़ हुआं-हुआं में परिवर्तित हो गई हो। वैसे भी विज्ञानियों द्वारा शेर के दिल की तुलना में जिराफ के दिल को ज्यादा शक्तिशाली माना गया है क्योंकि जिराफ का दिल गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के खिलाफ दूसरे माले जैसी दूरी पर स्थित मस्तिष्क तक रक्त पहुंचाने का काम अनवरत करता रहता है।
अब जनता इन शेरों और बब्बर शेरों को किस रूप में देखती है, यह सोचने की बात है। अधिकांश जनता तो भोली-भाली होती है, अशिक्षित, अर्धशिक्षित, अनपढ़ वगैरह-वगैरह। क्या वह नेताओं द्वारा अपने दलों के लोगों को शेर और बब्बर शेर बताने को सिर्फ इस नजर से देखती है कि उनकी तुलना जानवर से की गई है। या फिर वह इसका कुछ और अर्थ लगाती है। प्रायः जनता अपना मत मतपेटी में ही जाहिर करती है। प्रतीक्षा करें।

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