प्रसन्न रहने की कला
संत तुलसीदास सदा प्रसन्न रहते थे। कुछ चोरों को यह बात अजीब लगती थी। चोरों ने यह सोचकर कि संत तुलसीदास के पास अपार धन होगा, उनका अपहरण कर लिया। वे संत को जंगल में ले गए और उनसे पूछा कि तुम्हारे पास कितना धन है जिसके कारण इतने प्रसन्न रहते हो? संत तुलसीदास ने एक-एक कर हर चोर को अलग-अलग बुलाया और कहा, मेरे पास सुखदा मणि है, मगर मैंने उसे तुम चोरों के डर से जमीन में गाड़ दिया है। यहां से कुछ ही दूरी पर वह स्थान है। अपनी खोपड़ी के नीचे चंद्रमा की छाया में खोदना, शायद मिल जाए। यह कहकर संत तुलसीदास एक पेड़ के नीचे सो गए। सभी चोर अलग-अलग दिशा में जाकर खोदने लगे। जरा-सा उठते-चलते तो छाया भी हिल जाती और उन्हें जहां-तहां खुदाई करनी पड़ती। रात भर में सैकड़ों छोटे-बड़े गड्ढे बन गए, पर कहीं भी मणि का पता नहीं चला। चोर हताश हो गये। अंत में संत तुलसीदास हंस कर बोले, मूर्खो मेरे कहने का अर्थ समझो। खोपड़ी तले मणि छिपी है अर्थात उसमें श्रेष्ठ विचारों के कारण मनुष्य प्रसन्न रह सकता है। तुम भी अपना दृष्टिकोण बदलो और जीना सीखो। चोरों को यथार्थ का बोध हुआ।
प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री