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मेघालय में अवैध कोयला खनन रोकने की चुनौती

07:41 AM May 17, 2024 IST

पंकज चतुर्वेदी

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मेघालय के पूर्वी जयंतिया जिले में कोयला उत्खनन की 26 हजार से अधिक रेट होल माइंस अर्थात‍् चूहे के बिल जैसी खदानें बंद करने के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा दिए गए आदेश को दस साल हो गए लेकिन आज तक एक भी खदान बंद नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन खतरनाक खदानों को बंद करने लेकिन पहले से निकाल लिए गए कोयले के परिवहन के आदेश दिए थे। इस काम की निगरानी के लिए मेघालय हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त जस्टिस बीके काटके समिति ने अपनी 22वीं अंतरिम रिपोर्ट में बताया है कि किस तरह ये खदानें अभी भी प्रदेश के परिवेश में ज़हर घोल रही हैं।
उल्लेखनीय है कि अधिक बरसात के लिए मशहूर मेघालय में अब प्यास ने डेरा जमा लिया है। यहां की नदियां जहरीली हो रही हैं, धरती पर स्थाई पर्यावरणीय संकट है और सांस में कार्बन घुल रहा है। यह सब हो रहा है इन खतरनाक खदानों से कोयले के अवैध, निर्बाध खनन के कारण। जब इन खदानों में फंस कर लोग मरते हैं तो प्रशासन-पुलिस कागज भरती है, वादे होते हैं, उसके बाद कोयले की दलाली में सभी काले हो जाते हैं। गुवाहाटी के होटलों में सौदे होते हैं और बाकायदा कागज बनाकर दिल्ली के आसपास के ईंट-भट्टों तक कोयले का परिवहन हो जाता है।
हाईकोर्ट की कमेटी बताती है कि अकेले पूर्वी जयंतिया जिले के चूहा-बिल खदानों के बाहर 14 लाख मीट्रिक टन कोयला पड़ा हुआ है जिसको यहां से हटाया जाना है। दस साल बाद भी इन खदानों को कैसे बंद किया जाए, इसकी विस्तृत कार्यान्वयन रिपोर्ट अर्थात डीपीआर प्रारंभिक चरण में केन्द्रीय खनन योजना और डिजाइन संस्थान लिमिटेड (सीएमपीडीआई) के पास लंबित है। जाहिर है, न तो इसको ले कर कोई गंभीर है और न ही ऐसा करने की इच्छा-शक्ति।
जस्टिस काटके की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘मेघालय पर्यावरण संरक्षण और पुनर्स्थापन निधि (एमईपीआरएफ ) में 400 करोड़ रुपये की राशि बगैर इस्तेमाल की पड़ी है और इन खदानों के कारण हुए प्रकृति को नुकसान की भरपाई का कोई कदम उठाया नहीं गया। मेघालय में प्रत्येक एक वर्ग किलोमीटर में 52 रेट होल खदानें हैं। अकेले जयंतिया हिल्स पर इनकी संख्या करीब 26 हजार है। असल में ये खदानें दो तरह की होती हैं। पहली किस्म की खदान बामुश्किल तीन से चार फीट की होती है। इनमें श्रमिक रेंग कर घुसते हैं जिनमें अधिकांश बच्चे ही घुसते हैं। दूसरे किस्म की खदान में आयताकार आकार में 10 से 100 वर्गमीटर माप में जमीन को काटा जाता है और फिर उसमें 400 फुट गहराई तक मजदूर जाते हैं। यहां मिलने वाले कोयले में गंधक की मात्रा ज्यादा है और इसे दोयम दर्जे का कोयला कहा जाता है।
एनजीटी द्वारा रोक लगाने के बाद मेघालय की पिछली सरकार ने स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय आदिवासियों के अधिकार के कानून के तहत इस तरह के खनन को वैध रूप देने का प्रयास किया था लेकिन कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम के तहत कोयला खनन के अधिकार, स्वामित्व आदि हित केंद्र सरकार के पास सुरक्षित हैं, इसलिए राज्य सरकार इस अवैध खनन को वैध का जामा नहीं पहना पायी। लेकिन गैरकानूनी खनन, भंडारण और पूरे देश में इसका परिवहन चलता रहता है। रेट होल खनन न केवल अमानवीय है बल्कि इसके चलते यहां से बहने वाली कोपिली नदी का अस्तित्व ही मिट-सा गया है। एनजीटी ने अपने पाबंदी के आदेश में साफ कहा था कि खनन इलाकों के आसपास सड़कों पर कोयले का ढेर जमा करने से वायु, जल और मिट्टी के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। भले ही कुछ लोग इस तरह की खदानों पर पाबंदी से आदिवासी अस्मिता का मसला जोड़ते हों, लेकिन हकीकत सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत नागरिक समूह की रिपोर्ट में बतायी गयी थी कि अवैध खनन में प्रशासन, पुलिस और बाहर के राज्यों के धनपति नेताओं की हिस्सेदारी है और स्थानीय आदिवासी तो केवल शोषित श्रमिक ही हैं।
ज्यादा चिंता इस बात की है कि कोयले की कालिख राज्य की जल निधियों की दुश्मन बन गई है। लुका नदी पहाड़ियों से निकलने वाली कई छोटी सरिताओं से मिलकर बनी है, इसमें लुनार नदी मिलने के बाद इसका प्रवाह तेज होता है। इसके पानी में गंधक की उच्च मात्रा, सल्फेट, लोहा व कई अन्य जहरीली धातुओं की उच्च मात्रा, पानी में आक्सीजन की कमी पाई गई है। एक और खतरा है कि जयंतिया पहाड़ियों के गैरकानूनी खनन से कटाव बढ़ रहा है। नीचे दलदल के बढ़ने से मछलियां कम आ रही हैं। ऊपर से जब खनन का मलबा इसमें मिलता है तो जहर और गहरा हो जाता है। मेघालय ने गत दो दशकों में कई नदियों को नीला होते, उनके जलचर मरते और आखिर में जलहीन होते देखा है।
अदालत की फटकार है, पर्याप्त धन है लेकिन इन खदानों से टपकने वाले तेजाब से प्रभावित हो रहे जनमानस को कोई राहत नहीं है। यह हरियाली चाट गया, जमीन बंजर कर दी, भूजल इस्तेमाल लायक नहीं रहा और बरसात में यह पानी बहकर पहाड़ी नदियों में जाता है तो वहां भी तबाही है। मेघालय पुलिस यदा-कदा अवैध कोयला परिवहन के केस दर्ज करती है लेकिन ये औपचारिकता ही है।
मेघालय से बादलों की कृपा भी कम हो गई है, चेरापूंजी अब सर्वाधिक बारिश वाला गांव नहीं रह गया है। यदि कालिख के लोभ में नदियां भी खो दीं तो इस अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य वाली धरती पर मानव जीवन भी संकट में होगा।

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