एकदा
ईमानदारी का धर्म
प्राचीन बड़ोदा राज्य में मेहसाना के जिला जज ए.आर. शिंदे ईमानदार और स्पष्टवादी थे। बड़ौदा के महाराज सयाजीराव के हृदय में शिंदे के प्रति गहरी श्रद्धा थी। महाराज जब भी विदेश जाते, अपने निजी सहायक के रूप में शिंदे को साथ ले जाते थे। एक बार फ्रांस यात्रा के दौरान महाराज ने शिंदे की सलाह पर पेरिस के एक बड़े जौहरी की दुकान से अत्यंत कीमती रत्न खरीदे। अगले दिन दुकानदार का एक प्रतिनिधि शिंदे के पास आया और उसने पूछा, ‘सर, आपका कमीशन चेक से दिया जाए या नकद भुगतान से।’ शिंदे हैरानी से बोले, ‘किस बात का कमीशन?’ प्रतिनिधि बोला, ‘सर्राफा की दुकानों में यह चलन है कि अच्छे ग्राहक लाने वाले व्यक्ति को कमीशन दिया जाता है।’ शिंदे बोले, ‘मैं सरकारी कर्मचारी हूं और यह नहीं ले सकता।’ प्रतिनिधि बोला, ‘यह तो हमारी दुकान की परिपाटी है।’ शिंदे बोले, ‘आप कमीशन काट करके अपना बिल बना दीजिए। इस कमीशन पर ग्राहक का हक होना चाहिए न कि उस व्यक्ति का, जो दुकान में ग्राहक लेकर आए।’ प्रतिनिधि ने कमीशन काट कर बिल बना दिया और बोला, ‘सर, आपकी ईमानदारी की सूचना महाराज तक अवश्य जानी चाहिए।’ शिंदे बोले, ‘ईमानदारी मनुष्य का धर्म है। धर्म प्रचार की वस्तु नहीं है। इसलिए इस बात का जिक्र किसी से न करें।’ इस पर प्रतिनिधि ने कहा, ‘धन्य है भारत और धन्य हैं आप।’ प्रस्तुति : निशा सहगल