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अंतरिक्ष में भारत की लंबी छलांग की तैयारी

06:38 AM Oct 05, 2024 IST
अंतरिक्ष में भारत की लंबी छलांग की तैयारी
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मुकुल व्यास

हाल ही में चार महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशनों को मंजूरी मिलने के बाद भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम को नया बल मिला है। इन मिशनों का उद्देश्य अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में भारत की स्थिति को मजबूत करना है। ये मिशन अंतरिक्ष क्षमताओं को आगे बढ़ाने और वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए देश की प्रतिबद्धता को उजागर करते हैं। मंजूर किए गए मिशनों में चंद्रयान-4, वीनस ऑर्बिटर मिशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और गगनयान अनुवर्ती कार्यक्रम शामिल हैं। प्रत्येक मिशन की अपनी चुनौतियां हैं। उनकी सफलता उन्नत तकनीक, कुशल विशेषज्ञता और पर्याप्त वित्तीय सहायता पर निर्भर करेगी। उनमें से सबसे प्रमुख चंद्रयान-4 है जो चंद्र अन्वेषण की दिशा में भारत की अगली छलांग है।
चंद्रयान-4 भारत के लिए एक अभूतपूर्व मिशन है, जो चंद्रमा से नमूने एकत्र करने और उन्हें पृथ्वी पर वापस लाने पर ध्यान केंद्रित करता है। 2,104.06 करोड़ रुपये के प्रभावशाली बजट वाला यह मिशन चंद्रयान-3 की सफलता पर आधारित है, जिसने चंद्रमा पर उतरने की भारत की क्षमता को साबित किया। अब चंद्रयान-4 का लक्ष्य चंद्रमा की संरचना और भूगर्भीय इतिहास के बारे में हमारी समझ को गहरा करना है। चंद्रयान-4 का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह से मिट्टी और चट्टान के नमूने एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना है। ये नमूने चंद्रमा की संरचना और विकास के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करेंगे, जिससे वैज्ञानिकों को इसके निर्माण और अरबों वर्षों में इसे आकार देने वाली प्रक्रियाओं के बारे में बेहतर समझ मिलेगी।
सरकार द्वारा मंजूर किए गए अन्य मिशनों में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत ने 2035 तक यह स्टेशन स्थापित करने की योजना बनाई है। पृथ्वी की कक्षा में एक परिक्रमा स्टेशन स्थापित करना क्यों जरूरी है? भारत अपने गगनयान मिशन के तहत तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना चाहता है। एक बार अंतरिक्ष मानव उड़ानों का सिलसिला शुरू होने के बाद भारत को अंतरिक्ष में एक ऐसे ठौर-ठिकाने की जरूरत पड़ेगी जहां अंतरिक्ष यात्री कुछ समय बिताकर शून्य गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में वैज्ञानिक प्रयोग कर सकें। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) अंतरिक्ष में हमारा अपना ठिकाना होगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीएएस की पहली इकाई के निर्माण को हरी झंडी दे दी है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर परिक्रमा करेगा। बीएएस को स्वीकृत का निर्णय गगनयान कार्यक्रम के विस्तार का हिस्सा है।
वहीं, गगनयान कार्यक्रम के लिए अतिरिक्त 11,170 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इस कार्यक्रम का दायरा बढ़ने के साथ कुल निधि 20,193 करोड़ रुपये हो गई है। इस कार्यक्रम में बीएएस के सफलतापूर्वक निर्माण और संचालन के लिए आवश्यक तकनीकों का परीक्षण और प्रमाण देने के मिशन भी शामिल किए जाएंगे। यह विशाल संरचना एक रिसर्च सेंटर के रूप में कार्य करेगी, जहां भारतीय अंतरिक्ष यात्री और वैज्ञानिक सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण, खगोल विज्ञान और पृथ्वी अवलोकन से संबंधित प्रयोग कर सकते हैं। अंतरिक्ष यात्री 15-20 दिन तक इस स्टेशन में रह सकेंगे।
संशोधित योजना में अब बीएएस के विकास और इसके लिए आवश्यक प्रारंभिक मिशन शामिल हैं। इसमें एक और चालक दल रहित मिशन और गगनयान कार्यक्रम के लिए आवश्यक अतिरिक्त उपकरण जोड़ना भी सम्मिलित है। कार्यक्रम को अपडेट करने का मतलब यह है कि दोनों परियोजनाओं की सुचारु प्रगति के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। ध्यान रहे कि दिसंबर, 2018 में स्वीकृत गगनयान कार्यक्रम का उद्देश्य मानव को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजने के अलावा भारत के भविष्य के मानव अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों के लिए आवश्यक बुनियादी तकनीकों को स्थापित करना है।
आज अंतरिक्ष में एडवेंचर करने वाले सभी प्रमुख देश भविष्य के चंद्रमा मिशनों और अन्य दीर्घकालिक मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक क्षमताओं का निर्माण करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास और बड़े निवेश कर रहे हैं। भारत के गगनयान कार्यक्रम को इसरो की मौजूदा परियोजना प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करके संचालित किया जाएगा। इसका लक्ष्य दीर्घकालिक मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक प्रमुख तकनीकों का निर्माण और प्रदर्शन करना है। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इसरो ने 2026 तक चल रहे गगनयान कार्यक्रम के तहत चार मिशन पूरे करने की योजना बनाई है। इसके अतिरिक्त, यह बीएएस-1 विकसित करेगा और दिसंबर, 2028 तक बीएएस के लिए विभिन्न तकनीकों का परीक्षण और सत्यापन करने के लिए चार और मिशन संचालित करेगा।
उल्लेखनीय है कि बीएएस जैसी अंतरिक्ष सुविधा सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ाएगी। इसके परिणामस्वरूप नई तकनीकी प्रगति होगी और महत्वपूर्ण अनुसंधान और विकास क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम में उद्योग की अधिक भागीदारी से आर्थिक गतिविधि को भी बढ़ावा मिलेगा और अंतरिक्ष और इससे संबंधित क्षेत्रों के भीतर विशेष उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में अधिक नौकरियां पैदा होंगी।
बीएएस में एक कॉमन बर्थिंग मैकेनिज्म का उपयोग करके एक साथ जुड़े पांच मॉड्यूल होंगे। स्टेशन का माप 27 मीटर गुणा 20 मीटर होगा और इसका वजन लगभग 52 टन होने की उम्मीद है, जो मूल रूप से नियोजित 25 टन से बहुत अधिक है। यह छह अंतरिक्ष यात्रियों के अल्पकालिक चालक दल को समायोजित करेगा जबकि नियमित चालक दल में 3-4 अंतरिक्ष यात्री होंगे। बीएएस 51.6 डिग्री के झुकाव पर 400-450 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करेगा, जिससे यह अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के स्पेस पोर्ट (रॉकेट लांच अड्डों) के लिए सुलभ हो जाएगा। भारतीय स्टेशन पर एक बार में 2-4 अंतरिक्ष यात्री रहेंगे। अंतरिक्ष यात्रियों को स्टेशन से लाने-ले जाने के लिए स्टेशन के एक छोर पर एक क्रू मॉड्यूल और रॉकेट डॉक किया जाएगा। भारत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के डॉकिंग सिस्टम के अनुरूप एक अनूठा डॉकिंग पोर्ट भी विकसित कर रहा है।
फिलहाल आईएसएस विज्ञान और प्रौद्योगिकी में दुनिया का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है, जिसमें यूरोपीय देशों (यूरोपीय स्पेस एजेंसी), अमेरिका (नासा), जापान (जाक्सा), कनाडा (सीएसए) और रूस (रोस्कोस्मोस) के बीच साझेदारी शामिल है। आईएसएस का वजन लगभग 400 टन है और यह लगभग फुटबॉल के एक मैदान के आकार के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह लगभग 90-93 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करता है और प्रतिदिन लगभग 16 परिक्रमाएं पूरी करता यह मनुष्यों द्वारा बसाया गया नौवां अंतरिक्ष स्टेशन है। इस अनूठी माइक्रोग्रैविटी प्रयोगशाला ने दुनियाभर के 4,200 से अधिक वैज्ञानिकों की 3,000 से अधिक शोध परियोजनाओं को सपोर्ट किया है। आईएसएस के अलावा इस समय चीन का चियनगोंग अंतरिक्ष स्टेशन भी काम कर रहा है। जैसा कि आईएसएस का अब तक अनुभव बताता है, एक स्पेस स्टेशन का निर्माण, संचालन और रखरखाव तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से बहुत चुनौतीपूर्ण है। भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक इन चुनौतियों से भलीभांति अवगत हैं और इनसे निपटने में पूरी तरह से दक्ष और सक्षम हैं।

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लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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