आस्था का समर्थ
समर्थ गुरु रामदास का जीवन अनेक चमत्कारों से परिपूर्ण रहा है। उन्होंने राजनीति, शिष्टाचार और धर्म पर काफी लेखन कार्य किया था। उनकी आध्यात्मिक कार्यस्थली पैठण रही, जहां वह प्रतिदिन धर्म सभा एवं संकीर्तन किया करते थे। एक बार भजन कीर्तन के दौरान एक सत्संगी ने आकर रामदास को सूचित किया, महाराज, गांव में आपकी पूज्य माताश्री आपकी याद में रो रोकर अपनी आंखों की रोशनी खो चुकी हैं। अब उनके दिन रोते हुए और आपको याद करते हुए ग़ुज़र रहे हैं। इतना सुनते ही रामदास पैठण से अपने गाँव की ओर निकल पड़े। पूरे रास्ते अपनी मां को याद करते हुए प्रभु स्मरण भी करते रहे। गांव पहुंचकर अपनी मां की रुग्णता और उन्हें बिना आंखों के विचरण करते देख रामदास द्रवित हो उठे। उन्होंने अपने इष्ट को याद करते हुए अपनी मां की आंखों पर हाथ फेरा। राम नाम के सुमिरन के साथ-साथ मां की आंखों में रोशनी भी आती गई और मां को अब पूर्ण रूप से साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा। प्रसन्न होते हुए मां ने रामदास से इस चमत्कार का मर्म जानना चाहा तो वह बोले, ‘मैं तो अपने प्रभु समर्थ राम का दास हूं। वह जो मेरे द्वारा करवाना चाहते हैं, वही हो जाता है।’ इसके बाद समर्थ रामदास ने रामकथा मराठी छंदों में रचकर अपनी माता को सुनाई।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी