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पटरी से उतरती ज़िंदगी की कीमत

08:11 AM Aug 30, 2024 IST

तीरथ सिंह खरबंदा

देख रहे हो। आज फिर खबर छपी है, रेलगाड़ी पटरी से उतर गई है। बहुत से लोग मारे गए हैं, कई घायल हो गए हैं।
हां, देख रहे हैं भईयाजी। आजकल रेलगाड़ी कुछ ज्यादा ही पटरी छोड़ रही हैं!
देखो, पटरी तो आजकल सभी छोड़ रहे हैं! पटरी पर चल कौन रहा है? नेता लोग अचानक पटरी से उतरकर रातोरात पार्टी बदल लेते हैं। फिर अनाप-शनाप बोलने लगते हैं।
ये बात तो है, भईयाजी। हमको बहुत बुरा लगता है। बर्दाश्त नहीं होता है। पर क्या करें।
देखते चलो। अब जांच बैठाई जाएगी। पूरा क्रिया-कर्म होगा। जनता चार दिन तक बहुत हल्ला करेगी। मीडिया वाले खबर पे खबर चलाएंगे। फिर कुछ दिन बाद थक-हारकर सब चुप बैठ जाएंगे। अगली घटना होने का इंतजार करेंगे।
समझ रहे हो न। अगले दिन पुराना अखबार और खबर रद्दी में चली जाएगी। अखबारों में नई खबर होगी। हेड लाइन बदल जाएगी। मुआवजे की घोषणा सुर्खियों में होगी। मरने वाले इंसानों की ज़िंदगी की कीमत लगाई जाएगी। रेलगाड़ी में मारे गए हैं, किसी हवाई जहाज में थोड़े न बस बहुत है।
ये बात तो है भईयाजी। आज की महंगाई में भी इंसान की ज़िंदगी की कीमत सबसे सस्ती हो गई है।
अब देखो विपक्ष वाले मंत्रीजी से इस्तीफ़ा मांग रहे हैं। हाईकमान का आदेश है कुर्सी से चिपके रहो। मंत्रीजी धर्मसंकट में हैं। हाईकमान को लगता है मंत्रीजी के इस्तीफ़ा देने से पार्टी की बहुत बदनामी होगी। मंत्रीजी मजबूरी में कुर्सी से चिपके बैठे हैं।
समझ रहे हो। कुर्सी से चिपका मंत्री बड़ी मुश्किल से उखड़ता है। उसकी जान कुर्सी में जकड़ी रहती है। उस पर से उतरने लगे तो वह कसकर पकड़ लेती है। शरीर छटपटाता रहता है किन्तु आत्मा छूटती नहीं है ।
पढ़ रहे हो। कितने मारे गए हैं। सब पढ़ लिए हैं भईयाजी तभी से दिमाग काम नहीं कर रहा है। भईयाजी आप ही बताओ सही आंकड़ा खबरों में आता कब है! बगैर टिकट वाले तो गिनती में वैसे भी नहीं आएंगे।
समझो। बगैर टिकट यात्रा करोगे तो मुआवजा कहां से पाओगे।
भईयाजी, ऐसा कब तक चलता रहेगा? अब तो हमें रेलगाड़ी में बैठने के नाम से ही डर लगने लगा है। ससुरी कब पटरी छोड़ बैठे।
मंत्री जी कहते हैं दोषी बख्शे नहीं जाएंगे।
सुनते चलो। बड़े लोगों की कहने और करने की बातें सब अलग-अलग होती हैं। असली दोषी सामने आते कब हैं? किसी कमजोर को ढूंढ़कर बलि का बकरा बनाया जाएगा और बात आई-गई हो जाएगी।

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