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ऑक्सीजन संकट से मछलियों की बदलती दुनिया

06:43 AM Sep 13, 2024 IST

के.पी. सिंह
वर्ष 1960 के मुकाबले आज समुद्रों में ऑक्सीजन की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। खुले महासागर में 17 लाख वर्गमील से अधिक क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी देखी जा रही है, जो समुद्र के अन्य हिस्सों की तुलना में 4 से 5 फीसदी कम है, और कुछ स्थानों पर तो यह कमी 15 फीसदी तक पहुंच गई है। यह समस्या ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री तापमान में वृद्धि और अम्लीकरण से अलग है।
नीदरलैंड के रेडबौड विश्वविद्यालय के इको-फिजियोलॉजिस्ट विल्को वर्बर्क के अनुसार, समुद्र का बढ़ता तापमान ऑक्सीजन की कमी का मुख्य कारण है। 70 डिग्री फ़ारेनहाइट तक गर्म होने पर समुद्री ऑक्सीजन में कमी स्वाभाविक है। जब समुद्र में ऑक्सीजन कम होती है, तो मछलियों और अन्य समुद्री जीवों के लिए जीवन जीना कठिन हो जाता है, क्योंकि मछलियों को भी सांस लेने की आवश्यकता होती है।
वर्ष 1960 से 2010 के बीच, दुनियाभर के महासागरों में औसतन दो फीसदी ऑक्सीजन कम हुई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक यह कमी बढ़कर 7 फीसदी हो जाएगी। कुछ विशेष क्षेत्रों, जैसे पूर्वोत्तर प्रशांत, में ऑक्सीजन की कमी 15 फीसदी से अधिक हो गई है। इस वजह से 25 से 30 फीसदी समुद्री जीवों की प्रजातियां या तो पलायन कर गई हैं या मर गई।
आईपीसीसी की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 1970 से 2010 के बीच, कुछ महासागरीय क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी के कारण बड़ी मछलियों की संख्या घट गई है। अब इन क्षेत्रों में जेलीफिश जैसी मछलियां बढ़ गई हैं, जो कम ऑक्सीजन की परिस्थितियों में जीवित रह सकती हैं। जेलीफिश की संख्या 3 से 8 फीसदी बढ़ी है, जो यह दर्शाती है कि इन क्षेत्रों में समुद्री जीवन असामान्य रूप से बदल रहा है।
दक्षिण-पूर्वी चीन के समुद्र तट पर बॉम्बे डक मछली की प्रजाति ने हाल के वर्षों में तेजी से वृद्धि की है। बॉम्बे डक, जो जेलीफिश जैसी बनावट की होती है, कम ऑक्सीजन में जीवित रह सकती है और यह विशेषतः ऑक्सीजन की कमी वाले क्षेत्रों में बढ़ रही है। एक दशक पहले जहां मछली पकड़ने वाले जहाज प्रति घंटे 40-50 पौंड मछली पकड़ते थे, वहीं अब यह मात्रा बढ़कर 440 पौंड तक पहुंच गई है।
ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के मत्स्य पालन शोधकर्ता डेनियल पॉली के अनुसार, इस मछली की अत्यधिक वृद्धि को खौफनाक कहा जा सकता है। हालांकि, यह वृद्धि समुद्री जीवन में असंतुलन का संकेत देती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण अन्य मछलियां या तो मर गई हैं या पलायन कर गई हैं, और बॉम्बे डक उन प्रजातियों में से है जो कम ऑक्सीजन के बावजूद जीवित रह सकती हैं।
इस स्थिति से वैश्विक इकोलॉजी में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। समुद्री ऑक्सीजन की कमी की समस्या ग्लोबल वार्मिंग से भी बड़ी है, क्योंकि इससे महासागरों में जीवों की विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में महासागर और अधिक गर्म होंगे और ऑक्सीजन की कमी जारी रहेगी, जिससे समुद्री जीवन की संरचना में बड़े परिवर्तन होंगे।
इस प्रकार, समुद्री ऑक्सीजन की कमी वैश्विक पर्यावरणीय संकट का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो न केवल महासागरीय जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि पूरी धरती के इकोसिस्टम को भी खतरे में डालता है। इस समस्या का समाधान केवल ग्लोबल वार्मिंग और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों के साथ समन्वयित प्रयासों से ही संभव है।
इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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